||समर्थ रामदासांचा दासबोध दशक ४ ||
||दशक चौथा : नवविधा भक्तिनाम ||४||
समास पहिला : श्रवणभक्ती
||श्रीराम ||
जयजय जी गणनाथा | तूं विद्यावैभवें समर्था |
अध्यात्मविद्येच्या परमार्था | मज बोलवावें ||१||
नमूं शारदा वेदजननी | सकळ सिद्धि जयेचेनी |
मानस प्रवर्तलें मननीं | स्फूर्तिरूपें ||२||
आतां आठऊं सद्गुरु | जो पराचाहि परु |
जयाचेनि ज्ञानविचारु | कळों लागे ||३||
श्रोतेन पुसिलें बरवें | भगवद्भजन कैसें करावें |
म्हणौनि बोलिलें स्वभावें | ग्रंथांतरीं ||४||
सावध होऊन श्रोतेजन | ऐका नवविधा भजन |
सत्शास्त्रीं बोलिले, पावन-| होईजे येणें ||५||
श्लोक ||श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् |
अर्चनं वंदनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ||
नवविधा भजन बोलिलें | तेंचि पुढें प्रांजळ केलें |
श्रोतीं अवधान दिधलें | पाहिजे आतां ||६||
प्रथम भजन ऐसें जाण | हरिकथापुराणश्रवण |
नाना अध्यात्मनिरूपण | ऐकत जावें ||७||
कर्ममार्ग उपासनामार्ग | ज्ञानमार्ग सिद्धांतमार्ग |
योगमार्ग वैराग्यमार्ग | ऐकत जावे ||८||
नाना व्रतांचे महिमे | नाना तीर्थांचे महिमे |
नाना दानांचे महिमे | ऐकत जावे ||९||
नाना माहात्म्यें नाना स्थानें | नाना मंत्र नाना साधनें |
नाना तपें पुरश्चरणें | ऐकत जावीं ||१०||
दुग्धाहारी निराहारी | फळाहारी पर्णाहारी |
तृणाहारी नानाहारी | कैसे ते ऐकावे ||११||
उष्णवास जळवास | सीतवास आरण्यवास |
भूगर्भ आणी आकाशवास | कैसे ते ऐकावे ||१२||
जपी तपी तामस योगी | नाना निग्रह हटयोगी |
शाक्तआगम आघोरयोगी | कैसे ते ऐकावे ||१३||
नाना मुद्रा नाना आसनें | नाना देखणीं लक्षस्थानें |
पिंडज्ञानें तत्वज्ञानें | कैसीं तें ऐकावीं ||१४||
नाना पिंडांची रचना | नाना भूगोळरचना |
नाना सृष्टीची रचना | कैसी ते ऐकावी ||१५||
चंद्र सूर्य तारामंडळें | ग्रहमंडळें मेघमंडळें |
येकवीस स्वर्गें सप्त पाताळें | कैसीं ते ऐकावीं ||१६||
ब्रह्माविष्णुमहेशस्थानें | इन्द्रदेवऋषीस्थानें |
वायोवरुणकुबेरस्थानें | कैसीं ते ऐकावीं ||१७||
नव खंडे चौदा भुवनें | अष्ट दिग्पाळांची स्थानें |
नाना वनें उपवनें गहनें | कैसीं ते ऐकावीं ||१८||
गण गंधर्व विद्याधर | येक्ष किन्नर नारद तुंबर |
अष्ट नायका संगीतविचार | कैसा तो ऐकावा ||१९||
रागज्ञान ताळज्ञान | नृत्यज्ञान वाद्यज्ञान |
अमृतवेळ प्रसंगज्ञान | कैसें तें ऐकावें ||२०||
चौदा विद्या चौसष्टी कळा | सामुद्रिक लक्षणें सकळ कळा |
बत्तीस लक्षणें नाना कळा | कैशा त्या ऐकाव्या ||२१||
मंत्र मोहरे तोटके सिद्धी | नाना वल्ली नाना औषधी |
धातु रसायण बुद्धी | नाडिज्ञानें ऐकावीं ||२२||
कोण्या दोषें कोण रोग | कोणा रोगास कोण प्रयोग |
कोण्या प्रयोगास कोण योग | साधे तो ऐकावा ||२३||
रवरवादि कुंभपाक | नाना यातना येमेलोक |
सुखसुःखादि स्वर्गनर्क | कैसा तो ऐकावा ||२४||
कैशा नवविधा भक्ती | कैशा चतुर्विधा मुक्ती |
कैसी पाविजे उत्तम गती | ऐसें हें ऐकावें ||२५||
पिंडब्रह्मांडाची रचना | नाना तत्वविवंचना |
सारासारविचारणा | कैसी ते ऐकावी ||२६||
सायोज्यता मुक्ती कैसी होते | कैसें पाविजे मोक्षातें |
याकारणें नाना मतें | शोधित जावीं ||२७||
वेद शास्त्रें आणी पुराणें | माहावाक्याचीं विवरणें |
तनुशतुष्टयनिर्शनें | कैसीं ते ऐकावीं ||२८||
ऐसें हें अवघेंचि ऐकावें | परंतु सार शोधून घ्यावें |
असार तें जाणोनि त्यागावें | या नांव श्रवणभक्ति ||२९||
सगुणाचीं चरित्रें ऐकावीं | कां तें निर्गुण अध्यात्में
शोधावीं |
श्रवणभक्तीचीं जाणावीं | लक्षणें ऐसीं ||३०||
सगुण देवांचीं चरित्रें | निर्गुणाचीं तत्वें यंत्रें |
हे दोनी परम पवित्रें | ऐकत जावीं ||३१||
जयंत्या उपोषणें नाना साधनें | मंत्र यंत्र जप ध्यानें |
कीर्ति स्तुती स्तवनें भजनें | नानाविधें ऐकावीं ||३२||
ऐसें श्रवण सगुणाचें | अध्यात्मनिरूपण निर्गुणाचें |
विभक्ती सांडून भक्तीचें | मूळ शोधावें ||३३||
श्रवणभक्तीचें निरूपण | निरोपिलें असे जाण |
पुढें कीर्तन भजनाचें लक्षण | बोलिलें असे ||३४||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे श्रवणभक्तिनिरूपणनाम
समास पहिला ||१||४. १
समास दुसरा : किर्तन भक्ति
||श्रीराम ||
श्रोतीं भगवद्भजन पुसिलें | तें नवविधा प्रकारें बोलिलें |
त्यांत प्रथम श्रवण निरोपिलें | दुसरें कीर्तन ऐका ||१||
सगुण हरिकथा करावी | भगवत्कीर्ती वाढवावी |
अक्षंड वैखरी वदवावी | येथायोग्य ||२||
बहुत करावें पाठांतर | कंठीं धरावें ग्रन्थांतर |
भगवत्कथा निरंतर | करीत जावी ||३||
अपुलिया सुखस्वार्था | केलीच करावी हरिकथा |
हरिकथेवीण सर्वथा | राहोंचि नये ||४||
