||समर्थ रामदासांचा दासबोध दशक ३ ||
||दशक तिसरा : स्वगुणपरीक्षानाम ||३||
समास पहिला : जन्मदुःख निरूपण
||श्रीराम ||
जन्म दुःखाचा अंकुर | जन्म शोकाचा सागर |
जन्म भयाचा डोंगर | चळेना ऐसा ||१||
जन्म कर्माची आटणी | जन्म पातकाची खाणी |
जन्म काळाची जाचणी | निच नवी ||२||
जन्म कुविद्येचें फळ | जन्म लोभाचें कमळ |
जन्म भ्रांतीचें पडळ | ज्ञानहीन ||३||
जन्म जिवासी बंधन | जन्म मृत्यासी कारण |
जन्म हेंचि अकारण | गथागोवी ||४||
जन्म सुखाचा विसर | जन्म चिंतेचा आगर |
जन्म वासनाविस्तार | विस्तारला ||५||
जन्म जीवाची आवदसा | जन्म कल्पनेचा ठसा |
जन्म लांवेचा वळसा | ममतारूप ||६||
जन्म मायेचे मैंदावें | जन्म क्रोधाचें विरावें |
जन्म मोक्षास आडवें | विघ्न आहे ||७||
जन्म जिवाचें मीपण | जन्म अहंतेचा गुण |
जन्म हेंचि विस्मरण | ईश्वराचें ||८||
जन्म विषयांची आवडी | जन्म दुराशेची बेडी |
जन्म काळाची कांकडी | भक्षिताहे ||९||
जन्म हाचि विषमकाळ | जन्म हेंचि वोखटी वेळ |
जन्म हा अति कुश्चीळ | नर्कपतन ||१०||
पाहातां शरीराचें मूळ | या ऐसें नाहीं अमंगळ |
रजस्वलेचा जो विटाळ | त्यामध्यें जन्म यासी ||११||
अत्यंत दोष ज्या विटाळा | त्या विटाळाचाचि पुतळा |
तेथें निर्मळपणाचा सोहळा | केवी घडे ||१२||
रजस्वलेचा जो विटाळ | त्याचा आळोन जाला गाळ |
त्या गाळाचेंच केवळ | शरीर हें ||१३||
वरी वरी दिसे वैभवाचें | अंतरीं पोतडें नर्काचें |
जैसें झांकणें चर्मकुंडाचें | उघडितांच नये ||१४||
कुंड धुतां शुद्ध होतें | यास प्रत्यईं धुईजेतें |
तरी दुर्गंधी देहातें | शुद्धता न ये ||१५||
अस्तीपंजर उभविला | सीरानाडीं गुंडाळिला |
मेदमांसें सरसाविला | सांदोसांदीं भरूनी ||१६||
अशुद्ध शब्दें शुद्ध नाहीं | तेंहि भरलें असे देहीं |
नाना व्याधी दुःखें तेंहि | अभ्यांतरी वसती ||१७||
नर्काचें कोठार भरलें | आंतबाहेरी लिडीबिडिलें |
मूत्रपोतडें जमलें | दुर्गंधीचें ||१८||
जंत किडे आणी आंतडी | नाना दुर्गंधीची पोतडी |
अमुप लवथविती कातडी | कांटाळवाणी ||१९||
सर्वांगास सिर प्रमाण | तेथें बळसें वाहे घ्राण |
उठे घाणी फुटतां श्रवण | ते दुर्गंधी नेघवे ||२०||
डोळां निघती चिपडें | नाकीं दाटतीं मेकडें |
प्रातःकाळीं घाणी पडे | मुखीं मळासारिखी ||२१||
लाळ थुंका आणी मळ | पीत श्लेष्मा प्रबळ |
तयास म्हणती मुखकमळ | चंद्रासारिखें ||२२||
मुख ऐसें कुश्चीळ दिसे | पोटीं विष्ठा भरली असे |
प्रत्यक्षास प्रमाण नसे | भूमंडळीं ||२३||
पोटीं घालितां दिव्यान्न | कांहीं विष्ठा कांहीं वमन |
भागीरथीचें घेतां जीवन | त्याची होये लघुशंका ||२४||
एवं मळ मूत्र आणी वमन | हेंचि देहाचें जीवन |
येणेंचि देह वाढे जाण | यदर्थीं संशय नाहीं ||२५||
पोटीं नस्तां मळ मूत्र वोक | मरोन जाती सकळ लोक |
जाला राव अथवा रंक | पोटीं विष्ठा चुकेना ||२६||
निर्मळपणें काढूं जातां | तरी देह पडेल तत्वतां |
एवं देहाची वेवस्था | ऐसी असे ||२७||
ऐसा हा धड असतां | येथाभूत पाहों जातां |
मग ते दुर्दशा सांगतां | शंका बाधी ||२८||
ऐसिये कारागृहीं वस्ती | नवमास बहु विपत्ती |
नवहि द्वारें निरोधती | वायो कैंचा तेथें ||२९||
वोका नरकाचे रस झिरपती | ते जठराग्नीस्तव तापती |
तेणें सर्वहि उकडती | अस्तिमांस ||३०||
त्वचेविण गर्भ खोळे | तंव मातेसी होती डोहळे |
कटवतिक्षणें सर्वांग पोळे | तया बाळकाचें ||३१||
बांधलें चर्माचें मोटाळें | तेथें विष्ठेचें पेटाळें |
रसउपाय वंकनाळें | होत असे ||३२||
विष्ठा मूत्र वांती पीत | नाकीं तोंडीं निघती जंत |
तेणें निर्बुजलें चित्त | आतिशयेंसीं ||३३||
ऐसिये कारागृहीं प्राणी | पडिला अत्यंत दाटणीं |
कळवळोन म्हणे चक्रपाणी | सोडवीं येथून आतां ||३४||
देवा सोडविसी येथून | तरी मी स्वहित करीन |
गर्भवास हा चुकवीन | पुन्हां न ये येथें ||३५||
ऐसी दुखवोन प्रतिज्ञा केली | तंव जन्मवेळ पुढें आली |
माता आक्रंदों लागली | प्रसूतकाळीं ||३६||
नाकीं तोंडीं बैसलें मांस | मस्तकद्वारें सांडी स्वास |
तेंहि बुजलें निशेष | जन्मकाळीं ||३७||
मस्तकद्वार तें बुजलें | तेणें चित्त निर्बुजलें |
प्राणी तळमळूं लागलें | चहूंकडे ||३८||
स्वास उस्वास कोंडला | तेणें प्राणी जाजावला |
मार्ग दिसेनासा जाला | कासावीस ||३९||
चित्त बहु निर्बुजलें | तेणें आडभरीं भरलें |
लोक म्हणती आडवें आलें | खांडून काढा ||४०||
मग ते खांडून काढिती | हस्तपाद छेदून घेती |
हातां पडिलें तेंचि कापिती | मुख नासिक उदर ||४१||
ऐसे टवके तोडिले | बाळकें प्राण सोडिले |
मातेनेंहि सांडिलें | कळिवर ||४२||
मृत्य पावला आपण | मातेचा घेतला प्राण |
दुःख भोगिलें दारुण | गर्भवासीं ||४३||
तथापी सुकृतेंकरूनी | मार्ग सांपडला योनी |
तऱ्हीं आडकला जाउनी | कंठस्कंदीं मागुता ||४४||
तये संकोचित पंथीं | बळेंचि वोढून काढिती |
तेणें गुणें प्राण जाती | बाळकाचे ||४५||
बाळकाचे जातां प्राण | अंतीं होये विस्मरण |
तेणें पूर्वील स्मरण | विसरोन गेला ||४६||
गर्भीं म्हणे सोहं सोहं | बाहेरी पडतां म्हणे कोहं |
ऐसा कष्टी जाला बहु | गर्भवासीं ||४७||
दुःखा वरपडा होता जाला | थोरा कष्टीं बाहेरी आला |
सवेंच कष्ट विसरला | गर्भवासाचे ||४८||
सुंन्याकार जाली वृत्ती | कांहीं आठवेना चित्तीं |
अज्ञानें पडिली भ्रांती | तेणें सुखचि मानिलें ||४९||
देह विकार पावलें | सुखदुःखें झळंबळे |
असो ऐसें गुंडाळलें | मायाजाळीं ||५०||
ऐसें दुःख गर्भवासीं | होतें प्राणीमात्रांसीं |
म्हणोनियां भगवंतासी | शरण जावें ||५१||
जो भगवंताचा भक्त | तो जन्मापासून मुक्त |
ज्ञानबळें बिरक्त | सर्वकाळ ||५२||
ऐशा गर्भवासीं विपत्ती | निरोपिल्या येथामती |
सावध होऊन श्रोतीं | पुढें अवधान द्यावें ||५३||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे जन्मदुःखनिरूपणनाम
समास पहिला ||१||३. १
समास दुसरा : स्वगुणपरीक्षा
||श्रीराम ||
संसार हाचि दुःखमूळ | लागती दुःखाचे इंगळ |
मागां बोलिली तळमळ | गर्भवासाची ||१||
गर्भवासीं दुःख जालें | तें बाळक विसरलें |
पुढें वाढों लागलें | दिवसेंदिवस ||२||
बाळपणीं त्वचा कोंवळी | दुःख होतांचि तळमळी |
वाचा नाहीं तये काळीं | सुखदुःख सांगावया ||३||
देहास कांहीं दुःख जालें | अथवा क्षुधेनें पीडलें |
तरी तें परम आक्रंदलें | परी अंतर नेणवे ||४||
माता कुरवाळी वरी | परी जे पीडा जाली अंतरीं |
ते मायेसी न कळे अभ्यांतरीं | दुःख होये बाळकासीं ||५||
मागुतें मागुतें फुंजे रडे | माता बुझावी घेऊन कडे |
वेथा नेणती बापुडें | तळमळी जीवीं ||६||
नानाव्याधीचे उमाळे | तेणें दुःखें आंदोळे |
रडे पडे कां पोळे | अग्निसंगें ||७||
शरीर रक्षितां नये | घडती नाना अपाये |
खोडी अधांतरीं होये | आवेवहीन बाळक ||८||
अथवा अपाय चुकले | पूर्णपुण्य पुढें ठाकलें |
मातेस वोळखों लागलें | दिवसेंदिवस ||९||
क्षणभरी मातेस न देखे | तरी आक्रंदें रुदन करी दुःखें |
ते समईं मातेसारिखें | आणीक कांहिंच नाहीं ||१०||
आस करून वास पाहे | मातेविण कदा न राहे |
वियोग पळमात्र न साहे | स्मरण जालियां नंतरें ||११||
जरी ब्रह्मादिक देव आले | अथवा लक्ष्मीने अवलोकिलें |
तरी न वचे बुझाविलें | आपले मातेवांचुनी ||१२||
कुरूप अथवा कुलक्षण | सकळांहूनि करंटेपण |
तरी नाहीं तीसमान | भूमंडळीं कोणी ||१३||
ऐसें तें केविलवाणें | मातेविण दिसे उणें |
रागें परतें केलें तिनें | तरी आक्रंदोनी मिठी घाली ||१४||
सुख पावे मातेजवळी | दुरी करितांचि तळमळी |
अतिप्रीति तयेकाळीं | मातेवरी लागली ||१५||
तंव ते मातेस मरण आलें | प्राणी पोरटें जालें |
दुःखें झुर्णीं लागलें | आई आई म्हणोनी ||१६||
आई पाहातां दिसेना | दीनरूप पाहे जना |
आस लागलिसे मना | आई येईल म्हणोनी ||१७||
माता म्हणौन मुख पाहे | तंव ते आपुली माता नव्हे |
मग हिंवासलें राहे | दैन्यवाणें ||१८||
मातावियोगें कष्टलें | तेणें मानसीं दुःख जालें |
देहहि क्षीणत्व पावलें | आतिशयेंसीं ||१९||
अथवा माताहि वांचली | मायलेंकुरा भेटी जाली |
बाळदशा ते राहिली | दिवसेंदिवस ||२०||
बाळपण जालें उणें | दिवसेंदिवस होये शाहाणें |
मग ते मायेचें अत्यंत पेखणें | होतें, तें राहिलें ||२१||
पुढें लो लागला खेळाचा | कळप मेळविला पोरांचा |
आल्यगेल्या डायाचा | आनंद शोक वाहे ||२२||var डावाचा
