श्र्लोक आणि भक्तिगीत: संकीर्ण (Shloka and Bhaktigeet: Sankeerna) (ऐका audio)
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आस ही तुझी (Aas Hee tuzee)
आस ही तुझी फार लागली, दे दयानिधे बुद्धी चांगली |
देऊ तू नको दुष्ट वासना, तूच आवरी आमुच्या मना ||
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् (ChidaanandarupaH Shivoham Shivoham)
मनोबुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ॥
न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
न च प्राणसंज्ञॊ न वै पञ्चवायु-
र्न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोशः
न वाक् पाणिपादौ न चोपस्थपायू
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ॥
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥३॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ॥
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥४॥
न मे मृत्यशङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म ॥
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥५॥
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ॥
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानन्दरुपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥
दासबोधी अनन्य भाव (Daasabodhee Ananya Bhaav)
कुठें कोणता वेद वेदान्त पाहू | कुठें शास्त्र संभार शोधीत जाऊ?
कशाला कुणाला पुसू ब्रह्म शोध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||१||
कसे ओळखू संत पंडीत ज्ञानी | कुणा भीक मागू असे मी अडाणी |
ठसेना मनाला कुणाचा प्रबोध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||२||
कुठें तीर्थ-क्षेत्रादि धुंडीत जाऊ | कसे योग अभ्यास सेऊनि राहू |
कसे आवरू शत्रु हे कामक्रोध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||३||
समर्थे दिली श्रेष्ठ अध्यात्मखाण | पुरे तेवढी, ना कशाचीच वाण |
असे लाभला मानसी हाच वेध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||४||
नसे शास्त्रविद्या कलाज्ञान काही | बुडे मी सदा संसृतीच्या प्रवाही |
जरी अज्ञ मी बद्ध होईल सिद्ध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||५||
समर्था, असे मी जरी पापखाणी | अती आदरे ऐकिली ग्रंथ वाणी |
जळे पापराशी मिळे ज्ञान शुद्ध | मला दासबोधीच लाभेल बोध ||६||
देहमंदिर चित्तमंदिर (Dehamandir Chittamandir)
देहमंदिर चित्तमंदिर एक तेथे प्रार्थना
सत्य सुंदर मंगलाची नित्य हो आराधना ||धृ||
दुःखितांचे दुःख जाओ ही मनीची कामना
वेदना जाणावयाला जागवू संवेदना
दुर्बलांच्या रक्षणाला पौरुषाची साधना ||१||
जीवनी नव तेज राहो अंतरीची भावना
सुंदराचा वेध लागो मानवाच्या जीवना
शौर्य लाभो धैर्य लाभो सत्यता संशोधना ||२||
भेद सारे मावळू द्या वैर साऱ्या वासना
मानवाच्या एकतेची पूर्ण होवो कल्पना
मुक्त आम्ही फक्त मानू बंधूतेच्या बंधना ||३||
दिव्या दिव्या (Divyaa Divyaa)
दिव्या दिव्या दीपत्कार
कानी कुंडल मोतीहार
दिव्याला देखून नमस्कार
डोळ्यांनी बघतो (Dolyannee Baghato)
डोळ्यांनी बघतो, ध्वनी परिसतो कानी, पदी चालतो |
जिव्हेने रस चाखतो मधुरही, वाचे आम्ही बोलतो |
हातांनी बहुसाल काम करतो, विश्रांती ही घ्यावया |
घेतो झोप सुखे फिरुनी उठतो, ही ईश्र्वराची दया |
नभी सूर्य (Nabhee Soorya)
नभी सूर्य विश्वास जो तेज देतो, प्रमोदे अम्ही अंतरी त्यासि ध्यातो |
तये प्रेरणा बुद्धि ते देत जावी, अशी प्रार्थना आमुची ही स्वभावी ||
ॐ पूर्णमदः (Om PoornamadaH)