नित्य नवा हव्यास धरावा | साक्षेप अत्यंतचि करावा |
हरिकीर्तनें भरावा | ब्रह्मगोळ अवघा ||५||
मनापासून आवडी | जीवापासून अत्यंत गोडी |
सदा सर्वदा तांतडी | हरिकीर्तनाची ||६||
भगवंतास कीर्तन प्रिये | कीर्तनें समाधान होये |
बहुत जनासी उपाये | हरिकीर्तनें कलयुगीं ||७||
विविध विचित्रें ध्यानें | वर्णावीं आळंकार भूषणें |
ध्यानमूर्ति अंतःकरणें-| लक्षून, कथा करावी ||८||
येश कीर्ति प्रताप महिमा | आवडीं वर्णावा परमात्मा |
जेणें भगवद्भक्तांचा आत्मा | संतुष्ट होये ||९||
कथा अन्वय लापणिका | नामघोष करताळिका |
प्रसंगें बोलाव्या अनेका | धात माता नेमस्त ||१०||
ताळ मृदांग हरिकीर्तन | संगीत नृत्य तान मान |
नाना कथानुसंधान | तुटोंचि नेदावें ||११||
करुणा कीर्तनाच्या लोटें | कथा करावी घडघडाटें |
श्रोतयांचीं श्रवणपुटें | आनंदें भरावीं ||१२||
कंप रोमांच स्फुराणें | प्रेमाश्रुसहित गाणें |
देवद्वारीं लोटांगणें | नमस्कार घालावे ||१३||
पदें दोहडें श्लोक प्रबंद | धाटी मुद्रा अनेक छंद |
बीरभाटिंव विनोद | प्रसंगें करावे ||१४||
नाना नवरसिक शृंघारिक | गद्यपद्याचें कौतुक |
नाना वचनें प्रस्ताविक | शास्त्राधारें बोलावीं ||१५||
भक्तिज्ञान वैराग्य लक्षण | नीतिन्यायस्वधर्मरक्षण |
साधनमार्ग अध्यात्मनिरूपण | प्रांजळ बोलावें ||१६||
प्रसंगें हरिकथा करावी | सगुणीं सगुणकीर्ति धरावी |
निर्गुणप्रसंगें वाढवावी | अध्यात्मविद्या ||१७||
पूर्वपक्ष त्यागून, सिद्धांत-| निरूपण करावें नेमस्त |
बहुधा बोलणें अव्यावेस्त | बोलोंचि नये ||१८||
करावें वेदपारायेण | सांगावें जनासी पुराण |
मायाब्रह्मीचें विवरण | साकल्य वदावें ||१९||
ब्राह्मण्य रक्षावें आदरें | उपासनेचीं भजनद्वारें |
गुरुपरंपरा निर्धारें | चळोंच नेदावी ||२०||
करावें वैराग्यरक्षण | रक्षावें ज्ञानाचें लक्षण |
परम दक्ष विचक्षण | सर्वहि सांभाळी ||२१||
कीर्तन ऐकतां संदेह पडे | सत्य समाधान तें उडे |
नीतिन्यायसाधन मोडे | ऐसें न बोलावें ||२२||
सगुणकथा या नांव कीर्तन | अद्वैत म्हणिजे निरूपण |
सगुण रक्षून निर्गुण | बोलत जावें ||२३||
असो वग्त्रृत्वाचा अधिकार | अल्पास न घडे सत्योत्तर |
वक्ता पाहिजे साचार | अनुभवाचा ||२४||
सकळ रक्षून ज्ञान सांगे | जेणें वेदज्ञा न भंगे |
उत्तम सन्मार्ग लागे | प्राणीमात्रासी ||२५||
असो हें सकळ सांडून | करावें गुणानुवादकीर्तन |
या नांव भगवद्भजन | दुसरी भक्ती ||२६||
कीर्तनें माहादोष जाती | कीर्तनें होये उत्तमगती |
कीर्तनें भगवत्प्राप्ती | येदर्थीं संदेह नाहीं ||२७||
कीर्तनें वाचा पवित्र | कीर्तनें होये सत्पात्र |
हरिकीर्तनें प्राणीमात्र | सुसिळ होती ||२८||
कीर्तनें अवेग्रता घडे | कीर्तनें निश्चये सांपडे |
कीर्तनें संदेह बुडे | श्रोतयांवक्तयांचा ||२९||
सदा सर्वदा हरिकीर्तन | ब्रह्मसुत करी आपण |
तेणें नारद तोचि नारायेण | बोलिजेत आहे ||३०||
म्हणोनि कीर्तनाचा अगाध महिमा | कीर्तनें संतोषे परमात्मा |
सकळ तीर्थें आणी जगदात्मा | हरिकीर्तनीं वसे ||३१||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कीर्तनभजननिरूपणनाम
समास दुसरा ||२||४. २
समास तिसरा : नामस्मरणभक्ति
||श्रीराम ||
मागां निरोपिलें कीर्तन | जें सकळांस करी पावन |
आतां ऐका विष्णोःस्मरण | तिसरी भक्ती ||१||
स्मरण देवाचें करावें | अखंड नाम जपत जावें |
नामस्मरणें पावावें | समाधान ||२||
नित्य नेम प्रातःकाळीं | माध्यानकाळीं सायंकाळीं |
नामस्मरण सर्वकाळीं | करीत जावें ||३||
सुख दुःख उद्वेग चिंता | अथवा आनंदरूप असतां |
नामस्मरणेंविण सर्वथा | राहोंच नये ||४||
हरुषकाळीं विषमकाळीं | पर्वकाळीं प्रस्तावकाळीं |
विश्रांतिकाळीं निद्राकाळीं | नामस्मरण करावें ||५||
कोडें सांकडें संकट | नाना संसारखटपट |
आवस्ता लागतां चटपट | नामस्मरण करावें ||६||
चालतां बोलतां धंदा करितां | खातां जेवितां सुखी
होतां |
नाना उपभोग भोगितां | नाम विसरों नये ||७||
संपत्ती अथवा विपत्ती | जैसी पडेल काळगती |
नामस्मरणाची स्थिती | सांडूंच नये ||८||
वैभव सामर्थ्य आणी सत्ता | नाना पदार्थ चालतां |
उत्कट भाग्यश्री भोगितां | नामस्मरण सांडूं नये ||९||
आधीं आवदसा मग दसा | अथवा दसेउपरी आवदसा |
प्रसंग असो भलतैसा | परंतु नाम सोडूं नये ||१०||
नामें संकटें नासतीं | नामें विघ्नें निवारती |
नामस्मरणें पाविजेती | उत्तम पदें ||११||
भूत पिशाच्च नाना छंद | ब्रह्मगिऱ्हो ब्राह्मणसमंध |
मंत्रचळ नाना खेद | नामनिष्ठें नासती ||१२||
नामें विषबाधा हरती | नामें चेडे चेटकें नासती |
नामें होये उत्तम गती | अंतकाळीं ||१३||
बाळपणीं तारुण्यकाळीं | कठिणकाळीं वृधाप्यकाळीं |
