श्र्लोक आणि भक्तिगीत: विष्णु, राम आणि कृष्ण (Shloka and Bhaktigeet: Vishnu, Ram and Krishna) (ऐका audio)
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हरिच्या हाती ... (Harichyaa Haatee...)
हरिच्या हाती एक रंगीत काठी | उभा राहिला भीवरे वाळवंटी |
तुरा खोविला मस्तकी मंजिरीचा | असा पाहिला विठू पंढरीचा |
ही रामनाम नौका (Shree RaamNaam Nauka)
ही रामनाम नौका | भवसागरी तराया ||धृ||
मद, मोह लोभ सुसरी | किती डंखिती विषारी |
ते दुःख शांतवाया | मांत्रिक रामराया ||१||
सुटले अफाट वारे | मनतारू त्यात बिथरे |
त्या वादळातुनी या नेईल रामराया ||२||
भ्रम भोवऱ्यात अडली | नौका परी न बुडली |
धरुनी सुकाणू हाती | बसलेत रामराया ||३||
आम्ही सर्वही प्रवासी | जाणार दूरदेशी |
तो मार्ग दाखवाया | अधिकारी रामराया ||४||
हा देह नाशीवंत | जाण्यास ना समर्थ |
तारी तारी रामराया | दिनदास लागे पाया ||५||
गोविन्द दामोदर माधवेति (Govind Daamodar Madhaveti)
करारविन्देन पदारविन्दे मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ॥
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥१॥
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ॥
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥२॥
विक्रेतुकामा किल गोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्तिः ॥
दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति ॥३॥
गृहे गृहे गोपवधूकदम्बाः सर्वे मिलित्वा समवाप्य योगम् ॥
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥४॥
सुखं शयाना निलये निजेऽपि नामानि विष्णोः प्रवदन्ति मर्त्याः ॥
ते निश्चितं तन्मयन्तां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति ॥५॥
जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि नामानि कृष्णस्य मनोहराणि ॥
समस्त-भक्तार्तिविनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति ॥६॥
सुखावसाने इदमेव सारं दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम् ॥
देहावसाने इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ॥७॥
श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो ॥
जिह्वे पिबस्वामृतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति ॥८॥
मज हात धरोनी (Maj Haat Dharonee)
मज हात धरोनी सदा चालवी रामा |
तव कृपा असू दे, सत्-चित्-सुख घनःशामा ||धृ ||
मनदेहातील एकचि कण जरि |
तुझ्या कृपेविण अपूर्ण जोवरि ||
पूर्णत्वाने तुझा न तोवरि |||
कृपा असू दे, रामा सत्-चित्-सुख घनःशामा ||१||
जोवरि नाही तू मी एक |
जोवरि माझे भाव अनेक ||
जोवरि रविकर छायेसाहित |||
कृपा असू दे, रामा सत्-चित्-सुख घनःशामा ||२||
कृपेविना मी जगणे कैसे |
अभद्र, काजळि, ओंगळ जलसे ||
विद्यानंदा नको म्हणून ते |||
कृपा असू दे, रामा सत्-चित्-सुख घनःशामा ||३||
पावन भिक्षा (Paavan Bheeksha)
पावन भिक्षा दे रे राम | दिनदयाळा दे रे राम ||१||
अभेद भक्ती दे रे राम | आत्मनिवेदन दे रे राम ||२||
सद्विद्या मज दे रे राम | अर्थारोहण दे रे राम ||३||
सज्जन संगती दे रे राम | अलिप्तपण मज दे रे राम ||४||
ब्रह्म अनुभव दे रे राम | अनन्य सेवा दे रे राम ||५||
कोमल वाचा दे रे राम | विमलकरणी दे रे राम ||६||
प्रसंग ओळखी दे रे राम | धूर्त कला मज दे रे राम ||७||
हितकारक मज दे रे राम | जन सुखकारक दे रे राम ||८||
अंतरपारखी दे रे राम | बहुजन मैत्री दे रे राम ||९||
ज्ञान वैभव दे रे राम | उदासिनता दे रे राम ||१०||
मागो नेणे ते दे रे राम | मज न कळे ते दे रे राम ||११||
तुझी आवडी दे रे राम | दास म्हणे ते दे रे राम ||१२||
शब्द मनोहर दे रे राम | सावध पण मज दे रे राम ||१३||
दास म्हणे रे गुणधामा | उत्तम गुण मज दे रामा ||१४||
पावन भिक्षा दे रे राम | दिन दयाळा दे रे राम ||१५||
श्री रामरक्षा स्तोत्र (Shree Raamrakshaa Stotra)
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शान्ताकारं भुजगशयनं (Shaantaakaram Bhujagashayanam)
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्र्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ॥
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