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ॥
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥॥
ॐ सह नाववतु (Om Saha Naavavatu)
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ॥
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥॥
सदा सर्वदा (Sadaa Sarvadaa)
सदा सर्वदा योग तूझा घडावा
तुझे कारणी देह माझा पडावा |
उपेक्षू नको गूणवंता अनंता
रघूनायका मागणे हेचि आता |
शुभं करोतु (Shubham Karotu)
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ॥
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तु ते ॥॥
सूर्य येतां सूर्य वतां (Soorya Yetaa Soorya Vataa)
सूर्य येतां सूर्य वतां कोणाखातिरऽ | स्वतःखातिर नाही तरी जगाखातिरऽ |
चंद्र येतां चंद्र वतां कोणाखातिरऽ | स्वतःखातिर नाही तरी जगाखातिरऽ |
देव येतां देव वतां कोणाखातिरऽ | स्वतःखातिर नाही तरी जगाखातिरऽ |
मनुष देह धारण करता कोणाखातिरऽ | पूर्व जन्म कर्मफळ भोगाखातिरऽ |
सूर्य येतां सूर्य वतां कोणाखातिरऽ | स्वतःखातिर नाही तरी जगाखातिरऽ |
तन्मय हो जा (Tanmay Ho Jaa)
तन्मय हो जा मेरे मन | शिवमय हो जा मेरे मन ||धृ||
नील अनावील मौन गगन
गीत सुनाता बहे पवन
अष्ट-मूर्तीका दिव्य नटन्
अखिल जगत अनुपम आँगन
तन्मय हो जा मेरे मन | मुदमय हो जा मंगलमय मन ||१||
अनहत का अविरत स्पंदन
गूँज रहे गिरी गहवर वन
संवितका उन्मुक्त सदन
करले साधो सतत भजन
तन्मय हो जा मेरे मन | रसमय हो जा मधुकर मन ||२||
श्री गुरु देते ज्ञानांजन
शान्ति प्रदायक शास्त्र वचन
अवन निरत अनवरत नयन
खोल रहे मन अवगुंठन
तन्मय हो जा मेरे मन | गुरुमय हो जा विनय मन ||३||
जगन् माताका स्मित आनन
करता है अंतस पावन
वरले माँकी वरद शरण
संवित सुखमय परिपूरन
तन्मय हो जा मेरे मन | चिन्मय हो जा उज्वल मन ||४||
ती विद्या मिळवू इथे (Tee Vidyaa Milavoo Ithe)
दाविते ज्ञानभानुते | अज्ञान तम नाशिते |
सुखशाश्वत जी देते | ती विद्या मिळवू इथे ||१||
दैन्य दुःख लया नेते | पापताप निवारते |
चित्तास शांतता देते | ती विद्या मिळवू इथे ||२||
मुक्तीस हेतू जी होते | अनेकी ऐक्य पाहते |
अन्तः प्रसन्नता देते | ती विद्या मिळवू इथे ||३||
अनाथा हात जी देते | विश्वाचे हित साधिते |
लोपवी जी अहंतेते | ती विद्या मिळवू इथे ||४||
धर्मादि पुरुषार्थाते | येते सार्थकता जिथे |
सार्थ साक्षरता भेटे | ती विद्या मिळवू इथे ||५||
आनंदी जन्म जी घेते | आनंदे विश्व कोंडिते |
आनंदी लीन जी होते | ती विद्या मिळवू इथे ||६||
-- स्वामी स्वरुपानंद
उदारा जगदाधारा .... (Udaaraa Jagadaadhaaraa)
उदारा जगदाधारा देई मज असा वर | स्व-स्वरुपानुसंधानी रमो चित्त निरंतर ||१||
काम-क्रोधादिका थारा मिळो नच मदन्तरी | अखंडित वसो मूर्ति तुझी श्रीहरी साजिरी ||२||
शरीरी हि घरी दारी स्त्रीपुत्रादि परिग्रही | अनासक्त असो चित्त आसक्त त्वदनुग्रही ||३||
नको धन नको मान नको लौकिक आगळा | सोडवी हा परी माझा मोहपाशातुनी गळा ||४||
नको भोग नको त्याग नको विद्या नको कला | अवीट पदपद्माची अमला भक्ति दे मला ||५||
नर नारी हरिरूप दिसो बाहेर अंतरी | राम कृष्ण हरी मंत्र उच्चारो मम वैखरी ||६||
मी-माझे मावळो सर्व तू तुझे उगवो अता | मी-तूपण जगन्नाथा, होवो एक चि तत्वता ||७||
देव-भक्त असे द्वैत अद्वयत्व न खंडिता | दाखवी देव-देवेशा, प्रार्थना ही तुला आता ||८||
-- स्वामी स्वरुपानंद
उपासनेला .... (Upaasnelaa...)
उपासनेला दृढ चालवावे | भूदेव संतासी सदा लवावे |
सत्कर्मयोगे वय घालवावे | सर्वामुखी मंगल बोलवावे ||