सर्वकाळीं अंतकाळीं | नामस्मरण असावें ||१४||
नामाचा महिमा जाणे शंकर | जना उपदेसी विश्वेश्वर |
वाराणसी मुक्तिक्षेत्र | रामनामेंकरूनी ||१५||
उफराट्या नामासाठीं | वाल्मिक तरला उठाउठी |
भविष्य वदला शतकोटी | चरित्र रघुनाथाचें ||१६||
हरिनामें प्रल्हाद तरला | नाना आघातापासून सुटला |
नारायेणनामें पावन जाला | अजामेळ ||१७||
नामें पाषाण तरले | असंख्यात भक्त उद्धरले |
माहापापी तेचि जाले | परम पवित्र ||१८||
परमेश्वराचीं अनंत नामें | स्मरतां तरिजे नित्यनेमें |
नामस्मरण करितां, येमें-| बाधिजेना ||१९||
सहस्रा नामामधें कोणी येक | म्हणतां होतसे सार्थक |
नाम स्मरतां पुण्यश्लोक | होईजे स्वयें ||२०||
कांहींच न करूनि प्राणी | रामनाम जपे वाणी |
तेणें संतुष्ट चक्रपाणी | भक्तांलागीं सांभाळी ||२१||
नाम स्मरे निरंतर | तें जाणावें पुण्यशरीर |
माहादोषांचे गिरिवर | रामनामें नासती ||२२||
अगाध महिमा न वचे वदला | नामें बहुत जन उद्धरला |
हळहळापासून सुटला | प्रत्यक्ष चंद्रमौळी ||२३||
चहुं वर्णां नामाधिकार | नामीं नाहीं लाहानथोर |
जढ मूढ पैलपार | पावती नामें ||२४||
म्हणौन नाम अखंड स्मरावें | रूप मनीं आठवावें |
तिसरी भक्ती स्वभावें | निरोपिली ||२५||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे नामस्मरणभक्तिनिरूपणनाम
समास तिसरा ||३||४. ३
समास चवथा : पादसेवन भक्ति
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | नामस्मरणाचें लक्षण |
आतां ऐका पादसेवन | चौथी भक्ती ||१||
पादसेवन तेंचि जाणावें | कायावाचामनोभावें |
सद्गुरूचे पाय सेवावे | सद्गतिकारणें ||२||
या नांव पादसेवन | सद्गुरुपदीं अनन्यपण |
निरसावया जन्ममरण | यातायाती ||३||
सद्गुरुकृपेविण कांहीं | भवतरणोपाव तों नाहीं |
याकारणें लवलाहीं | सद्गुरुपाय सेवावे ||४||
सद्वस्तु दाखवी सद्गुरु | सकळ सारासारविचारु |
परब्रह्माचा निर्धारु | अंतरीं बाणे ||५||
जे वस्तु दृष्टीस दिसेना | आणी मनास तेहि भासेना |
संगत्यागेंविण ये ना | अनुभवासी ||६||
अनुभव घेतां संगत्याग नसे | संगत्यागें अनुभव न दिसे |
हें अनुभवी यासीच भासे | येरां गथागोवी ||७||
संगत्याग आणी निवेदन | विदेहस्थिती अलिप्तपण |
सहजस्थिती उन्मनी विज्ञान | हे सप्तहि येकरूप ||८||
याहिवेगळीं नामाभिधानें | समाधानाचीं संकेतवचनें |
सकळ कांहीं पादसेवनें | उमजों लागे ||९||
वेद वेदगर्भ वेदांत | सिद्ध सिद्धभावगर्भ सिद्धांत |
अनुभव अनुर्वाच्य धादांत | सत्य वस्तु ||१०||
बहुधा अनुभवाचीं आंगें | सकळ कळती संतसंगें |
चौथे भक्तीचे प्रसंगें | गोप्य तें प्रगटे ||११||
प्रगट वसोनि नसे | गोप्य असोनि भासे |
भासाअभासाहून अनारिसे | गुरुगम्य मार्ग ||१२||
मार्ग होये परी अंतरिक्ष | जेथें सर्वहि पूर्वपक्ष |
पाहों जातां अलक्ष | लक्षवेना ||१३||
लक्षें जयासी लक्षावें | ध्यानें जयासी ध्यावें |
तें गे तेंचि आपण व्हावें | त्रिविधा प्रचिती ||१४||
असो हीं अनुभवाचीं द्वारें | कळती सारासारविचारें |
सत्संगेंकरून सत्योत्तरें | प्रत्ययासि येतीं ||१५||
सत्य पाहातां नाहीं असत्य | असत्य पाहातां नाहीं सत्य |
सत्याअसत्याचें कृत्य | पाहाणारापासीं ||१६||
पाहाणार पाहाणें जया लागलें | तें तद्रूपत्वें प्राप्त जालें |
तरी मग जाणावें बाणलें | समाधान ||१७||
नाना समाधानें पाहातां | बाणती सद्गुरु करितां |
सद्गुरुविण सर्वथा | सन्मार्ग नसे ||१८||
प्रयोग साधनें सायास | नाना साक्षेपें विद्याअभ्यास |
अभ्यासें कांहीं गुरुगम्यास | पाविजेत नाहीं ||१९||
जें अभ्यासें अभ्यासितां न ये | जें साधनें असाध्य होये |
तें हें सद्गुरुविण काये | उमजों जाणे ||२०||
याकारणें ज्ञानमार्ग-| कळाया, धरावा सत्संग |
सत्संगेंविण प्रसंग | बोलोंचि नये ||२१||
सेवावे सद्गुरूचे चरण | या नांव पादसेवन |
चौथे भक्तीचें लक्षण | तें हें निरोपिलें ||२२||
देव ब्राह्मण माहानुभाव | सत्पात्र भजनाचे ठाव |
ऐसिये ठाईं सद्भाव | दृढ धरावा ||२३||
हें प्रवृत्तीचें बोलणें | बोलिलें रक्षाया कारणें |
परंतु सद्गुरुपाय सेवणें | या नांव पादसेवन ||२४||
पादसेवन चौथी भक्ती | पावन करितसे त्रिजगतीं |
जयेकरितां सायोज्यमुक्ती | साधकास होये ||२५||
म्हणौनि थोराहून थोर | चौथे भक्तीचा निर्धार |
जयेकरितां पैलपार | बहुत प्राणी पावती ||२६||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पादसेवनभक्तिनिरूपणनाम
समास चवथा ||४||४. ४
समास पांचवा : अर्चनभक्ति
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | चौथे भक्तीचें लक्षण |
आतां ऐका सावधान | पांचवी भक्ती ||१||
पांचवी भक्ती तें आर्चन | आर्चन म्हणिजे देवतार्चन |