मायेबापें सिकविती पोटें | तयाचें परम दुःख वाटे |
चट लागली न सुटे | संगती लेंकुरांची ||२३||
लेंकुरांमध्यें खेळतां | नाठवे माता पिता |
तंव तेंथेहि अवचिता | दुःख पावला ||२४||
पडिले दांत फुटला डोळा | मोडले पाय जाला खुळा |
गेला माज अवकळा-| ठाकून आली ||२५||
निघाल्या देवी आणी गोवर | उठलें कपाळ लागला ज्वर |
पोटसुळीं निरंतर | वायगोळा ||२६||
लागलीं भूतें जाली झडपणी | जळीच्या मेसको मायेराणी |
मुंज्या झोटिंग करणी | म्हैसोबाची ||२७||
वेताळ खंकाळ लागला | ब्रह्मगिऱ्हो संचरला |
नेणों चेडा वोलांडिला | कांहीं कळेना ||२८||
येक म्हणती बीरे देव | येक म्हणती खंडेराव |
येक म्हणती सकळ वाव | हा ब्राह्मणसमंध ||२९||
येक म्हणती कोणें केलें | आंगीं देवत घातले |
येक म्हणती चुकलें | सटवाईचें ||३०||
येक म्हणती कर्मभोग | आंगीं जडले नाना रोग |
वैद्य पंचाक्षरी चांग | बोलाऊन आणिले ||३१||
येक म्हणती हा वांचेना | येक म्हणती हा मरेना |
भोग भोगितो यातना | पापास्तव ||३२||
गर्भदुःख विसरला | तो त्रिविधतापें पोळला |
प्राणी बहुत कष्टी जाला | संसारदुःखें ||३३||
इतुकेंहि चुकोन वांचला | तरी मारमारूं शाहाणा केला |
लोकिकीं नेटका जाला | नांव राखे ऐसा ||३४||
पुढें मायबापीं लोभास्तव | संभ्रमें मांडिला विव्हाव |
दाऊनियां सकळ वैभव | नोवरी पाहिली ||३५||
वऱ्हाडीवैभव दाटलें | देखोन परमसुख वाटले |
मन हें रंगोन गेलें | सासुरवाडीकडे ||३६||
मायबापीं भलतैसें असावें | परी सासुरवाडीस नेटकें
जावें |
द्रव्य नसेल तरी घ्यावें | रुण कळांतरें ||३७||
आंतर्भाव ते सासुरवाडीं | मायेबापें राहिलीं बापुडीं |
होताती सर्वस्वें कुडकुडीं | तितुकेंच कार्य त्यांचें ||३८||
नोवरी आलियां घरा | अती हव्यास वाटे वरा |
म्हणे मजसारिखा दुसरा | कोणीच नाहीं ||३९||
मायबाप बंधु बहिणी | नोवरी न दिसतां वाटे काणी |
अत्यंत लोधला पापिणीं | अविद्येनें भुलविला ||४०||
संभोग नस्तां इतुका प्रेमा | योग्य जालिया उलंघी सीमा |
प्रीती वाढविती कामा-| करितां प्राणी गुंतला ||४१||
जरी न देखे क्षण येक डोळां | तरी जीव होय उताविळा |
प्रीतीपात्र अंतर्कळा | घेऊन गेली ||४२||
कोवळे कोवळे शब्द मंजुळ | मर्यादा लज्या मुखकमळ |
वक्त्रलोकनें केवळ | ग्रामज्याचे मैंदावें ||४३||
कळवळा येतां सांवरेना | शरीर विकळ आवरेना |
अनेत्र वेवसाईं क्रमेना | हुरहुर वाटे ||४४||
वेवसाय करितां बाहेरी | मन लागलेंसे घरीं |
क्षणाक्षणां अभ्यांतरीं | स्मरण होये कामिनीचें ||४५||
तुम्हीं माझिया जिवांतील जीव | म्हणौनी अत्यंत लाघव |
दाऊनियां चित्त सर्व | हिरोन घेतलें ||४६||
मैंद सोइरीक काढिती | फांसे घालून प्राण घेती |
तैसें आयुष्य गेलियां अंतीं | प्राणीयांस होये ||४७||
प्रीति कामिनीसीं लागली | जरी तयेसी कोणी रागेजली |
तरी परम क्षिती वाटली | मानसीं गुप्तरूपें ||४८||
तये भार्येचेनि कैवारें | मायेबापासीं नीच उत्तरें |
बोलोनियां तिरस्कारें | वेगळा निघे ||४९||
स्त्रीकारणें लाज सांडिली | स्त्रीकारणें सखीं सोडिलीं |
स्त्रीकारणें विघडिलीं | सकळहि जिवलगें ||५०||
स्त्रीकारणें देह विकिला | स्त्रीकारणें सेवक जाला |
स्त्रीकारणें सांडविला | विवेकासी ||५१||
स्त्रीकारणें लोलंगता | स्त्रीकारणें अतिनम्रता |
स्त्रीकारणें पराधेनता | अंगिकारिली ||५२||
स्त्रीकारणें लोभी जाला | स्त्रीकारणें धर्म सांडिला |
स्त्रीकारणें अंतरला | तीर्थयात्रा स्वधर्म ||५३||
स्त्रीकारणें सर्वथा कांहीं | शुभाशुभ विचारिलें नाहीं |
तनु मनु धनु सर्वही | अनन्यभावें अर्पिलें ||५४||
स्त्रीकारणें परमार्थ बुडविला | प्राणी स्वहितास नाडला |
ईश्वरीं कानकोंडा जाला | स्त्रीकारणें कामबुद्धी ||५५||
स्त्रीकारणें सोडिली भक्ती | स्त्रीकारणें सोडिली विरक्ती |
स्त्रीकारणें सायोज्यमुक्ती | तेहि तुछ्य मानिली ||५६||
येके स्त्रियेचेनि गुणें | ब्रह्मांड मानिलें ठेंगणें |
जिवलगें तीं पिसुणें | ऐसीं वाटलीं ||५७||
ऐसी अंतरप्रीति जडली | सर्वस्वाची सांडी केली |
तंव ते मरोन गेली | अकस्मात ||५८||
तेणें मनीं शोक वाढला | म्हणे थोर घात जाला |
आतां कैंचा बुडाला | संसार माझा ||५९||
जिवलगांचा सोडिला संग | अवचिता जाला घरभंग |
आतां करूं मायात्याग | म्हणे दुःखें ||६०||
स्त्री घेऊन आडवी | ऊर बडवी पोट बडवी |
लाज सांडून गौरवी | लोकां देखतां ||६१||
म्हणे माझें बुडालें घर | आतां न करी हा संसार |
दुःखें आक्रंदला थोर | घोर घोषें ||६२||
तेणें जीव वारयावेघला | सर्वस्वाचा उबग आला |
तेणें दुःखें जाला | जोगी कां महात्मा ||६३||
कां तें निघोन जाणें चुकलें | पुन्हां मागुतें लग्न केलें |
तेणें अत्यंतचि मग्न जालें | मन द्वितीय संमंधीं ||६४||
जाला द्वितीय संमंध | सवेंचि मांडिला आनंद |
श्रोतीं व्हावें सावध | पुढिले समासीं ||६५||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे स्वगुणपरीक्षानाम
समास दुसरा ||२||३. २
समास तिसरा : स्वगुणपरीक्षा
||श्रीराम ||
द्वितीय संमंध जाला | दुःख मागील विसरला |
सुख मानून राहिला | संसाराचें ||१||
जाला अत्यंत कृपण | पोटें न खाय अन्न |
रुक्याकारणें सांडी प्राण | येकसरा ||२||
कदा कल्पांतीं न वेची | सांचिलेंचि पुन्हा सांची |
अंतरीं असेल कैंची | सद्वासना ||३||
स्वयें धर्म न करी | धर्मकर्त्यासहि वारी |
सर्वकाळ निंदा करी | साधुजनाची ||४||
नेणे तीर्थ नेणे व्रत | नेणे अतित अभ्यागत |
मुंगीमुखींचें जें सीत | तेंही वेंचून सांची ||५||
स्वयें पुण्य करवेना | केलें तरी देखवेना |
उपहास्य करी मना-| नये म्हणौनी ||६||
देवां भक्तांस उछेदी | आंगबळें सकळांस खेदी |
निष्ठुर शब्दें अंतर भेदी | प्राणीमात्रांचें ||७||
नीति सांडून मागें | अनीतीनें वर्तों लागे |
गर्व धरून फुगे | सर्वकाळ ||८||
पूर्वजांस सिंतरिलें | पक्षश्राद्धहि नाहीं केलें |
कुळदैवत ठकिलें | कोणेपरी ||९||
आक्षत भरिली भाणा | दुजा ब्राह्मण मेहुणा |
आला होता पाहुणा | स्त्रियेस मूळ ||१०||
कदा नावडे हरिकथा | देव नलगे सर्वथा |
स्नानसंध्या म्हणे वृथा | कासया करावी ||११||
अभिळाषें सांची वित्त | स्वयें करी विस्वासघात |
मदें मातला उन्मत्त | तारुण्यपणें ||१२||
तारुण्य आंगीं भरलें | धारिष्ट न वचे धरिलें |
करूं नयें तेंचि केलें | माहापाप ||१३||
स्त्री केली परी धाकुटी | धीर न धरवेचि पोटीं |
विषयलोभें सेवटीं | वोळखी सांडिली ||१४||
माये बहिण न विचारी | जाला पापी परद्वारी |
दंड पावला राजद्वारीं | तऱ्हीं पालटेना ||१५||
परस्त्री देखोनि दृष्टीं | अभिळाष उठे पोटीं |
अकर्तव्यें हिंपुटी | पुन्हां होये ||१६||
ऐसें पाप उदंड केलें | शुभाशुभ नाहीं उरलें |
तेणें दोषें दुःख भरलें | अकस्मात आंगीं ||१७||
व्याधी भरली सर्वांगीं | प्राणी जाला क्षयरोगी |
केले दोष आपुले भोगी | सीघ्र काळें ||१८||
दुःखें सर्वांग फुटलें | नासिक अवघेंचि बैसलें |
लक्षण जाऊन जालें | कुलक्षण ||१९||
देहास क्षीणता आली | नाना वेथा उद्भवली |
तारुण्यशक्ती राहिली | खंगला प्राणी ||२०||
सर्वांगीं लागल्या कळा | देहास आली अवकळा |
प्राणी कांपे चळचळां | शक्ति नाहीं ||२१||
हस्तपादादिक झडले | सर्वांगीं किडे पडिले |
देखोन थुंकों लागले | लाहानथोर ||२२||
जाली विष्टेची सारणी | भोवती उठली वर्ढाणी |
अत्यंत खंगला प्राणी | जीव न वचे ||२३||
आतां मरण दे गा देवा | बहुत कष्ट जाले जीवा |
जाला नाहीं नेणों ठेवा | पातकाचा ||२४||
दुःखें घळघळां रडे | जों जों पाहे आंगाकडे |
तों तों दैन्यवाणें बापुडें | तळमळी जीवीं ||२५||
ऐसे कष्ट जाले बहुत | सकळ जालें वाताहात |
दरवडा घालून वित्त | चोरटीं नेलें ||२६||
जालें आरत्र ना परत्र | प्रारब्ध ठाकलें विचित्र |
आपला आपण मळमूत्र | सेविला दुःखें ||२७||
पापसामग्री सरली | दिवसेंदिवस वेथा हरली |
वैद्यें औषधें दिधलीं | उपचार जाला ||२८||
मरत मरत वांचला | यास पुन्हां जन्म जाला |
लोक म्हणती पडिला | माणसांमध्यें ||२९||
येरें स्त्री आणिली | बरवी घरवात मांडिली |
अति स्वार्थबुद्धी धरिली | पुन्हां मागुती ||३०||
कांहीं वैभव मेळविलें | पुन्हां सर्वही संचिलें |
परंतु गृह बुडालें | संतान नाहीं ||३१||
पुत्र संतान नस्तां दुःखी | वांज नांव पडिलें लोकिकीं |
तें न फिटे म्हणोनी लेंकी | तरी हो आतां ||३२||