श्रीराम जयराम (Shreeraam Jayaram)
श्रीराम जयराम जय जय राम, म्हणा आवडीने अहो तुम्ही म्हणा आवडीने |
भूलोकावरी झेंडा रोविला रामदासाने ||धृ||
राम राम म्हणता वाल्या वाल्मिकी ऋषि झाला
निजपापाचे फोडून डोंगर मोक्षपदा गेला ||१||
राम राम वदता वदनी गणिका उद्धरली
निजपापाचे फोडून डोंगर मोक्षपदा गेली ||२||
राम राम मंत्र जप हा मारुती नित्य करी
निजदासाचे हृदय मंदिरी रघुपति वास करी ||३||
श्रीराम राम हे म्हणा (Shreeram Raam He Mhanaa)
सुरेंद्र चन्द्रशेखरू | अखंड ध्यातसे हरू |
जनासि सांगतो खुणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||१||
महेश पार्वतीप्रती | विशेष गूज सांगती |
सलाभ होतसे दुणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||२||
विषे बहुत जाळिले | विशेष अंग पोऴिले |
प्रचीत माझिया मना | श्रीराम राम हे म्हणा ||३||
विशाळ व्याळ व्यस्तकी | नदी खळाळ मस्तकी |
ऋषी भविष्य कारणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||४||
अपाय होत चूकला | उपाय हा भला भला |
नसे जयासी तूळणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||५||
बहूत प्रयत्न पाहिले | परंतु सर्व राहिले |
विबुधपक्षरक्षणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||६||
विरामध्ये विरोत्तमू | विशेष हा रघोत्तमू |
सकाम काळआंकणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||७||
बहूत पाहिले खरे | परंतु दोन्ही अक्षरे |
चुकेल येम यातना | श्रीराम राम हे म्हणा ||८||
मनी धरुनि साक्षपे | अखंड नाम हे जपे |
मनांतरी क्षणक्षणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||९||
देहे धरुनि वानरी | अखंड दास्य मी करी |
विमुक्त राज्य रावणा | श्रीराम राम हे म्हणा ||१०||
श्रीकृष्णाष्टकम् (Shreekrushnaashtakam)
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरन्जनम् सदैव नन्दनन्दनम् ॥
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनन्गरन्गसागरं नमामि कृष्णनागरं ॥॥१॥॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ॥
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥२॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगन्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् ॥
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥३॥
सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ॥
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥४॥
भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ॥
दृगन्तकान्तभन्गिनं सदासदालसंगिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवं ॥५॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ॥
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटं ॥६॥
समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनं ॥
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकं ॥७॥
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृध्दवन्हिपायिनम् ॥
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ॥
प्रमाणिकाष्टकद्वयम् जपत्यधीत्य यः पुमान
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ॥८॥
श्रीविष्णू प्रार्थना (Shreevishnoo Praarthanaa)
हे प्रभ विष्णो पातितोद्धारक, कृपा असो द्यावी |
अज्ञ मूढ मम वृत्ती बावरी जाऊन स्थिरता यावी ||धृ||
सप्तस्वर्गीच्या विराट देही, सूक्ष्म तत्व जे विलसे |
तेच प्रभू तव दिव्य रूप परी, आम्हा दिसावे कैसे ||
महान किमया अशी घडू दे मम मनी उतरावी |
घनतम तिमिरी जणू अनुपम ज्योस्त्ना तव विहरावी ||१||
जिथे न काही आधी, व्याधी, भौतिक सुख तेही |
आत्मानंदचि जेथ बहरतो, तिथेच मज नेई ||
मन बुद्धिसह चित्तसमन्वय, सुलभ साधने होई |
मनातीत स्तर त्यातून वरती, सहजे उचलून घेई ||२||
तृप्ती-शांतिचा गंध न येथे, अदिव्य भ्रामक विश्र्वी |
पूर्ण योग-पद इथे जिरावे, हीच वासना चित्ती ||
द्वैतमूळ हे येथील वास्तव, शुद्धाद्वैती यावे |
द्वैताद्वैत - विलक्षण प्रभू तू, विद्यानंदा न्यावे ||३||
वसुदेवसुतं देवं (Vasudevasutan Devam)
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनं ॥
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