शास्त्रोक्त पूजाविधान | केलें पाहिजे ||२||
नाना आसनें उपकर्णें | वस्त्रें आळंकार भूषणें |
मानसपूजा मूर्तिध्यानें | या नांव पांचवी भक्ती ||३||
देवब्राह्मणाग्नीपूजन | साधुसंतातीतपूजन |
इति महानुभाव गाइत्रीपूजन | या नांव पांचवी भक्ती ||४||
धातुपाषाणमृत्तिकापूजन | चित्र लेप सत्पात्रपूजन |
आपले गृहींचें देवतार्चन | या नांव पांचवी भक्ती ||५||
सीळा सप्तांकित नवांकित | शालिग्राम शकलें चक्रांकित |
लिंगें सूर्यकांत सोमकांत | बाण तांदळे नर्बदे ||६||
भैरव भगवती मल्लारी | मुंज्या नृसिंह बनशंकरी |
नाग नाणी नानापरी | पंचायेत्नपूजा ||७||
गणेशशारदाविठलमूर्ती | रंगनाथजगंनाथतांडवमूर्ती |
श्रीरंगहनुमंतगरुडमूर्ती | देवतार्चनीं पूजाव्या ||८||
मत्छकूर्मवऱ्हावमूर्ती | नृसिंहवामनभार्गवमूर्ती |
रामकृष्णहयग्रीवमूर्ती | देवतार्चनीं पूजाव्या ||९||
केशवनारायणमाधवमूर्ती | गोविंदविष्णुमदसूदनमूर्ती |
त्रिविक्रमवामनश्रीधरमूर्ती | रुषीकेश पद्मनाभि ||१०||
दामोदरसंकर्षणवासुदेवमूर्ती |
प्रद्युम्नानुरधपुरुषोत्तममूर्ती |
अधोक्षजनारसिंहाच्युतमूर्ती | जनार्दन आणी उपेंद्र ||११||
हरिहरांच्या अनंत मूर्ती | भगवंत जगदात्माजगदीशमूर्ती |
शिवशक्तीच्या बहुधा मूर्ती | देवतार्चनीं पूजाव्या ||१२||
अश्वत्थनारायेण सूर्यनारायेण | लक्ष्मीनारायेण त्रिमल्लनारायेण |
श्रीहरीनारायण आदिनारायण | शेषशाई परमात्मा ||१३||
ऐश्या परमेश्वराच्या मूर्ती | पाहों जातां उदंड असती |
त्यांचें आर्चन करावें, भक्ती-| पांचवी ऐसी ||१४||
याहि वेगळे कुळधर्म | सोडूं नये अनुक्रम |
उत्तम अथवा मध्यम | करीत जावें ||१५||
जाखमाता मायराणी | बाळा बगुळा मानविणी |
पूजा मांगिणी जोगिणी | कुळधर्में करावीं ||१६||
नाना तीर्थांक्षत्रांस जावें | तेथें त्या देवाचें पूजन
करावें |
नाना उपचारीं आर्चावें | परमेश्वरासी ||१७||
पंचामृतें गंधाक्षतें | पुष्पें परिमळद्रव्यें बहुतें |
धूपदीप असंख्यातें | नीरांजनें कर्पुराचीं ||१८||
नाना खाद्य नैवेद्य सुंदर | नाना फळें तांबोलप्रकार |
दक्षणा नाना आळंकार | दिव्यांबरें वनमाळा ||१९||
सिबिका छत्रें सुखासनें | माहि मेघडंब्रें सूर्यापानें |
दिंड्या पताका निशाणें | टाळ घोळ मृदांग ||२०||
नाना वाद्यें नाना उत्साव | नाना भक्तसमुदाव |
गाती हरिदास सद्भाव-| लागला भगवंतीं ||२१||
वापी कूप सरोवरें | नाना देवाळयें सिखरें |
राजांगणें मनोहरें | वृंदावनें भुयरीं ||२२||
मठ मंड्या धर्मशाळा | देवद्वारीं पडशाळा |
नाना उपकर्णें नक्षत्रमाळा | नाना वस्त्र सामुग्री ||२३||
नाना पडदे मंडप चांदोवे | नाना रत्नघोष लोंबती बरवे |
नाना देवाळईं समर्पावे | हस्थि घोडे शक्कटें ||२४||
आळंकार आणि आळंकारपात्रें | द्रव्य आणी द्रव्यपात्रें |
अन्नोदक आणी अन्नोदकपात्रें | नाना प्रकारीचीं ||२५||
वनें उपवनें पुष्पवाटिका | तापस्यांच्या पर्णकुटिका |
ऐसी पूजा जगन्नायका | येथासांग समर्पावी ||२६||
शुक शारिका मयोरें | बदकें चक्रवाकें चकोरें |
कोकिळा चितळें सामरें | देवाळईं समर्पावीं ||२७||
सुगंधमृगें आणी मार्जरें | गाई म्हैसी वृषभ वानरें |
नाना पदार्थ आणी लेंकुरें | देवाळईं समर्पावीं ||२८||
काया वाचा आणी मनें | चित्तें वित्तें जीवें प्राणें |
सद्भावें भगवंत आर्चनें | या नांव आर्चनभक्ती ||२९||
ऐसेंचि सद्गुरूचें भजन-| करून, असावें अनन्य |
या नांव भगवद्भजन | पांचवी भक्ती ||३०||
ऐसी पूजा न घडे बरवी | तरी मानसपूजा करावी |
मानसपूजा अगत्य व्हावी | परमेश्वरासी ||३१||
मनें भगवंतास पूजावें | कल्पून सर्वहि समर्पावें |
मानसपूजेचें जाणावें | लक्षण ऐसें ||३२||
जें जें आपणांस पाहिजे | तें तें कल्पून वाहिजे |
येणें प्रकारें कीजे | मानसपूजा ||३३||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आर्चनभक्तिनाम
समास पांचवा ||५||४. ५
समास सहावा : वंदनभक्ति
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | पांचवे भक्तीचें लक्षण |
आतां ऐका सावधान | साहावी भक्ती ||१||
साहावी भक्ती तें वंदन | करावें देवासी नमन |
संत साधु आणी सज्जन | नमस्कारीत जावे ||२||
सूर्यासि करावे नमस्कार | देवासि करावे नमस्कार |
सद्गुरूस करावे नमस्कार | साष्टांग भावें ||३||
साष्टांग नमस्कारास अधिकारु | नानाप्रतिमा देव गुरु |
अन्यत्र नमनाचा विचारु | अधिकारें करावा ||४||
छपन्न कोटी वसुमती | मधें विष्णुमूर्ती असती |
तयांस नमस्कार प्रीतीं | साष्टांग घालावे ||५||
पशुपति श्रीपति आणी गभस्ती | यांच्या दर्शनें दोष जाती |
तैसाचि नमावा मारुती | नित्य नेमें विशेष ||६||
श्लोक ||शंकरः शेषशायी च मार्तंडो मारुतिस्तथा |