म्हणोन नाना सायास | बहुत देवास केले नवस |
तीर्थें व्रतें उपवास | धरणें पारणें मांडिलें ||३३||
विषयसुख तें राहिले | वांजपणें दुःखी केलें |
तंव तें कुळदैवत पावलें | जाली वृद्धी ||३४||
त्या लेंकुरावरी अतिप्रीति | दोघेहि क्षण येक न विशंभती |
कांहीं जाल्या आक्रंदती | दीर्घस्वरें ||३५||
ऐसी ते दुःखिस्ते | पूजीत होती नाना दैवतें |
तंव तेंहि मेलें अवचितें | पूर्व पापेंकरूनी ||३६||
तेणें बहुत दुःख जालें | घरीं आरंधें पडिलें |
म्हणती आम्हांस कां ठेविलें | देवें वांज करूनी ||३७||
आम्हांस द्रव्य काये करावें | तें जावें परी अपत्य व्हावें |
अपत्यालागी त्यजावें | लागेल सर्व ||३८||
वांजपण संदिसें गेलें | तों मरतवांज नांव पडिलें |
तें न फिटे कांहीं केलें | तेणें दुःखें आक्रंदती ||३९||
आमुची वेली कां खुंटिली | हा हा देवा वृत्ती बुडाली |
कुळस्वामीण कां क्षोभली | विझाला कुळदीप ||४०||
आतां लेंकुराचें मुख देखेन | तरी आनंदें राडी चालेन |
आणी गळही टोंचीन | कुळस्वामिणीपासीं ||४१||
आई भुता करीन तुझा | नांव ठेवीन केरपुंजा |
वेसणी घालीन, माझा-| मनोरथ पुरवी ||४२||
बहुत देवांस नवस केले | बहुत गोसावी धुंडिले |
गटगटां गिळिले | सगळे विंचू ||४३||
केले समंधाचे सायास | राहाणे घातलें बहुवस |
केळें नारिकेळें ब्राह्मणास | अंब्रदानें दिधलीं ||४४||
केलीं नाना कवटालें | पुत्रलोभें केलीं ढालें |
तरी अदृष्ट फिरलें | पुत्र नाहीं ||४५
वृक्षाखालें जाऊन नाहाती | फळतीं झाडें करपती |
ऐसे नाना दोष करिती | पुत्रलोभाकारणें ||४६||
सोडून सकळ वैभव | त्यांचा वारयावेधला जीव |
तंव तो पावला खंडेराव | आणी कुळस्वामिणी ||४७||
आतां मनोरथ पुरती | स्त्रीपुरुषें आनंदती |
सावध होऊन श्रोतीं | पुढें अवधान द्यावें ||४८||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे स्वगुणपरीक्षानाम
समास तिसरा ||३||३. ३
समास चवथा : स्वगुणपरीक्षा
||श्रीराम ||
लेंकुरें उदंड जालीं | तों ते लक्ष्मी निघोन गेली |
बापडीं भिकेसी लागलीं | कांहीं खाया मिळेना ||१||
लेंकुरें खेळती धाकुटीं | येकें रांगती येकें पोटीं |
ऐसी घरभरी जाली दाटी | कन्या आणी पुत्रांची ||२||
दिवसेंदिवसा खर्च वाढला | यावा होता तो खुंटोन गेला |
कन्या उपवरी जाल्या, त्यांला-| उजवावया द्रव्य नाहीं ||३||
मायेबापें होतीं संपन्न | त्यांचें उदंड होतें धन |
तेणें करितां प्रतिष्ठा मान | जनीं जाला होता ||४||
भरम आहे लोकाचारीं | पहिली नांदणूक नाहीं घरीं |
दिवसेंदिवस अभ्यांतरीं | दरिद्र आलें ||५||
ऐसी घरवात वाढली | खातीं तोंडें मिळालीं |
तेणें प्राणीयांस लागली | काळजी उद्वेगाची ||६||
कन्या उपवरी जाल्या | पुत्रास नोवऱ्या आल्या |
आतां उजवणी केल्या | पाहिजेत कीं ||७||
जरी मुलें तैसींच राहिलीं | तरी पुन्हां लोकलाज जाली |
म्हणती कासया व्यालीं | जन्मदारिद्र्यें ||८||
ऐसी लोकलाज होईल | वडिलांचें नांव जाईल |
आतां रुण कोण देईल | लग्नापुरतें ||९||
मागें रुण ज्याचें घेतलें | त्याचें परतोन नाहीं दिल्हें |
ऐसें आभाळ कोंसळलें | उद्वेगाचें ||१०||
आपण खातों अन्नासी | अन्न खातें आपणासीं |
सर्वकाळ मानसीं | चिंतातुर ||११||
पती अवघीच मोडली | वस्तभाव गाहाण पडिली |
अहा देवा वेळ आली | आतां डिवाळ्याची ||१२||
कांहीं केला ताडामोडा | विकिला घरींचा पाडारेडा |
कांहीं पैका रोकडा | कळांतरें काढिला ||१३||
ऐसें रुण घेतलें | लोकिकीं दंभ केलें |
सकळ म्हणती नांव राखिलें | वडिलांचें ||१४||
ऐसें रुण उदंड जालें | रिणाइतीं वेढून घेतलें |
मग प्रयाण आरंभिलें | विदेशाप्रती ||१५||
दोनी वरुषें बुडी मारिली | नीच सेवा अंगीकारिली |
शरीरें आपदा भोगिली | आतिशयेंसीं ||१६||
कांहीं मेळविलें विदेशीं | जीव लागला मनुष्यांपासीं |
मग पुसोनियां स्वामीसी | मुरडता जाला ||१७||
तंव तें अत्यंत पीडावलीं | वाट पाहात बैसलीं |
म्हणती दिवसगती कां लागली | काये कारणें देवा ||१८||
आतां आम्ही काये खावें | किती उपवासीं मरावें |
ऐसियाचे संगतीस देवें | कां पां घातलें आम्हांसी ||१९||
ऐसें आपुलें सुख पाहाती | परी त्याचें दुःख नेणती |
आणी शक्ती गेलियां अंतीं | कोणीच कामा न येती ||२०||
असो ऐसी वाट पाहातां | दृष्टीं देखिला अवचिता |
मुलें धावती, ताता | भागलास म्हणौनी ||२१||
स्त्री देखोन आनंदली | म्हणे आमुची दैन्यें फिटली |
तंव येरें दिधली | गांठोडी हातीं ||२२||
सकळांस आनंद जाला | म्हणती आमुचा वडील आला |
तेणें तरी आम्हांला | आंग्या टोप्या आणिल्या ||२३||
ऐसा आनंद च्यारी दिवस | सवेंच मांडिली कुसमुस |
म्हणती हें गेलियां आम्हांस | पुन्हां आपदा लागती ||२४||
म्हणौनी आणिलें तें असावें | येणें मागुतें विदेशास जावें |
आम्ही हें खाऊं न तों यावें | द्रव्य मेळऊन ||२५||
ऐसी वासना सकळांची | अवघीं सोईरीं सुखाचीं |
स्त्री अत्यंत प्रीतीची | तेहि सुखाच लागली ||२६||
विदेसीं बहु दगदला | विश्रांती घ्यावया आला |
स्वासहि नाहीं टाकिला | तों जाणें वोढवलें ||२७||
पुढें अपेक्षा जोसियांची | केली विवंचना मुहूर्ताची |
वृत्ति गुंतली तयाची | जातां प्रशस्त न वटे ||२८||var वाटे
माया मात्रा सिद्ध केली | कांहीं सामग्री बांधली |
लेंकुरें दृष्टीस पाहिलीं | मार्गस्त जाला ||२९||
स्त्रियेस अवलोकिलें | वियोगें दुःख बहुत वाटलें |
प्रारब्धसूत्र तुकलें | रुणानबंधाचें ||३०||
कंठ सद्गदित जाला | न संवरेच गहिवरला |
लेंकुरा आणी पित्याला | तडातोडी जाली ||३१||
जरी रुणानुबंध असेल | तरी मागुती भेटी होईल |
नाहीं तरी संगती पुरेल | येचि भेटीनें तुमची ||३२||
ऐसें बोलोन स्वार होये | मागुता फीरफिरों पाहे |
वियोगदुःख न साहे | परंतु कांहीं न चले ||३३||
आपुला गांव राहिला मागें | चित्त भ्रमलें संसारौद्वेगें |
दुःखवला प्रपंचसंगें | अभिमानास्तव ||३४||
ते समईं माता आठवली | म्हणे धन्य धन्य ते माउली |
मजकारणें बहुत कष्टली | परी मी नेणेंचि मूर्ख ||३५||
आजी जरी ते असती | तरी मजला कदा न विशंभती |
वियोग होतां आक्रंदती | ते पोटागि वेगळीच ||३६||
पुत्र वैभवहीन भिकारी | माता तैसाचि अंगिकारी |
दगदला देखोन अंतरीं | त्याच्या दुःखें दुःखवे ||३७||
प्रपंच विचारें पाहातां | हें सकळ जोडे न जोडे माता |
हें शरीर जये करितां | निर्माण जालें ||३८||
लांव तरी ते माया | काय कराविया सहस्र जाया |
परी भुलोन गेलों वायां | मकरध्वजाचेनी ||३९||
या येका कामाकारणें | जिवलगांसिं द्वंद घेणें |
सखीं तींच पिसुणें | ऐसीं वाटतीं ||४०||
म्हणौन धन्य धन्य ते प्रपंची जन | जे मायेबापाचें भजन |
करिती न करिती, मन-| निष्ठुर जिवलगांसीं ||४१||
संगती स्त्रीबाळकाची | आहे साठी जन्माची |
परी मायेबापें कैंचीं | मिळतील पुढें ||४२||
ऐसें पूर्वीं होतें ऐकिलें | परी ते समईं नाहीं कळलें |
मन हें बुडोन गेलें | रतिसुखाचा डोहीं ||४३||
हे सखीं वाटती परी पिसुणें | मिळाली वैभवाकारणें |
रितें जातां लाजिरवाणें | अत्यंत वाटे ||४४||
आता भलतैसें करावें | परि द्रव्य मेळऊन न्यावें |
रितें जातां स्वभावें | दुःख आहे ||४५||
ऐसी वेवर्धना करी | दुःख वाटलें अंतरीं |
चिंतेचिये माहापुरीं | बुडोन गेला ||४६||
ऐसा हा देह आपुला | असतांच पराधेन केला |
ईश्वरीं कानकोंडा जाला | कुटुंबकाबाडी ||४७||
या येका कामासाठीं | जन्म गेला आटाटी |
वय वेचल्यां सेवटीं | येकलेंचि जावें ||४८||
ऐसा मनीं प्रस्तावला | क्षण येक उदास जाला |
सवेंचि प्राणी झळंबला | मायाजाळें ||४९||
कन्यापुत्रें आठवलीं | मनींहुनि क्षिती वाटली |
म्हणे लेंकुरें अंतरलीं | माझीं मज ||५०||
मागील दुःख आठवलें | जें जें होतें प्राप्त जालें |
मग रुदन आरंभिलें | दीर्घ स्वरें ||५१||
आरुण्यरुदन करितां | कोणी नाहीं बुझाविता |
मग होये विचारिता | आपुले मनीं ||५२||
आतां कासया रडावें | प्राप्त होतें तें भोगावें |
ऐसे बोलोनिया जीवें | धारिष्ट केलें ||५३||
ऐसा दुःखें दगदला | मग विदेशाप्रती गेला |
पुढे प्रसंग वर्तला | तो सावध ऐका ||५४||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे स्वगुणपरीक्षानाम
समास चवथा ||४||३. ४
समास पांचवा : स्वगुणपरीक्षा
||श्रीराम ||
पुढें गेला विदेशासी | प्राणी लागला व्यासंगासी |
आपल्या जिवेसीं सोसी | नाना श्रम ||१||
ऐसा दुस्तर संसार | करितां कष्टला थोर |