एतेषां दर्शनं पुण्यं नित्यनेमे विशेषतः ||
भक्त ज्ञानी आणी वीतरागी | माहानुभाव तापसी योगी |
सत्पात्रें देखोनि वेगीं | नमस्कार घालावे ||७||
वेदज्ञ शास्त्रज्ञ आणी सर्वज्ञ | पंडित पुराणिक आणी विद्वज्जन |
याज्ञिक वैदिक पवित्रजन | नमस्कारीत जावे ||८||
जेथें दिसती विशेष गुण | तें सद्गुरूचें अधिष्ठान |
याकारणें तयासी नमन | अत्यादरें करावें ||९||
गणेश शारदा नाना शक्ती | हरिहरांच्या अवतारमूर्ती |
नाना देव सांगों किती | पृथकाकारें ||१०||
सर्व देवांस नमस्कारिलें | ते येका भगवंतास पावलें |
येदर्थीं येक वचन बोलिलें-| आहे, तें ऐका ||११||
श्लोक ||आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरं |
सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति ||
याकारणें सर्व देवांसी | नमस्कारावें अत्यादरेंसीं |
अधिष्ठान मानितां, देवांसी-| परम सौख्य वाटे ||१२||
देव देवाचीं अधिष्ठानें | सत्पात्रें सद्गुरूचीं स्थानें |
या कारणें नमस्कार करणें | उभय मार्गीं ||१३||
नमस्कारें लीनता घडे | नमस्कारें विकल्प मोडे |
नमस्कारें सख्य घडे | नाना सत्पात्रासीं ||१४||
नमस्कारें दोष जाती | नमस्कारें अन्याय क्ष्मती |
नमस्कारें मोडलीं जडतीं | समाधानें ||१५||
सिसापरता नाहीं दंड | ऐसें बोलती उदंड |
याकारणें अखंड | देव भक्त वंदावे ||१६||
नमस्कारें कृपा उचंबळे | नमस्कारें प्रसन्नता प्रबळे |
नमस्कारें गुरुदेव वोळे | साधकांवरीं ||१७||
निशेष करितां नमस्कार | नासती दोषांचे गिरिवर |
आणी मुख्य परमेश्वर | कृपा करी ||१८||
नमस्कारें पतित पावन | नमस्कारें संतांसी शरण |
नमस्कारें जन्ममरण | दुरी दुऱ्हावे ||१९||
परम अन्याय करुनि आला | आणी साष्टांग नमस्कार घातला |
तरी तो अन्याये क्ष्मा केला | पाहिजे श्रेष्ठीं ||२०||
याकारणें नमस्कारापरतें | आणीक नाहीं अनुसरतें |
नमस्कारें प्राणीयातें | सद्बुद्धि लागे ||२१||
नमस्कारास वेचावें नलगे | नमस्कारास कष्टावें नलगे |
नमस्कारांस कांहींच नलगे | उपकर्ण सामग्री ||२२||
नमस्कारा ऐसें नाहीं सोपें | नमस्कार करावा अनन्यरूपें |
नाना साधनीं साक्षपें | कासया सिणावें ||२३||
साधक भावें नमस्कार घाली | त्याची चिंता साधूस लागली |
सुगम पंथे नेऊन घाली | जेथील तेथें ||२४||
याकारणें नमस्कार श्रेष्ठ | नमस्कारें वोळती वरिष्ठ |
येथें सांगितली पष्ट | साहावी भक्ती ||२५||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे वंदनभक्तिनाम
समास सहावा ||६||४. ६
समास सातवा : दास्यभक्ति
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | साहवें भक्तीचें लक्षण |
आतां ऐका सावधान | सातवी भक्ती ||१||
सातवें भजन तें दास्य जाणावें | पडिलें कार्य तितुकें
करावें |
सदा सन्निधचि असावें | देवद्वारीं ||२||
देवाचें वैभव संभाळावें | न्यूनपूर्ण पडोंचि नेदावें |
चढतें वाढतें वाढवावें | भजन देवाचें ||३||
भंगलीं देवाळयें करावीं | मोडलीं सरोवरें बांधावीं |
सोफे धर्मशाळा चालवावीं | नूतनचि कार्यें ||४||
नाना रचना जीर्ण जर्जर | त्यांचे करावे जीर्णोद्धार |
पडिलें कार्य तें सत्वर | चालवित जावें ||५||
गज रथ तुरंग सिंहासनें | चौकिया सिबिका सुखासनें |
मंचक डोल्हारे विमानें | नूतनचि करावीं ||६||
मेघडंब्रें छत्रें चामरें | सूर्यापानें निशाणें अपारें |
नित्य नूतन अत्यादरें | सांभाळित जावीं ||७||
नाना प्रकारीचीं यानें | बैसावयाचीं उत्तम स्थानें |
बहुविध सुवर्णासनें | येत्नें करीत जावीं ||८||
भुवनें कोठड्या पेट्या मांदुसा | रांझण कोहळीं
घागरी बहुवसा |
संपूर्ण द्रव्यांश ऐसा | अति येत्नें करावा ||९||
भुयेरीं तळघरें आणी विवरें | नाना स्थळें गुप्त द्वारें |
अनर्घ्ये वस्तूंचीं भांडारें | येत्नें करीत जावीं ||१०||
आळंकार भूषणें दिव्यांबरें | नाना रत्नें मनोहरें |
नाना धातु सुवर्णपात्रें | येत्नें करीत जावीं ||११||
पुष्पवाटिका नाना वनें | नाना तरुवरांचीं बनें |
पावतीं करावीं जीवनें | तया वृक्षांसी ||१२||
नाना पशूंचिया शाळा | नाना पक्षी चित्रशाळा |
नाना वाद्यें नाट्यशाळा | गुणी गायेक बहुसाल ||१३||
स्वयंपाकगृहें भोजनशाळा | सामग्रीगृहें धर्मशाळा |
निद्रिस्तांकारणें पडशाळा | विशाळ स्थळें ||१४||
नाना परिमळद्रव्यांचीं स्थळें | नाना
खाद्यफळांचीं स्थळें |
नाना रसांचीं नाना स्थळें | येत्नें करीत जावीं ||१५||
नाना वस्तांची नाना स्थानें | भंगलीं करावीं नूतनें |
देवाचें वैभव वचनें | किती म्हणौनि बोलावें ||१६||
सर्वां ठाई अतिसादर | आणी दास्यत्वासहि तत्पर |
कार्यभागाचा विसर | पडणार नाहीं ||१७||
जयंत्या पर्वें मोहोत्साव | असंभाव्य चालवी वैभव |
जें देखतां स्वर्गींचे देव | तटस्त होती ||१८||
ऐसें वैभव चालवावें | आणी नीच दास्यत्वहि करावें |
पडिले प्रसंगीं सावध असावें | सर्वकाळ ||१९||
जें जें कांहीं पाहिजे | तें तें तत्काळचि देजे |
अत्यंत आवडीं कीजे | सकळ सेवा ||२०||
चरणक्षाळणें स्नानें आच्मनें | गंधाक्षतें वसनें भूषणें |
आसनें जीवनें नाना सुमनें | धूप दीप नैवेद्य ||२१||
शयेनाकारणें उत्तम स्थळें | जळें ठेवावीं सुसीतळें |
तांबोल गायनें रसाळें | रागरंगें करावीं ||२२||
परिमळद्रव्यें आणी फुलेलें | नाना सुगंधेल तेलें |
खाद्य फळें बहुसालें | सन्निधचि असावीं ||२३||
सडे संमार्जनें करावीं | उदकपात्रें उदकें भरावीं |
वसनें प्रक्षालून आणावीं | उत्तमोत्तमें ||२४||
सकळांचें करावें पारपत्य | आलयाचें करावें आतित्य |
ऐसी हे जाणावी सत्य | सातवी भक्ती ||२५||
वचनें बोलावीं करुणेचीं | नाना प्रकारें स्तुतीचीं |
अंतरें निवतीं सकळांचीं | ऐसें वदावें ||२६||
ऐसी हे सातवी भक्ती | निरोपिली येथामती |
प्रत्यक्ष न घडे तरी चित्तीं | मानसपूजा करावी ||२७||
ऐसें दास्य करावें देवाचें | येणेंचि प्रकारें सद्गुरूचें |
प्रत्यक्ष न घडे तरी मानसपूजेचें | करित जावें ||२८||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे दास्यभक्तिनाम
समास सातवा ||७||४. ७
समास आठवा : सख्यभक्ति
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | सातवे भक्तीचें लक्षण |
आतां ऐका सावधान | आठवी भक्ती ||१||
देवासी परम सख्य करावें | प्रेम प्रीतीनें बांधावें |
आठवे भक्तीचें जाणावें | लक्षण ऐसें ||२||
देवास जयाची अत्यंत प्रीती | आपण वर्तावें तेणें रीतीं |
येणें करितां भगवंतीं | सख्य घडे नेमस्त ||३||
भक्ति भाव आणी भजन | निरूपण आणी कथाकीर्तन |
प्रेमळ भक्तांचें गायन | आवडे देवा ||४||
आपण तैसेंचि वर्तावें | आपणासि तेंच आवडावें |
मनासारिखें होतां स्वभावें | सख्य घडे नेमस्त ||५||
देवाच्या सख्यत्वाकारणें | आपलें सौख्य सोडून देणें |
अनन्यभावें जीवें प्राणें | शरीर तेंहि वेंचावें ||६||
सांडून आपली संसारवेथा | करित जावी देवाची चिंता |
निरूपण कीर्तन कथा वार्ता | देवाच्याचि सांगाव्या ||७||
देवाच्या सख्यत्वासाठीं | पडाव्या जिवलगांसी तुटी |
सर्व अर्पावें, सेवटीं-| प्राण तोहि वेचावा ||८||
आपुलें आवघेंचि जावें | परी देवासी सख्य राहावें |
ऐसी प्रीती जिवें भावें | भगवंतीं लागावी ||९||
देव म्हणिजे आपुला प्राण | प्राणासी न करावें निर्वाण |
परम प्रीतीचें लक्षण | तें हें ऐसें असे ||१०||
ऐसें परम सख्य धरितां | देवास लागे भक्ताची चिंता |
पांडव लाखाजोहरीं जळतां | विवरद्वारें काढिले ||११||
देव सख्यत्वें राहे आपणासी | तें तों वर्म आपणाचि पासी |
आपण वचनें बोलावीं जैसीं | तैसीं येती पडसादें ||१२||
आपण असतां अनन्यभावें | देव तत्काळचि पावे |
आपण त्रास घेतां जीवें | देवहि त्रासे ||१३||
श्लोक ||ये यथा मां प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
जैसें जयाचे भजन | तैसाचि देवहि आपण |
म्हणौन हें आवघें जाण | आपणाचि पासीं ||१४||
आपुल्या मनासारिखें न घडे | तेणें गुणें निष्ठा मोडे |
तरी गोष्टी आपणांकडे | सहजचि आली ||१५||
मेघ चातकावरी वोळेना | तरी चातक पालटेना |
चंद्र वेळेसि उगवेना | तऱ्ही चकोर अनन्य ||१६||
ऐसें असावें सख्यत्व | विवेकें धरावें सत्व |
भगवंतावरील ममत्व | सांडूंचि नये ||१७||
सखा मानावा भगवंत | माता पिता गण गोत |
विद्या लक्ष्मी धन वित्त | सकळ परमात्मा ||१८||
देवावेगळें कोणीं नाहीं | ऐसें बोलती सर्वहि |
परंतु त्यांची निष्ठा कांहीं | तैसीच नसे ||१९||
म्हणौनी ऐसें न करावें | सख्य तरी खरेंचि करावें |
अंतरीं सदृढ धरावें | परमेश्वरासी ||२०||
आपुलिया मनोगताकारणें | देवावरी क्रोधास येणें |
ऐसीं नव्हेत किं लक्षणें | सख्यभक्तीचीं ||२१||
देवाचें जें मनोगत | तेंचि आपुलें उचित |
इच्छेसाठीं भगवंत | अंतरूं नये कीं ||२२||
देवाचे इच्छेनें वर्तावें | देव करील तें मानावें |
मग सहजचि स्वभावें | कृपाळु देव ||२३||
पाहातां देवाचे कृपेसी | मातेची कृपा कायेसी |
माता वधी बाळकासी | विपत्तिकाळीं ||२४||
देवें भक्त कोण वधिला | कधीं देखिला ना ऐकिला |
शरणागतांस देव जाला | वज्रपंजरु ||२५||
देव भक्तांचा कैवारी | देव पतितांसि तारी |
देव होये साहाकारी | अनाथांचा ||२६||
देव अनाथांचा कैपक्षी | नाना संकटांपासून रक्षी |
धांविन्नला अंतरसाक्षी | गजेंद्राकारणें ||२७||
देव कृपेचा सागरु | देव करुणेचा जळधरु |
देवासि भक्तांचा विसरु | पडणार नाहीं ||२८||
देव प्रीती राखों जाणे | देवासी करावें साजणें |
जिवलगें आवघीं पिसुणें | कामा न येती ||२९||