पुढें दोनी च्यारी संवत्सर | द्रव्य मेळविलें ||२||
सवेंचि आला देशासी | तों आवर्षण पडिलें देसीं |
तेणें गुणें मनुष्यांसी | बहुत कष्ट जाले ||३||
येकांच्या बैसल्या अमृतकळा | येकांस चंद्री लागली डोळां |
येकें कांपती चळचळा | दैन्यवाणीं ||४||
येकें दीनरूप बैसलीं | येकें सुजलीं येकें मेलीं |
ऐसीं कन्यापुत्रें देखिलीं | अकस्मात डोळां ||५||
तेणें बहुत दुःखी जाला | देखोनिया उभड आला |
प्राणी आक्रंदों लागला | दैन्यवाणा ||६||
तंव तीं अवघीं सावध जालीं | म्हणती बाबा बाबा
जेऊं घाली |
अन्नालागीं मिडकलीं | झडा घालिती ||७||
गांठोडें सोडून पाहाती | हातां पडिलें तेंचि खाती |
कांहीं तोंडीं कांहीं हातीं | प्राण जाती निघोनी ||८||
तांतडी तांतडी जेऊं घाली | तों तें जेवितां
जेवितां कांहीं मेलीं |
कांहीं होतीं धादावलीं | तेंहि मेलीं अजीर्णें ||९||
ऐसीं बहुतेकें मेलीं | येक दोनीं मुलें उरलीं |
तेंहि दैन्यवाणीं जालीं | आपलें मातेवांचुनी ||१०||
ऐसे आवर्षण आलें | तेणें घरचि बुडालें |
पुढें देसीं सुभिक्ष जालें | आतिशयेंसी ||११||
लेकुरां नाहीं वाढवितें | अन्न करावें लागे आपुलेन हातें |
बहु त्रास घेतला चित्तें | स्वयंपाकाचा ||१२||
लोकीं भरीस घातलें | पुन्हां मागुतें लग्न केलें |
द्रव्य होतें तें वेचलें | लग्नाकारणें ||१३||
पुन्हां विदेशासी गेला | द्रव्य मेळऊन आला |
तव घरीं कळहो लागला | सावत्र पुत्रांसी ||१४||
स्त्री जाली न्हातीधुती | पुत्र देखों न सकती |
भ्रताराची गेली शक्ती | वृद्ध जाला ||१५||
सदा भांडण पुत्रांचें | कोणी नायकती कोणाचें |
वनिता अति प्रीतीचें | प्रीतिपात्र ||१६||
किंत बैसला मनां | येके ठाई पडेना |
म्हणोनियां पांचा जणा | मेळविलें ||१७||
पांच जण वांटे करिती | तों ते पुत्र नायेकती |
निवाडा नव्हेचि अंतीं-| भांडण लागलें ||१८||
बापलेकां भांडण जालें | लेंकीं बापास मारिलें |
तंव ते मातेनें घेतलें | शंखतीर्थ ||१९||
ऐकोनि मिळाले लोक | उभे पाहाती कौतुक |
म्हणती बापास लेक | कामा आले ||२०||
ज्या कारणें केले नवस | ज्या कारणें केले सायास |
ते पुत्र पितीयास | मारिती पहा ||२१||
ऐसी आली पापकळी | आश्चिर्य मानिलें सकळीं |
उभे तोडिती कळी | नगरलोक ||२२||
पुढें बैसोन पांच जण | वांटे केले तत्समान |
बापलेंकांचें भांडण | तोडिलें तेहीं ||२३||
बापास वेगळें घातलें | कोंपट बांधोन दिधलें |
मन कांतेचें लागलें | स्वार्थबुद्धी ||२४||
कांता तरुण पुरुष वृद्ध | दोघांस पडिला संमंध |
खेद सांडून आनंद | मानिला तेहीं ||२५||
स्त्री सांपडली सुंदर | गुणवंत आणी चतुर |
म्हणे माझें भाग्य थोर | वृद्धपणीं ||२६||
ऐसा आनंद मानिला | दुःख सर्वही विसरला |
तंव तो गल्बला जाला | परचक्र आलें ||२७||
अकस्मात धाडी आली | कांता बंदीं धरून नेली |
वस्तभावही गेली | प्राणीयाची ||२८||
तेणें दुःख जालें भारीं | दीर्घ स्वरें रुदन करी |
मनीं आठवे सुंदरी | गुणवंत ||२९||
तंव तिची वार्ता आली | तुमची कांता भ्रष्टली |
ऐकोनियां आंग घाली | पृथ्वीवरी ||३०||
सव्य अपसव्य लोळे | जळें पाझरती डोळे |
आठवितां चित्त पोळे | दुःखानळें ||३१||
द्रव्य होतें मेळविलें | तेंही लग्नास वेचलें |
कांतेसिही धरून नेलें | दुराचारी ||३२||
मजही वृद्धाप्य आलें | लेंकीं वेगळें घातलें |
अहा देवा वोढवलें | अदृष्ट माझें ||३३||
द्रव्य नाहीं कांता नाहीं | ठाव नाहीं शक्ति नाहीं |
देवा मज कोणीच नाहीं | तुजवेगळें ||३४||
पूर्वीं देव नाहीं पुजिला | वैभव देखोन भुलला |
सेखीं प्राणी प्रस्तावला | वृद्धपणीं ||३५||
देह अत्यंत खंगलें | सर्वांग वाळोन गेलें |
वातपीत उसळलें | कंठ दाटला कफें ||३६||
वळे जिव्हेची बोबडी | कफें कंठ घडघडी |
दुर्गंधी सुटली तोंडीं | नाकीं स्लेष्मा वाहे ||३७||
मान कांपे चळचळां | डोळे गळती भळभळां |
वृद्धपणीं अवकळा | ठाकून आली ||३८||
दंतपाटी उखळली | तेणें बोचरखिंडी पडिली |
मुखीं लाळ गळों लागली | दुर्गंधीची ||३९||
डोळां पाहातां दिसेना | कानीं शब्द ऐकेना |
दीर्घ स्वरें बोलवेना | दमा दाटे ||४०||
शक्ती पायांची राहिली | बैसवेना मुरुकुंडी घाली |
बृहती वाजों लागली | तोंडाच ऐसी ||४१||
क्षुधा लागतां आवरेना | अन्न समईं मिळेना |
मिळालें तरी चावेना | दांत गेले ||४२||
पित्तें जिरेना अन्न | भक्षीतांच होये वमन |
तैसेंचि जाये निघोन | अपानद्वारें ||४३||
विष्टा मूत्र आणि बळस | भोवता वमनें केला नास |
दुरून जातां कोंडे स्वास | विश्वजनाचा ||४४||
नाना दुःखें नाना व्याधी | वृद्धपणीं चळे बुद्धी |
तऱ्हीं पुरेना आवधी | आयुष्याची ||४५||
पापण्या भवयाचे केंश | पिकोन झडले निःशेष |
सर्वांगीं लोंबलें मांस | चिरकुटासारिखें ||४६||
देह सर्व पारिखें जालें | सवंगडे निःशेष राहिले |
सकळ प्राणीमात्र बोले | मरेना कां ||४७||
जें जन्मून पोसलीं | तेंचि फिरोन पडिलीं |
अंतीं विषम वेळ आली | प्राणीयासी ||४८||
गेलें तारुण्य गेलें बळ | गेलें संसारीचें सळ |
वाताहात जालें सकळ | शरीर आणी संपत्ती ||४९||
जन्मवरी स्वार्थ केला | तितुकाहि वेर्थ गेला |
कैसा विषम काळ आला | अंतकाळीं ||५०||
सुखाकारणें झुरला | सेखीं दुःखें कष्टी जाला |
पुढें मागुता धोका आला | येमयातनेचा ||५१||
जन्म अवघा दुःखमूळ | लागती दुःखाचे इंगळ |
म्हणोनियां तत्काळ | स्वहित करावें ||५२||
असो ऐसें वृद्धपण | सकळांस आहे दारुण |
म्हणोनियां शरण | भगवंतास जावें ||५३||
पुढें वृद्धीस तत्वतां | गर्भीं प्रस्तावा होता |
तोचि आला मागुता | अंतकाळीं ||५४||
म्हणौनि मागुतें जन्मांतर | प्राप्त मातेचें उदर |
संसार हा अति दुस्तर | तोचि ठाकून आला ||५५||
भगवद्भजनावांचुनी | चुकेना हे जन्मयोनि |
तापत्रयांची जाचणी | सांगिजेल पुढे ||५६||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे स्वगुणपरीक्षानाम
समास पांचवा ||५||३. ५
समास सहावा : आध्यात्मिक ताप
||श्रीराम ||
तापत्रयाचें लक्षण | आतां सांगिजेल निरूपण |
श्रोतीं करावें श्रवण | येकाग्र होऊनी ||१||
जो तापत्रैं पोळला | तो संतसंगें निवाला |
आर्तभूत तोषला | पदार्थ जेवी ||२||
क्षुधाक्रांतास मिळे अन्न | तृषाक्रांतास जीवन |
बंदीं पडिल्याचें बंधन-| तोडितां, सुख ||३||
माहापुरें जाजावला | तो पैलतीरास नेला |
कां तो स्वप्नींचा चेइला | स्वप्नदुःखी ||४||
कोणी येकासी मरण-| येतां, दिलें जीवदान |
संकटास निवारण | तोडितां सुख ||५||
रोगियास औषध | सप्रचित आणी शुद्ध |
तयासी होये आनंद | आरोग्य होतां ||६||
तैसा संसारें दुःखवला | त्रिविधतापें पोळला |
तोचि येक अधिकारी जाला | परमार्थासी ||७||
ते त्रिविध ताप ते कैसे | आतां बोलिजेत तैसे |
येविषईं येक असे | वाक्याधार ||८||
श्लोक ||देहेंद्रियप्राणेन सुखं दुःखं च प्राप्यते |
इममाध्यात्मिकं तापं जायते दुःख देहिनाम् ||१||
सर्वभूतेन संयोगात् सुखं दुःखं च जायते |
द्वितीयतापसंतापः सत्यं चैवाधिभौतिकः ||२||
शुभाशुभेन कर्मणा देहांते यमयातना |
स्वर्गनरकादिं भोक्तव्यमिदं चैवाधिदैविकम् ||३||
येक ताप आध्यात्मिक | दुजा तो आदिभूतिक |
तिसरा आदिदैविक | ताप जाणावा ||९||
आध्यात्मिक तो कोण | कैसी त्याची वोळखण |
आदिभूतिकांचें लक्षण | जाणिजे कैसें ||१०||
आदिदैविक तो कैसा | कवण तयाची दशा |
हेंहि विशद कळे ऐसा | विस्तार कीजे ||११||
हां जी म्हणोनि वक्ता | जाला कथा विस्तारिता |
आध्यात्मिक ताप आतां | सावध ऐका ||१२||
देह इंद्रिय आणी प्राण | यांचेनि योगें आपण |
सुखदुःखें सिणे जाण | या नांव आध्यात्मिक ||१३||
देहामधून जें आलें | इंद्रियें प्राणें दुःख जालें |
तें आध्यात्मिक बोलिलें | तापत्रईं ||१४||
देहामधून काये आलें | प्राणें कोण दुःख जालें |
आतां हें विशद केलें | पाहिजे कीं ||१५||
खरुज खवडे पुळिया नारु | नखरुडें मांजऱ्या देवि गोवरु |
देहामधील विकारु | या नांव आध्यात्मिक ||१६||
काखमांजरी केशतोड | वोखटें वर्ण काळफोड |
व्याधी मूळव्याधी माहाजड | या नांव आध्यात्मिक ||१७||
अंगुळवेडे गालफुगी | कंड लागे वाउगी |
हिरडी सुजे भरे बलंगी | या नांव आध्यात्मिक ||१८||
वाउगे फोड उठती | कां ते सुजे आंगकांती |
वात आणी तिडका लागती | या नांव आध्यात्मिक ||१९||
नाइटे अंदु गजकर्ण | पेहाचे पोट विस्तीर्ण |
बैसलें टाळें फुटती कर्ण | या नांव आध्यात्मिक ||२०||