सख्य देवाचें तुटेना | प्रीति देवाची विटेना |
देव कदा पालटेना | शरणागतांसी ||३०||
म्हणौनि सख्य देवासी करावें | हितगुज तयासी सांगावें |
आठवे भक्तीचें जाणावें | लक्षण ऐसें ||३१||
जैसा देव तैसा गुरु | शास्त्रीं बोलिला हा विचारु |
म्हणौन सख्यत्वाचा प्रकारु | सद्गुरूसीं असावा ||३२||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सख्यभक्तिनाम
समास आठवा ||८||४. ८
समास नववा : आत्मनिवेदन
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | आठवे भक्तीचें लक्षण |
आतां ऐका सावधान | भक्ति नवमी ||१||
नवमी निवेदन जाणावें | आत्मनिवेदन करावें |
तेंहि सांगिजेल स्वभावें | प्रांजळ करूनि ||२||
ऐका निवेदनाचें लक्षण | देवासि वाहावें आपण |
करावें तत्वविवरण | म्हणिजे कळे ||३||
मी भक्त ऐसें म्हणावें | आणी विभक्तपणेंचि भजावें |
हें आवघेंचि जाणावें | विलक्षण ||४||
लक्षण असोन विलक्षण | ज्ञान असोन अज्ञान |
भक्त असोन विभक्तपण | तें हें ऐसें ||५||
भक्त म्हणिजे विभक्त नव्हे | आणी विभक्त म्हणिजे भक्त नव्हे |
विचारेंविण कांहींच नव्हे | समाधान ||६||
तस्मात् विचार करावा | देव कोण तो वोळखावा |
आपला आपण शोध घ्यावा | अंतर्यामीं ||७||
मी कोण ऐसा निवाडा | पाहों जातां तत्वझाडा |
विचार करितां उघडा | आपण नाहीं ||८||
तत्वें तत्व जेव्हां सरे | तेव्हां आपण कैंचा उरे |
आत्मनिवेदन येणेंप्रकारें | सहजचि जालें ||९||
तत्वरूप सकळ भासे | विवेक पाहातां निरसे |
प्रकृतिनिरासें आत्मा असे | आपण कैंचा ||१०||
येक मुख्य परमेश्वरु | दुसरी प्रकृति जगदाकारु |
तिसरा आपण कैंचा चोरु | आणिला मधें ||११||
ऐसें हें सिद्धचि असतां | नाथिली लागे देहाहंता |
परंतु विचारें पाहों जातां | कांहींच नसे ||१२||
पाहातां तत्वविवेचना | पिंडब्रह्मांडतत्वरचना |
विश्वाकारें वेक्ती, नाना-| तत्वें विस्तारलीं ||१३||
तत्वें साक्षत्वें वोसरतीं | साक्षत्व नुरे आत्मप्रचिती |
आत्मा असे आदिअंतीं | आपण कैंचा ||१४||
आत्मा येक स्वानंदघन | आणी अहमात्मा हें वचन |
तरी मग आपण कैंचा भिन्न | उरला तेथें ||१५||
सोहं हंसा हें उत्तर | याचें पाहावें अर्थांतर |
पाहातां आत्मयाचा विचार | आपण कैंचा तेथें ||१६||
आत्मा निर्गुण निरंजन | तयासी असावें अनन्य |
अनन्य म्हणिजे नाहीं अन्य | आपण कैंचा तेथें ||१७||
आत्मा म्हणिजे तो अद्वैत | जेथें नाहीं द्वैताद्वैत |
तेथें मीपणाचा हेत | उरेल कैंचा ||१८||
आत्मा पूर्णत्वें परिपूर्ण | जेथें नाहीं गुणागुण |
निखळ निर्गुणी आपण | कोण कैंचा ||१९||
त्वंपद तत्पद असिपद | निरसुनि सकळ भेदाभेद |
वस्तु ठाईंची अभेद | आपण कैंचा ||२०||
निरसितां जीवशिवौपाधी | जीवशिवचि कैंचे आधी |
स्वरूपीं होतां दृढबुद्धि | आपण कैंचा ||२१||
आपण मिथ्या, साच देव | देव भक्त अनन्यभाव |
या वचनाचा अभिप्राव | अनुभवी जाणती ||२२||
या नांव आत्मनिवेदन | ज्ञानियांचें समाधान |
नवमे भक्तींचे लक्षण | निरोपिलें ||२३||
पंचभूतांमध्यें आकाश | सकळ देवांमधें जगदीश |
नवविधा भक्तीमध्यें विशेष | भक्ति नवमी ||२४||
नवमी भक्ती आत्मनिवेदन | न होतां न चुके जन्ममरण |
हें वचन सत्य, प्रमाण-| अन्यथा नव्हे ||२५||
ऐसी हे नवविधा भक्ती | केल्यां पाविजे सायोज्यमुक्ती |
सायोज्यमुक्तीस कल्पांतीं | चळण नाहीं ||२६||
तिहीं मुक्तींस आहे चळण | सायोज्यमुक्ती अचळ जाण |
त्रैलोक्यास होतां निर्वाण | सायोज्यमुक्ती चळेना ||२७||
आवघीया चत्वार मुक्ती | वेदशास्त्रें बोलती |
तयांमध्यें तीन नासती | चौथी ते अविनाश ||२८||
पहिली मुक्ती ते स्वलोकता | दुसरी ते समीपता |
तिसरी ते स्वरूपता | चौथी सायोज्यमुक्ती ||२९||
ऐसिया चत्वार मुक्ती | भगवद्भजनें प्राणी पावती |
हेंचि निरूपण प्रांजळ श्रोतीं | सावध पुढें परिसावें ||३०||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मनिवेदनभक्तिनाम
समास नववा ||९||४. ९
समास दहावा : मुक्तिचतुष्टय
||श्रीराम ||
मुळीं ब्रह्म निराकार | तेथें स्फूर्तिरूप अहंकार |
तो पंचभूतांचा विचार | ज्ञानदशकीं बोलिला ||१||
तो अहंकार वायोरूप | तयावरी तेजाचें स्वरूप |
तया तेजाच्या आधारें आप | आवर्णोदक दाटलें ||२||
तया आवर्णोदकाच्या आधारें | धरा धरिली फणिवरें |
वरती छपन्न कोटी विस्तारें | वसुंधरा हे ||३||
इयेवरी परिघ सप्त सागर | मध्य मेरू माहां थोर |
अष्ट दिग्पाळ तो परिवार | अंतरें वेष्टित राहिला ||४||
तो सुवर्णाचा माहा मेरू | पृथ्वीस तयाचा आधारु |
चौर्यांसी सहस्र विस्तारु | रुंदी तयाची ||५||
उंच तरी मर्यादेवेगळा | भूमीमधें सहस्र सोळा |
तया भोवता वेष्टित पाळा | लोकालोक पर्वताचा ||६||
तया ऐलिकडे हिमाचळ | जेथें पांडव गळाले सकळ |