कुष्ट आणि वोला कुष्ट | पंड्यारोग अतिश्रेष्ठ |
क्षयरोगाचे कष्ट | या नांव आध्यात्मिक ||२१||
वाटी वटक वायेगोळा | हातीं पाईं लागती कळा |
भोवंडी लागे वेळोवेळां | या नांव आध्यात्मिक ||२२||
वोलांडा आणी वळ | पोटसुळाची तळमळ |
आर्धशिसी उठे कपाळ | या नांव आध्यात्मिक ||२३||
दुःखे माज आणि मान | पुष्ठी ग्रीवा आणि वदन |
अस्तिसांदे दुःखती जाण | या नांव आध्यात्मिक ||२४||
कुळिक तरळ कामिणी | मुरमा सुंठरें माळिणी |
विदेसीं लागलें पाणी | या नांव आध्यात्मिक ||२५||
जळसोस आणी हिवारें | गिरीविरी आणी अंधारें |
ज्वर पाचाव आणी शारें | या नांव आध्यात्मिक ||२६||
शैत्य उष्ण आणी तृषा | क्षुधा निद्रा आणी दिशा |
विषयतृष्णेची दुर्दशा | या नांव आध्यात्मिक ||२७||
आळसी मूर्ख आणी अपेसी | भय उद्भवे मानसीं |
विसराळु दुश्चित्त आहिर्निशी | या नांव आध्यात्मिक ||२८||
मूत्रकोड आणी परमें | रक्तपिती रक्तपरमें |
खडाचढाचेनि श्रमे | या नांव आध्यात्मिक ||२९||
मुरडा हागवण उन्हाळे | दिशा कोंडतां आंदोळे |
येक वेथा असोन न कळे | या नांव आध्यात्मिक ||३०||
गांठी ढळली जाले जंत | पडे आंव आणी रक्त |
अन्न तैसेचि पडत | या नांव आध्यात्मिक ||३१||
पोटफुगी आणी तडस | भरला हिर लागला घांस |
फोडी लागतां कासावीस | या नांव आध्यात्मिक ||३२||
उचकी लागली उसित गेला | पीत उसळलें उलाट जाला |
खरे पडसा आणी खोंकला | या नांव आध्यात्मिक ||३३||
उसळला दमा आणी धाप | पडजिभ ढासि आणी कफ |
मोवाज्वर आणी संताप | या नांव आध्यात्मिक ||३४||
कोणी सेंदूर घातला | तेणें प्राणी निर्बुजला |
घशामध्ये फोड जाला | या नांव आध्यात्मिक ||३५||
गळसोट्या आणी जीभ झडे | सदा मुखीं दुर्गंधी पडे |
दंतहीन लागती किडे | या नांव आध्यात्मिक ||३६||
जरंडी घोलाणा गंडमाळा | अवचिता स्वयें फुटे डोळा |
आपणचि कापी अंगुळा | या नांव आध्यात्मिक ||३७||
कळा तिडका लागती | कां ते दंत उन्मळती |
अधर जिव्हा रगडती | या नांव आध्यात्मिक ||३८||
कर्णदुःख नेत्र दुःख | नाना दुःखें घडे शोक |
गर्भांध आणी नपुश्यक | या नांव आध्यात्मिक ||३९||
फुलें वडस आणी पडळें | कीड गर्ता रातांधळें |
दुश्चित्त भ्रमिष्ट आणी खुळें | या नांव आध्यात्मिक ||४०||
मुकें बधीर राखोंडें | थोटें चळलें आणी वेडें |
पांगुळ कुर्हें आणी पावडे | या नांव आध्यात्मिक ||४१||
तारसें घुलें काणें कैरें | गारोळें जामुन टाफरें |
शडांगुळें गेंगाणें विदरें | या नांव आध्यात्मिक ||४२||
दांतिरें बोचिरें घानाळ | घ्राणहीन श्रोत्रहीन बरळ |
अति कृश अति स्थूळ | या नांव आध्यात्मिक ||४३||
तोंतरें बोंबडें निर्बळ | रोगी कुरूप कुटीळ |
मत्सरी खादाड तपीळ | या नांव आध्यात्मिक ||४४||
संतापी अनुतापी मत्सरी | कामिक हेवा तिरस्कारी |
पापी अवगुणी विकारी | या नांव आध्यात्मिक ||४५||
उठवणें ताठा करक | आवटळे आणी लचक |
सुजी आणी चालक | या नांव आध्यात्मिक ||४६||
सल आडवें गर्भपात | स्तनगुंते सनपात |
संसारकोंडे आपमृत्य | या नांव आध्यात्मिक ||४७||
नखविख आणी हिंगुर्डें | बाष्ट आणी वावडें |
उगीच दांतखीळ पडे | या नांव आध्यात्मिक ||४८||
झडती पातीं सुजती भवया | नेत्रीं होती राझणवडीया |
चाळसी लागे प्राणियां | या नांव आध्यात्मिक ||४९||
वांग तिळ सुरमें लांसें | चामखिळ गलंडे मसें |
चुकुर होइजे मानसें | या नांव आध्यात्मिक ||५०||
नाना फुग आणी आवाळें | आंगीं दुर्गंधी प्रबळे |
चाईचाटी लाळ गळे | या नांव आध्यात्मिक ||५१||
नाना चिंतेची काजळी | नाना दुःखें चित्त पोळी |
व्याधीवांचून तळमळी | या नांव आध्यात्मिक ||५२||
वृद्धपणीच्या आपदा | नाना रोग होती सदा |
देह क्षीण सर्वदा | या नांव आध्यात्मिक ||५३||
नाना व्याधी नाना दुःखें | नाना भोग नाना खांडकें |
प्राणी तळमळी शोकें | या नांव आध्यात्मिक ||५४||
ऐसा आध्यात्मिक ताप | पूर्वपापाचा संताप |
सांगतां सरेना अमूप | दुःखसागर ||५५||
बहुत काय बोलावें | श्रोतीं संकेतें जाणावें |
पुढें बोलिजे स्वभावें | आदिभूतिक ||५६||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आध्यात्मिकतापनिरूपणनाम
समास सहावा ||६||३. ६
समास सातवा : आधिभूतिक ताप
||श्रीराम ||
मागां जालें निरूपण | आध्यात्मिकाचें लक्षण |
आतां आदिभूतिक तो कोण | सांगिजेल ||१||
श्लोक ||सर्वभूतेन संयोगात् सुखं दुःखं च जायते |
द्वितीयतापसंतापः सत्यं चैवाधिभौतिकः ||
सर्व भूतांचेनि संयोगें | सुखदुःख उपजों लागे |
ताप होतां मन भंगे | या नांव आदिभूतिक ||२||
तरी या आदिभूतिकाचें लक्षण | प्रांजळ करूं निरूपण |
जेणें अनुभवास ये पूर्ण | वोळखी तापत्रयाची ||३||
ठेंचा लागती मोडती कांटे | विझती शस्त्रांचे धायटे |
सल सिलका आणी सरांटे | या नांव आदिभूतिक ||४||
अंग्या आणी काचकुहिरी | आवचटा लागे शरीरीं |
गांधील येऊन दंश करी | या नांव आदिभूतिक ||५||
मासी गोमासी मोहळमासी | मुंगी तेलमुंगी डांस दसी |
सोट जळू लागे यासी | आदिभूतिक बोलिजे ||६||
पिसा पिसोळे चांचण | कुसळें मुंगळे ढेंकुण |
विसीफ भोवर गोंचिड जाण | या नांव आदिभूतिक ||७||
गोंबी विंचु आणी विखार | व्याघ्र लांडिगे आणी शूकर |
गौसायळ सामर | या नांव आदिभूतिक ||८||
रानगाई रानम्हैसे | रानशकट्ट आणी रीसें |
रानहाती लांवपिसें | या नांव आदिभूतिक ||९||
सुसरीनें वोढून नेलें | कां तें आवचितें बुडालें |
आथवा खळाळीं पडिलें | या नांव आदिभूतिक ||१०||
नाना विखारें आजगर | नाना मगरें जळचर |
नाना वनचरें अपार | या नांव आदिभूतिक ||११||
अश्व वृषभ आणी खर | स्वान शूकर जंबुक मार्जर |
ऐसीं बहुविध क्रूर | या नांव आदिभूतिक ||१२||
ऐसीं कर्कशें भयानकें | बहुविध दुःखदायकें |
दुःखें दारुणें अनेकें | या नांव आदिभूतिक ||१३||
भिंती माळवंदे पडती | कडे भुयेरीं कोंसळती |
वृक्ष आंगावरी मोडती | या नांव आदिभूतिक ||१४||
कोणी येकाचा श्राप जडे | कोणी येकें केले चेडे |
आधांतरी होती वेडे | या नांव आदिभूतिक ||१५||
कोणी येकें चाळविलें | कोणी येकें भ्रष्टविले |
कोणी येकें धरून नेलें | या नांव आदिभूतिक ||१६||
कोणी येकें दिलें वीष | कोणी येकें लाविले दोष |
कोणी येकें घातलें पाश | या नांव आदिभूतिक ||१७||
अवचिता सेर लागला | नेणो बिबवा चिडला |
प्राणी धुरें जाजावला | या नांव आदिभूतिक ||१८||
इंगळावरी पाय पडे | शिळेखालें हात सांपडे |
धावतां आडखुळे पडे | या नांव आदिभूतिक ||१९||
वापी कूप सरोवर | गर्ता कडा नदीतीर |
आवचितें पडे शरीर | या नांव आदिभूतिक ||२०||
दुर्गाखालें कोंसळती | झाडावरून पडती |
तेणें दुःखें आक्रंदती | या नांव आदिभूतिक ||२१||
सीतें वोठ तरकती | हात पाव टांका फुटती |
चिखल्या जिव्हाळ्या लागती | या नांव आदिभूतिक ||२२||
अशनपानाचिये वेळे | उष्ण रसें जिव्हा पोळे |
दांत कस्करे आणी हरळे | या नांव आदिभूतिक ||२३||
पराधेन बाळपणीं | कुशब्दमारजाचणी |
अन्नवस्त्रेंवीण आळणी | या नांव आदिभूतिक ||२४||
सासुरवास गालोरे | ठुणके लासणें चिमोरे |
आलें रुदन न धरे | या नांव आदिभूतिक ||२५||
चुकतां कान पिळिती | कां तो डोळा हिंग घालिती |
सर्वकाळ धारकीं धरिती | या नांव आदिभूतिक ||२६||
नाना प्रकारीचे मार | दुर्जन मारिती अपार |
दुरी अंतरे माहेर | या नांव आदिभूतिक ||२७||
कर्णनासिक विंधिलें | बळेंचि धरून गोंधिलें |
खोडी जालिया पोळविलें | या नांव आदिभूतिक ||२८||
परचक्रीं धरून नेलें | नीच यातीस दिधलें |
दुर्दशा होऊन मेलें | या नांव आदिभूतिक ||२९||
नाना रोग उद्भवले | जे आध्यात्मिकीं बोलिले |
वैद्य पंचाक्षरी आणिले | या नांव आदिभूतिक ||३०||
नाना वेथेचें निर्शन | व्हावया औषध दारुण |
बळात्कारें देती जाण | या नांव आदिभूतिक ||३१||
नाना वल्लीचे रस | काडे गर्गोड कर्कश |
घेतां होये कासावीस | या नांव आदिभूतिक ||३२||
ढाळ आणी उखाळ देती | पथ्य कठीण सांगती |
अनुपान चुकतां विपत्ती | या नांव आदिभूतिक ||३३||
फाड रक्त फांसणी | गुल्लडागांची जाचणी |
तेणें दुःखें दुःखवे प्राणी | या नांव आदिभूतिक ||३४||
रुचिक बिबवे घालिती | नाना दुःखें दडपे देती |
सिरा तोडिती जळा लाविती | या नांव आदिभूतिक ||३५||var जळवा
बहु रोग बहु औषधें | सांगतां अपारें अगाधें |
प्राणी दुखवे तेणें खेदें | या नांव आदिभूतिक ||३६||
बोलाविला पंचाक्षरी | धूरमार पीडा करी |
नाना यातना चतुरीं | आदिभूतिक जाणिजे ||३७||