धर्म आणी तमाळनीळ | पुढें गेले ||७||
जेथें जावया मार्ग नाहीं | मार्गी पसरले माहा अही |
सितसुखें सुखावले ते ही | पर्वतरूप भासती ||८||
तया ऐलिकडे सेवटीं जाण | बद्रिकाश्रम बद्रिनारायण |
तेथें माहां तापसी, निर्वाण-| देहत्यागार्थ जाती ||९||
तया ऐलिकडे बद्रिकेदार | पाहोन येती लहानथोर |
ऐसा हा अवघा विस्तार | मेरुपर्वताचा ||१०||
तया मेरुपर्वतापाठारीं | तीन शृंगे विषमहारी |
परिवारें राहिले तयावरी | ब्रह्मा विष्णु महेश ||११||
ब्रह्मशृंग तो पर्वताचा | विष्णुशृंग तो मर्गजाचा |
शिवशृंग तो स्फटिकाचा | कैळास नाम त्याचें ||१२||
वैकुंठ नाम विष्णुशृंगाचें | सत्यलोक नाम
ब्रह्मशृंगाचें |
अमरावती इंद्राचें | स्थळ खालतें ||१३||
तेथें गण गंधर्व लोकपाळ | तेतिस कोटी देव सकळ |
चौदा लोक, सुवर्णाचळ-| वेष्टित राहिले ||१४||
तेथें कामधेनूचीं खिलांरें | कल्पतरूचीं बनें अपारें |
अमृताचीं सरोवरें | ठाईं ठाईं उचंबळतीं ||१५||
तेथें उदंड चिंतामणी | हिरे परिसांचियां खाणी |
तेथें सुवर्णमये धरणी | लखलखायमान ||१६||
परम रमणीये फांकती किळा | नव्वरत्नाचिया पाषाणसिळा |
तेथें अखंड हरुषवेळा | आनंदमये ||१७||
तेथें अमृतांचीं भोजनें | दिव्य गंधें दिव्य सुमनें |
अष्ट नायका गंधर्वगायनें | निरंतर ||१८||
तेथें तारुण्य वोसरेना | रोगव्याधीहि असेना |
वृधाप्य आणी मरण येना | कदाकाळीं ||१९||
तेथें येकाहूनि येक सुंदर | तेथें येकाहूनि येक चतुर |
धीर उदार आणी शूर | मर्यादेवेगळे ||२०||
तेथें दिव्यदेह ज्योतिरूपें | विद्युल्यतेसारिखीं स्वरूपें |
तेथें येश कीर्ति प्रतापें | सिमा सांडिली ||२१||
ऐसें तें स्वर्गभुवन | सकळ देवांचें वस्तें स्थान |
तयां स्थळाचें महिमान | बोलिजे तितुकें थोडें ||२२||
येथें ज्या देवाचें भजन करावें | तेथें ते देवलोकीं
राहावें |
स्वलोकता मुक्तीचें जाणावें | लक्षण ऐसें ||२३||
लोकीं राहावें ते स्वलोकता | समीप असावें ते समीपता |
स्वरूपचि व्हावें ते स्वरूपता-| तिसरी मुक्ती ||२४||
देवस्वरूप जाला देही | श्रीवत्स कौस्तुभ लक्ष्मी नाहीं |
स्वरूपतेचें लक्षण पाहीं | ऐसें असे ||२५||
सुकृत आहे तों भोगिती | सुकृत सरतांच ढकलून देती |
आपण देव ते असती | जैसे तैसे ||२६||
म्हणौनि तिनी मुक्ति नासिवंत | सायोज्यमुक्ती ते शाश्वत |
तेहि निरोपिजेल सावचित्त | ऐक आतां ||२७||
ब्रह्मांड नासेल कल्पांतीं | पर्वतासहित जळेल क्षिती |
तेव्हां अवघेच देव जाती | मां मुक्ति कैंच्या तेथें ||२८||
तेव्हां निर्गुण परमात्मा निश्चळ | निर्गुण भक्ती तेहि अचळ |
सायोज्यमुक्ती ते केवळ | जाणिजे ऐसी ||२९||
निर्गुणीं अनन्य असतां | तेणें होये सायोज्यता |
सायोज्यता म्हणिजे स्वरूपता-| निर्गुण भक्ती ||३०||
सगुण भक्ती ते चळे | निर्गुण भक्ती ते न चळे |
हें अवघें प्रांजळ कळे | सद्गुरु केलियां ||३१||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मुक्तिचतुष्टयेनाम
समास दहावा ||१०||४. १०
||दशक चौथा समाप्त ||
NA
Proofread by Vishwas Bhide and Sunder Hattangadi.
Reproofread by P. D. Kulkarni
% File name : dAsabodh04.itx
%--------------------------------------------
% Text title : Dasabodh dAsabodha dashaka 4
% Author : Swami Samartha Ramadas
% Language : Marathi, Sanskrit
% Subject : philosophy/hinduism/religion
% Description/comments : Collectively transliterated and proofread
% Transliterated by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in Sunder
% Hattangadi sunderh at hotmail.com, NA
% Proofread by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in, Sunder
% Hattangadi sunderh at hotmail.com, NA
% Reproofread by P. D. Kulkarni
% Further refinement by Shriram Deshpande
%
% Latest update : August 6, 2014
% Send corrections to : (sanskrit at cheerful dot c om)
%
% Site access :
% https://sanskritdocuments.org/marathi
% http://sanskritdocuments.org/marathi
%-----------------------------------------------------
% The text is prepared by volunteers and is to be used for personal
% study and research. The file is not to be copied or reposted for
% promotion of any website or individuals or for commercial purpose
% without permission.
% ***** Help to maintain respect for volunteer spirit. *****
%
%--------------------------------------------------------
From https://sanskritdocuments.org
Questions, comments? Write to (sanskrit at cheerful dot c om) .