दरवडे घालूनियां जना | तश्कर करिती यातना |
तेणें दुःख होये मना | या नांव आदिभूतिक ||३८||
अग्नीचेनि ज्वाळें पोळे | तेणें दुःखें प्राणी हरंबळे |
हानी जालियां विवळे | या नांव आदिभूतिक ||३९||
नाना मंदिरें सुंदरें | नाना रत्नांचीं भांडारें |
दिव्यांबरें मनोहरें | दग्ध होती ||४०||
नाना धान्यें नाना पदार्थ | नाना पशु नाना स्वार्थ |
नाना पात्रें नाना अर्थ | मनुष्यें भस्म होती ||४१||
आग्न लागला सेती | धान्यें बणव्या आणी खडकुती |
युक्षदंड जळोन जाती | अकस्मात ||४२||
ऐसा आग्न लागला | अथवा कोणी लाविला |
हानी जाली कां पोळला | या नांव आदिभूतिक ||४३||
ऐसें सांगतां बहुत | होती वन्हीचे आघात |
तेणे दुःखें दुःखवे चित्त | या नांव आदिभूतिक ||४४||
हारपे विसरे आणी सांडे | नासे गाहाळ फुटे पडे |
असाध्य होये कोणीकडे | या नांव आदिभूतिक ||४५||
प्राणी स्थानभ्रष्ट जालें | नाना पशूतें चुकलें |
कन्यापुत्र गाहाळले | या नांव आदिभूतिक ||४६||
तश्कर अथवा दावेदार | आवचितां करिती संव्हार |
लुटिती घरें नेती खिल्लार | या नांव आदिभूतिक ||४७||
नाना धान्यें केळी कापिती | पानमळां मीठ घालिती |
ऐसे नाना आघात करिती | या नांव आदिभूतिक ||४८||
मैंद उचले खाणोरी | सुवर्णपंथी भुररेकरी |
ठकु सिंतरु वरपेकरी | वरपा घालिती ||४९||
गठीछोडे द्रव्य सोडिती | नाना आळंकार काढिती |
नाना वस्तु मूषक नेती | या नांव आदिभूतिक ||५०||
वीज पडे हिंव पडे | प्राणी प्रजंनी सांपडे |
कां तो माहापुरीं बुडे | या नांव आदिभूतिक ||५१||
भोवरें वळणें आणी धार | वोसाणें लाटा अपार |
वृश्चिक गोंबी आजगर | वाहोन जाती ||५२||
तयामधें प्राणी सांपडला | खडकी बेटीं आडकला |
बुडत बुडत वांचला | या नांव आदिभूतिक ||५३||
मनासारिखा नसे संसार | कुरूप कर्कश स्त्री क्रूर |
विधवा कन्या मूर्ख पुत्र | या नांव आदिभूतिक ||५४||
भूत पिशाच्च लागलें | आंगावरून वारें गेलें |
अबद्धमंत्रे प्राणी चळलें | या नांव आदिभूतिक ||५५||
ब्राह्मणसमंध शरीरीं | बहुसाल पीडा करी |
शनेश्वराचा धोका धरी | या नांव आदिभूतिक ||५६||
नाना ग्रहे काळवार | काळतिथी घातचंद्र |
काळवेळ घातनक्षत्र | या नांव आदिभूतिक ||५७||
सिंक पिंगळा आणी पाली | वोखटें होला काक कलाली |
चिंता काजळी लागली | या नांव आदिभूतिक ||५८||
दिवटा सरवदा भाकून गेला | अंतरीं धोका लागला |
दुःस्वप्नें जाजावला | या नांव आदिभूतिक ||५९||
भालु भुंके स्वान रडे | पाली अंगावरी पडे |
नाना चिन्हें चिंता पवाडे | या नांव आदिभूतिक ||६०||
बाहेरी निघतां अपशकून | नाना प्रकारें विछिन्न |
तेणें गुणें भंगे मन | या नांव आदिभूतिक ||६१||
प्राणी बंदी सांपडला | यातने वरपडा जाला |
नाना दुःखें दुःखवला | या नांव आदिभूतिक ||६२||
प्राणी राजदंड पावत | जेरबंद चाबुक वेत |
दरेमार तळवेमार होत | या नांव आदिभूतिक ||६३||
कोरडे पारंब्या फोक | बहुप्रकारें अनेक |
बहुताडिती आदिभूतिक | या नांव बोलिजे ||६४||
मोघरीमार बुधलेमार | चौखुरून डंगारणेमार |
बुक्या गचांड्या गुढघेमार | या नांव आदिभूतिक ||६५||
लाता तपराखा सेणमार | कानखडे दगडमार | var चतराखा
नाना प्रकारींचे मार | या नांव आदिभूतिक ||६६||
टांगणें टिपऱ्या पिछोडे | बेडी बुधनाल कोलदंडे |
रक्षणनिग्रह चहूंकडे | या नांव आदिभूतिक ||६७||
नाकवणी चुनवणी | मीठवणी रायवणी |
गुळवण्याची जाचणी | या नांव आदिभूतिक ||६८||
जळामध्यें बुचकळिती | हस्तीपुढें बांधोन टाकिती |
हाकिती छळिती यातायाती | या नांव आदिभूतिक ||६९||
कर्णछेद घ्राणछेद | हस्तछेद पादछेद |
जिव्हाछेद अधरछेद | या नांव आदिभूतिक ||७०||
तीरमार सुळीं देती | नेत्र वृषण काढिती |
नखोनखीं सुया मारिती | या नांव आदिभूतिक ||७१||
पारड्यामध्यें घालणें | कां कडेलोट करणें |
कां भांड्यामुखें उडवणें | या नांव आदिभूतिक ||७२||
कानीं खुंट्या आदळिती | अपानीं मेखा मारिती |
खाल काढून टाकिती | या नांव आदिभूतिक ||७३||
भोत आणी बोटबोटी | अथवा गळ घालणें कंठीं |
सांडस लावून आटाटी | या नांव आदिभूतिक ||७४||
सिसें पाजणें वीष देणें | अथवा सिरछेद करणें |
कां पायातळीं घालणें | या नांव आदिभूतिक ||७५||
सरड मांजरें भरिती | अथवा फांसीं नेऊन देती |
नानापरी पीडा करिती | या नांव आदिभूतिक ||७६||
स्वानप्रळये व्याघ्रप्रळये | भूतप्रळये सुसरीप्रळये |
शस्त्रप्रळये विझप्रळये | या नांव आदिभूतिक ||७७||
सीरा वोढून घेती | टेंभें लाउन भाजिती |
ऐशा नाना विपत्ती | या नांव आदिभूतिक ||७८||
मनुष्यहानी वित्तहानी | वैभवहानी महत्वहानी | var महत्त्व
पशुहानी पदार्थहानी | या नांव आदिभूतिक ||७९||
बाळपणीं मरे माता | तारुण्यपणीं मरे कांता |
वृद्धपणीं मृत्य सुता | या नांव आदिभूतिक ||८०||
दुःख दारिद्र आणी रुण | विदेशपळणी नागवण |
आपदा अनुपत्ति कदान्न | या नांव आदिभूतिक ||८१||
आकांत वाखाप्रळये | युध्य होतां पराजये |
जिवलगांचा होये क्षये | या नांव आदिभूतिक ||८२||
कठीण काळ आणी दुष्काळ | साशंक आणी वोखटी वेळ |
उद्वेग चिंतेचे हळाळ | या नांव आदिभूतिक ||८३||
घाणा चरखीं सिरकला | चाकाखालें सांपडला |
नाना वन्हींत पडिला | या नांव आदिभूतिक ||८४||
नाना शस्त्रें भेदिला | नाना स्वापदीं भक्षिला |
नाना बंदीं पडिला | या नांव आदिभूतिक ||८५||
नाना कुवासें निर्बुजे | नाना अपमानें लाजे |
नाना शोकें प्राणी झिजे | या नांव आदिभूतिक ||८६||
ऐसें सांगतां अपार | आहेत दुःखाचे डोंगर |
श्रोतीं जाणावा विचार | आदिभूतिकाचा ||८७||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आदिभूतिकतापनिरूपणनाम
समास सातवा ||७||३. ७
समास आठवा : आधिदैविक ताप
||श्रीराम ||
मागां बोलिला आध्यात्मिक | त्याउपरीं आदिभूतिक |
आतां बोलिजेल आदिदैविक | तो सावध ऐका ||१||
श्लोक ||शुभाशुभेन कर्मणा देहांते यमयातना |
स्वर्गनरकादिभोक्तव्यमिदं चैवाधिदैविकम् ||
शुभाशुभ कर्मानें जना | देहांतीं येमयातना |
स्वर्ग नर्क भोग नाना | या नांव आधिदैविक ||२||
नाना दोष नाना पातकें | मदांधपणें अविवेकें |
केलीं, परी तें दुःखदायकें | येमयातना भोगविती ||३||
आंगबळें द्रव्यबळें | मनुष्यबळें राजबळें |
नाना सामर्थ्याचेनि बळें | अकृत्य करिती ||४||
नीती सांडूनियां तत्वतां | करूं नये तेंचि करितां |
येमयातना भोगितां | जीव जाये ||५||
डोळे झांकून स्वार्थबुद्धीं | नाना अभिळाश कुबुद्धीं |
वृत्ति भूमिसिमा सांधी | द्रव्य दारा पदार्थ ||६||
मातलेपणें उन्मत्त | जीवघात कुटुंबघात |
अप्रमाण क्रिया करीत | म्हणौन येमयातना ||७||
मर्यादा सांडूनि चालती | ग्रामा दंडी ग्रामाधिपती |
देशा दंडी देशाधिपती | नीतिन्याय सांडितां ||८||
देशाधिपतीस दंडिता रावो | रायास दंडिता देवो |
राजा न करितां नीतिन्यावो | म्हणौन यमयातना ||९||
अनीतीनें स्वार्थ पाहे | राजा पापी होऊन राहे |
राज्याअंतीं नर्क आहे | म्हणौनियां ||१०||
राजा सांडितां राजनीति | तयास येम गांजिती |
येम नीति सांडितां धावती | देवगण ||११||
ऐसी मर्यादा लाविली देवें | म्हणौनि नीतीनें वर्तावें |
नीति न्याय सांडितां भोगावें | येमयातनेसी ||१२||
देवें प्रेरिले येम | म्हणौनि आदिदैविक नाम |
तृतीय ताप दुर्गम | येमयातनेचा ||१३||
येमदंड येमयातना | शास्त्रीं बोलिले प्रकार नाना |
तो भोग कदापि चुकेना | या नांव आदिदैविक ||१४||
येमयातनेचे खेद | शास्त्रीं बोलिले विशद |
शेरीरीं घालून, अप्रमाद-| नाना प्रकारें ||१५||
पापपुण्याचीं शरीरे | स्वर्गीं असती कळिवरें |
त्यांत घालून नाना प्रकारें | पापपुण्य भोगविती ||१६||
नाना पुण्यें विळास | नाना दोषें यातना कर्कश |
शास्त्रीं बोलिलें अविश्वास-| मानूंच नये ||१७||
वेदाज्ञेनें न चालती | हरिभक्ती न करिती |
त्यास येमयातना करिती | या नांव आदिदैविक ||१८||
अक्षोभ नर्कीं उदंड जीव | जुनाट किडे करिती रवरव |
बांधोन टाकिती हातपाव | या नांव आदिदैविक ||१९||
उदंड पैस लाहान मुख | कुंभाकार कुंड येक |
दुर्गंधी उकाडा कुंभपाक | या नांव आदिदैविक ||२०||
तप्तभूमिका ताविती | जळत स्थंभ पोटाळविती |
नाना सांडस लाविती | या नांव आदिदैविक ||२१||
येमदंडाचे उदंड मार | यातनेची सामग्री अपार |
भोग भोगिती पापी नर | या नांव आदिदैविक ||२२||
पृथ्वीमध्यें मार नाना | त्याहून कठीण येमयातना |
मरितां उसंतचि असेना | या नांव आदिदैविक ||२३||var मारितां
चौघे चौंकडे वोढिती | येक ते झोंकून पाडिती |
ताणिती मारिती वोढूनि नेती | या नांव आदिदैविक ||२४||
उठवेना बसवेना | रडवेना पडवेना |
यातनेवरी यातना | या नांव आदिदैविक ||२५||
आक्रंदे रडे आणि फुंजे | धकाधकीनें निर्बुजे |
झुर्झरों पंजर होऊन झिजे | या नांव आदिदैविक ||२६||
कर्कश वचनें कर्कश मार | यातनेचे नाना प्रकार |
त्रास पावती दोषी नर | या नांव आदिदैविक ||२७||
मागां बोलिलां राजदंड | त्याहून येमदंड उदंड |
तेथील यातना प्रचंड | भीमरूप दारुण ||२८||
आध्यात्मिक आदिभूतिक | त्याहूनि विशेष आदिदैविक |
अल्प संकेतें कांहींयेक | कळावया बोलिलें ||२९||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आधिदैविकतापनिरूपणनाम
समास आठवा ||८||३. ८
समास नववा : मृत्युनिरूपण
||श्रीराम ||
संसार म्हणिजे सवेंच स्वार | नाहीं मरणास उधार |
मापीं लागलें शरीर | घडीनें घडी ||१||
नित्य काळाची संगती | न कळे होणाराची गती |
कर्मासारिखे प्राणी पडती | नाना देसीं विदेसीं ||२||
सरतां संचिताचें शेष | नाहीं क्षणाचा अवकाश |
भरतां न भरतां निमिष्य | जाणें लागे ||३||
अवचितें काळाचे म्हणियारे | मारित सुटती येकसरें |
नेऊन घालिती पुढारें | मृत्युपंथे ||४||
होतां मृत्याची आटाटी | कोणी घालूं न सकती पाठीं |
सर्वत्रांस कुटाकुटी | मागेंपुढें होतसे ||५||
मृत्युकाळ काठी निकी | बैसे बळियाचे मस्तकीं |
माहाराजे बळिये लोकीं | राहों न सकती ||६||
मृत्य न म्हणे किं हा क्रूर | मृत्य न म्हणे हा जुंझार |
मृत्य न म्हणे संग्रामशूर | समरांगणीं ||७||
मृत्य न म्हणे किं हा कोपी | मृत्य न म्हणे हा प्रतापी |
मृत्य न म्हणे उग्ररूपी | माहांखळ ||८||
मृत्य न म्हणे बलाढ्य | मृत्य न म्हणे धनाढ्य |
मृत्य न म्हणे आढ्य | सर्व गुणें ||९||
मृत्य न म्हणे हा विख्यात | मृत्य न म्हणे हा श्रीमंत |
मृत्य न म्हणे हा अद्भुत | पराक्रमी ||१०||
मृत्य न म्हणे हा भूपती | मृत्य न म्हणे हा चक्रवती |
मृत्य न म्हणे हा करामती | कैवाड जाणे ||११||
मृत्य न म्हणे हा हयपती | मृत्य न म्हणे गजपती |
मृत्य न म्हणे नरपती | विख्यात राजा ||१२||
मृत्य न म्हणे वरिष्ठ जनीं | मृत्य न म्हणे राजकारणी |
मृत्य न म्हणे वेतनी | वेतनधर्ता ||१३||
मृत्य न म्हणे देसाई | मृत्य न म्हणे वेवसाई |
मृत्य न म्हणे ठाई ठाई | पुंड राजे ||१४||
मृत्य न म्हणे मुद्राधारी | मृत्य न म्हणे व्यापारी |
मृत्य न म्हणे परनारी | राजकन्या ||१५||
मृत्य न म्हणे कार्याकारण | मृत्य न म्हणे वर्णावर्ण |
मृत्य न म्हणे हा ब्राह्मण | कर्मनिष्ठ ||१६||
मृत्य न म्हणे वित्पन्न | मृत्य न म्हणे संपन्न |
मृत्य न म्हणे विद्वज्जन | समुदाई ||१७||
मृत्य न म्हणे हा धूर्त | मृत्य न म्हणे बहुश्रुत |
मृत्य न म्हणे हा पंडित | माहाभला ||१८||
मृत्य न म्हणे पुराणिक | मृत्य न म्हणे हा वैदिक |
मृत्य न म्हणे हा याज्ञिक | अथवा जोसी ||१९||
मृत्य न म्हणे अग्निहोत्री | मृत्य न म्हणे हा श्रोत्री |
मृत्य न म्हणे मंत्रयंत्री | पूर्णागमी ||२०||
मृत्य न म्हणे शास्त्रज्ञ | मृत्य न म्हणे वेदज्ञ |
मृत्य न म्हणे सर्वज्ञ | सर्व जाणे ||२१||
मृत्य न म्हणे ब्रह्महत्या | मृत्य न म्हणे गोहत्या |
मृत्य न म्हणे नाना हत्या | स्त्रीबाळकादिक ||२२||
मृत्य न म्हणे रागज्ञानी | मृत्य न म्हणे ताळज्ञानी |
मृत्य न म्हणे तत्वज्ञानी | तत्ववेत्ता ||२३||
मृत्य न म्हणे योग्याभ्यासी | मृत्य न म्हणे संन्यासी |
मृत्य न म्हणे काळासी | वंचूं जाणे ||२४||
मृत्य न म्हणे हा सावध | मृत्य न म्हणे हा सिद्ध |
मृत्य न म्हणे वैद्य प्रसिद्ध | पंचाक्षरी ||२५||
मृत्य न म्हणे हा गोसावी | मृत्य न म्हणे हा तपस्वी |
मृत्य न म्हणे हा मनस्वी | उदासीन ||२६||
मृत्य न म्हणे ऋषेश्वर | मृत्य न म्हणे कवेश्वर |
मृत्य न म्हणे दिगंबर | समाधिस्थ ||२७||
मृत्य न म्हणे हठयोगी | मृत्य न म्हणे राजयोगी |
मृत्य न म्हणे वीतरागी | निरंतर ||२८||
मृत्य न म्हणे ब्रह्मच्यारी | मृत्य न म्हणे जटाधारी |
मृत्य न म्हणे निराहारी | योगेश्वर ||२९||
मृत्य न म्हणे हा संत | मृत्य न म्हणे हा महंत |
मृत्य न म्हणे हा गुप्त | होत असे ||३०||
मृत्य न म्हणे हा स्वाधेन | मृत्य न म्हणे हा पराधेन |
सकळ जीवांस प्राशन | मृत्यचि करी ||३१||
येक मृत्युमार्गी लागले | येकीं आर्धपंथ क्रमिले |
येक ते सेवटास गेले | वृद्धपणीं ||३२||
मृत्य न म्हणे बाळ तारुण्य | मृत्य न म्हणे सुलक्षण |
मृत्य न म्हणे विचक्षण | बहु बोलिका ||३३||
मृत्य न म्हणे हा आधारु | मृत्य न म्हणे उदार |
मृत्य न म्हणे हा सुंदर | चतुरांग जाणे ||३४||
मृत्य न म्हणे पुण्यपुरुष | मृत्य न म्हणे हरिदास |
मृत्य न म्हणे विशेष | सुकृती नर ||३५||
आतां असो हें बोलणें | मृत्यापासून सुटिजे कोणें |
मागेंपुढें विश्वास जाणें | मृत्युपंथें ||३६||
च्यारी खाणी च्यारी वाणी | चौऱ्यासी लक्ष जीवयोनी |
जन्मा आले तितुके प्राणी | मृत्य पावती ||३७||
मृत्याभेणें पळों जातां | तरी मृत्य सोडिना सर्वथा |
मृत्यास न ये चुकवितां | कांहीं केल्या ||३८||
मृत्य न म्हणे हा स्वदेसी | मृत्य न म्हणे हा विदेसी |
मृत्य न म्हणे हा उपवासी | निरंतर ||३९||
मृत्य न म्हणे थोर थोर | मृत्य न म्हणे हरिहर |
मृत्य न म्हणे अवतार | भगवंताचे ||४०||
श्रोतीं कोप न करावा | हा मृत्यलोक सकळांस ठावा |
उपजला प्राणी जाईल बरवा | मृत्यपंथें ||४१||
येथें न मनावा किंत | हा मृत्यलोक विख्यात | var मानावा
प्रगट जाणती समस्त | लहान थोर ||४२||
तथापी किंत मानिजेल | तरी हा मृत्यलोक नव्हेल |
याकारणें नासेल | उपजला प्राणी ||४३||
ऐसें जाणोनियां जीवें | याचें सार्थकचि करावें |
जनीं मरोन उरवावें | कीर्तिरूपें ||४४||
येरवीं प्राणी लहान थोर | मृत्य पावती हा निर्धार |
बोलिलें हें अन्यथा उत्तर | मानूंची नये ||४५||
गेले वहुत वैभवाचे | गेले बहुत आयुष्याचे |
गेले अगाध महिमेचे | मृत्यपंथें ||४६||
गेले बहुत पराक्रमी | गेले बहुत कपटकर्मी |
गेले बहुत संग्रामी | संग्रामसौरे ||४७||
गेले बहुतां बळांचे | गेले बहुतां काळांचे |
गेले बहुतां कुळांचे | कुळवंत राजे ||४८||
गेले बहुतांचे पाळक | गेले बुद्धीचे चाळक |
गेले युक्तीचे तार्किक | तर्कवादी ||४९||
गेले विद्येचे सागर | गेले बळाचे डोंग़र |
गेले धनाचे कुबेर | मृत्यपंथे ||५०||
गेले बहुत पुरुषार्थाचे | गेले बहुत विक्रमाचे |
गेले बहुत आटोपाचे | कार्यकर्ते ||५१||
गेले बहुत शस्त्रधारी | गेले बहुत परोपकारी |
गेले बहुत नानापरी | धर्मरक्षक ||५२||
गेले बहुत प्रतापाचे | गेले बहुत सत्कीर्तीचे |
गेले बहुत नीतीचे | नीतिवंत राजे ||५३||
गेले बहुत मतवादी | गेले बहुत कार्यवादी |
गेले बहुत वेवादी | बहुतांपरीचे ||५४||
गेलीं पंडितांची थाटें | गेलीं शब्दांचीं कचाटें |
गेलीं वादकें अचाटें | नाना मतें ||५५||
गेले तापषांचे भार | गेले संन्यासी अपार |
गेले विचारकर्ते सार | मृत्यपंथे ||५६||
गेले बहुत संसारी | गेले बहुत वेषधारी |
गेले बहुत नानापरी | नाना छंद करूनी ||५७||
गेले ब्राह्मणसमुदाये | गेले बहुत आच्यार्य |
गेले बहुत सांगों काये | किती म्हणौनि ||५८||
असो ऐसे सकळहि गेले | परंतु येकचि राहिले |
जे स्वरुपाकार जाले | आत्मज्ञानी ||५९||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मृत्यनिरूपणनाम
समास नववा ||९||३. ९
समास दहावा : वैराग्य निरूपण
||श्रीराम ||
संसार म्हणिजे माहापूर | माजीं जळचरें अपार |
डंखूं धावती विखार | काळसर्प ||१||
आशा ममता देहीं बेडी | सुसरी करिताती तडातोडी |
नेऊन दुःखाचे सांकडी-| माजीं घालिती ||२||
अहंकारनक्रें उडविलें | नेऊनि पाताळीं बुडविलें |
तेथुनियां सोडविलें | न वचे प्राणी ||३||
काममगरमिठी सुटेना | तिरस्कार लागला तुटेना |
मद मत्सर वोहटेना | भूलि पडिली ||४||
वासनाधामिणी पडिली गळां | घालून वेंटाळें वमी गरळा |
जिव्हा लाळी वेळोवेळां | भयानक ||५||
माथां प्रपंचाचें वोझें | घेऊन म्हणे माझें माझें |
बुडतांही न सोडी, फुंजे | कुळाभिमानें ||६||
पडिलें भ्रांतीचें अंधारें | नागविलें अभिमानचोरें |
आलें अहंतेचें काविरें | भूतबाधा ||७||
बहुतेक आवर्तीं पडिले | प्राणी वाहातचि गेले |
जेंहिं भगवंतासी बोभाईलें | भावार्थबळें ||८||
देव आपण घालूनि उडी | तयांसी नेलें पैलथडी |
येर तें अभाविकें बापुडीं | वाहातचि गेलीं ||९||
भगवंत भावाचा भुकेला | भावार्थ देखोन भुलला |
संकटीं पावे भाविकाला | रक्षितसे ||१०||
जयास भगवंत आवडे | तयाचें देवासीं सांकडें |
संसारदुःख सकळ उडे | निजदासाचें ||११||
जे अंकित ईश्वराचे | तयांस सोहळे निजसुखाचे |
धन्य तेचि दैवाचे | भाविक जन ||१२||
जैसा भाव जयापासीं | तैसा दैव तयासी |
जाणे भाव अंतरसाक्षी | प्राणीमात्रांचा ||१३||
जरी भाव असिला माईक | तरी देव होये माहा ठक |
नवल तयाचें कौतुक | जैशास तैसा ||१४||
जैसें जयाचें भजन | तैसेंची दे समाधान |
भाव होतां किंचित न्यून | आपणहि दुरावे ||१५||
दर्पणीं प्रतिबिंब दिसे | जैस्यास तैसें भासे |
तयाचें सूत्र असे | आपणाच पासीं ||१६||
जैसें आपण करावें | तैसेंचि तेणें व्हावें |
जरी डोळे पसरूनि पाहावें | तरी तेंही टवकारे ||१७||
भृकुटीस घालून मिठी | पाहातां क्रोधें तेंहि उठी |
आपण हास्य करितां पोटीं | तेंहि आनंदे ||१८||
जैसा भाव प्रतिबिंबला | तयाचाचि देव जाला |
जो जैसें भजे त्याला | तैसाचि वोळे ||१९||
भावें परामार्थाचिया वाटा | वाहाती भक्तीचिया पेंठा |
भरला मोक्षाचा चोहाटा | सज्जनसंगें ||२०||
भावें भजनीं जे लागले | ते ईश्वरी पावन जाले |
भावार्थबळें उद्धरिले | पूर्वज तेहीं ||२१||
आपण स्वयें तरले | जनासहि उपेगा आले |
कीर्तिश्रवणें जाले | अभक्त, भावार्थी ||२२||
धन्य तयांची जननी | जे लागले हरिभजनीं |
तेहिंच येक जन्म जनीं | सार्थक केला ||२३||
तयांची वर्णूं काय थोरी | जयांचा भगवंत कैवारी |
कासे लाऊन उतरी | पार दुःखाचा ||२४||
बहुतां जन्मांचे सेवटीं | जेणें चुके अटाटी |
तो हा नरदेह भेटी | करी भगवंतीं ||२५||
म्हणौन धन्य ते भाविक जन | जेंहिं जोडिलें हरिनिधान |
अनंत जन्मांतरींचें पुण्य | फळासि आलें ||२६||
आयुष्य हेचि रत्नपेटी | माजीं भजनरत्नें गोमटीं |
ईश्वरीं अर्पूनिया लुटी | आनंदाची करावी ||२७||
हरिभक्त वैभवें कनिष्ठ | परी तो ब्रह्मादिकां वरिष्ठ |
सदा सर्वदा संतुष्ट | नैराशबोधें ||२८||
धरून ईश्वराची कास | केली संसाराची नैराश |
तयां भाविकां जगदीश | सबाह्य सांभाळी ||२९||
जया संसाराचें दुःख | विवेकें वाटे परमसुख |
संसारसुखाचेनि पढतमूर्ख | लोधोन पडती ||३०||
जयांचा ईश्वरीं जिव्हाळा | ते भोगिती स्वानंदसोहळा |
जयांचा जनावेगळा | ठेवा आक्षै ||३१||
ते आक्षै सुखें सुखावले | संसारदुःखें विसरले |
विषयेरंगी वोरंगले | श्रीरंगरंगीं ||३२||
तयांस फावली नरदेह पेटी | केली ईश्वरेंसिं साटी |
येरें अभाविकें करंटीं | नरदेह गेला ||३३||
आवचटें निधान जोडलें | तें कवडिच्या बदल नेलें |
तैसें आयुष्य निघोनि गेलें | अभाविकाचें ||३४||
बहुता तपाचा सांठा | तेणें लाधला परीस गोटा |
परी तो ठाईंचा करंटा | भोगूंच नेणे ||३५||
तैसा संसारास आला | मायाजाळीं गुंडाळला |
अंतीं येकलाचि गेला | हात झाडुनी ||३६||
या नरदेहाचेनि संगतीं | बहुत पावले उत्तम गती |
येकें बापुडी यातायाती | वरपडी जालीं ||३७||
या नरदेहाचेनि लागवेगें | सार्थक करावे संतसंगें |
नीचयोनीं दुःख मागें | बहुत भोगिलें ||३८||
कोण समयो येईल कैसा | याचा न कळे किं भर्वसा |
जैसे पक्षी दाही दिशा | उडोन जाती ||३९||
तैसें वैभव हें सकळ | कोण जाणे कैसी वेळ |
पुत्रकळत्रादि सकळ | विघडोन जाती ||४०||
पाहिली घडी नव्हे आपुली | वयसा तरी निघोन गेली |
देह पडतांच ठेविली-| आहे नींच योनी ||४१||
स्वान शुकरादिक नीच याती | भोगणें घडे विपत्ती |
तेथे कांहीं उत्तम गती | पाविजेत नाहीं ||४२||
मागा गर्भवासीं आटाटी | भोगितां जालासि रे हिंपुटी |
तेथुनियां थोरा कष्टीं | सुटलासि दैवें ||४३||
दुःख भोगिलें आपुल्या जीवें | तेथें कैचिं होतीं सर्वें |
तैसेंचि पुढें येकलें जावें | लागेल बापा ||४४||
कैंचि माता कैंचा पिता | कैंचि बहिण कैंचा भ्राता |
कैंचीं सुहृदें कैंची वनिता | पुत्रकळत्रादिक ||४५||
हे तूं जाण मावेचीं | आवघीं सोइरीं सुखाचीं |
हे तुझ्या सुखदुःखाचीं | सांगाती नव्हेती ||४६||
कैंचा प्रपंच कैंचे कुळ | कासया होतोसी व्याकुळ |
धन कण लक्ष्मी सकळ | जाइजणें ||४७||
कैंचें घर कैंचा संसार | कासया करिसी जोजार |
जन्मवरी वाहोन भार | सेखीं सांडून जासी ||४८||
कैंचें तारुण्य कैंचे वैभव | कैंचें सोहळे हावभाव |
हें सकळहि जाण माव | माईक माया ||४९||
येच क्षणीं मरोन जासी | तरी रघुनाथीं अंतरलासी |
माझें माझें म्हणतोसी | म्हणौनियां ||५०||
तुवां भोगिल्या पुनरावृत्ती | ऐसीं मायबापें किती |
स्त्री कन्या पुत्र होती | लक्षानलक्ष ||५१||
कर्मयोगें सकळ मिळालीं | येके स्थळीं जन्मास आलीं |
तें तुवां आपुलीं मानिलीं | कैसीं रे पढतमूर्खा ||५२||
तुझें तुज नव्हे शरीर | तेथें इतरांचा कोण विचार |
आतां येक भगवंत साचार | धरीं भावार्थबळें ||५३||
येका दुर्भराकारणें | नाना नीचांची सेवा करणें |
नाना स्तुती आणी स्तवनें | मर्यादा धरावी ||५४||
जो अन्न देतो उदरासी | शेरीर विकावें लागे त्यासी |
मां जेणें घातलें जन्मासी | त्यासी कैसें विसरावें ||५५||
अहिर्निशीं ज्या भगवंता | सकळ जिवांची लागली चिंता |
मेघ वरुषे जयाची सत्ता | सिंधु मर्यादा धरी ||५६||
भूमि धरिली धराधरें | प्रगट होईजे दिनकरें |
ऐसी सृष्टी सत्तामात्रें | चालवी जो कां ||५७||
ऐसा कृपाळु देवाधिदेव | नेणवे जयाचें लाघव |
जो सांभाळी सकळ जीव | कृपाळुपणें ||५८||
ऐसा सर्वात्मा श्रीराम-| सांडून, धरिती विषयकाम |
ते प्राणी दुरात्मे अद्धम | केलें पावती ||५९||
रामेविण जे जे आस | तितुकी जाणावी नैराश |
माझें माझें सावकाश | सीणचि उरे ||६०||
जयास वाटे सीण व्हावा | तेणें विषयो चिंतीत जावा |
विषयो न मिळतां जीवा | तगबग सुटे ||६१||
सांडून राम आनंदघन | ज्याचे मनीं विषयचिंतन |
त्यासी कैंचें समाधान | लोलंगतासी ||६२||
जयास वाटे सुखचि असावें | तेणें रघुनाथभजनीं लागावें |
स्वजन सकळही त्यागावे | दुःखमूळ जे ||६३||
जेथें वासना झोंबोन पडे | तेणेंचि अपायें दुःख जडे |
म्हणौनि विषयवासना मोडे | तो येक सुखी ||६४||
विषयजनित जें जें सुख | तेथेंचि होतें परम दुःख |
पूर्वीं गोड अंतीं शोक | नेमस्त आहे ||६५||
गळ गिळितां सुख वाटे | वोढून घेतां घसा फाटे |
कां तें बापुडें मृग आपटे | चारा घेऊन पळतां ||६६||
तैसी विषयसुखाची गोडी | गोड वाटे परी ते कुडी |
म्हणौनियां आवडी | रघुनाथीं धरावी ||६७||
ऐकोनि बोले भाविक | कैसेनि घडे जी सार्थक |
सांगा स्वामी येमलोक | चुके जेणें ||६८||
देवासी वास्तव्य कोठें | तो मज कैसेंनि भेटे |
दुःखमूळ संसार तुटे | कोणेपरी स्वामी ||६९||
धडपुडी भगवत्प्राप्ती-| होऊन, चुके अधिगती |
ऐसा उपाये कृपामूर्ती | मज दीनास करावा ||७०||
वक्ता म्हणे हो येकभावें | भगवद्भजन करावें |
तेणें होईल स्वभावें | समाधान ||७१||
कैसें करावें भगवद्भजन | कोठें ठेवावें हें मन |
भगवद्भजनाचें लक्षण | मज निरोपावें ||७२||
ऐसा म्लानवदनें बोले | धरिले सदृढ पाऊलें |
कंठ सद्गदित, गळाले | अश्रुपात दुःखें ||७३||
देखोन शिष्याची अनन्यता | भावें वोळला सद्गुरु दाता |
स्वानंद तुंबळेल आतां | पुढिले समासीं ||७४||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे वैराग्यनिरूपणनाम
समास दहावा ||१०||३. १०
|| दशक तिसरा समाप्त ||
NA
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Reproofread by P. D. Kulkarni
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% Text title : Dasabodh dAsabodha dashaka 3
% Author : Swami Samartha Ramadas
% Language : Marathi, Sanskrit
% Subject : philosophy/hinduism/religion
% Description/comments : Collectively transliterated and proofread
% Transliterated by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in Sunder
% Hattangadi sunderh at hotmail.com, NA
% Proofread by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in, Sunder
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% Reproofread by P. D. Kulkarni
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% Latest update : August 6, 2014
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