||समर्थ रामदासांचा दासबोध दशक २ ||
||दशक दुसरा : मूर्खलक्षणनाम ||२||
समास पहिला : मूर्खलक्षण
||श्रीराम ||
ॐ नमोजि गजानना | येकदंता त्रिनयना |
कृपादृष्टि भक्तजना | अवलोकावें ||१||
तुज नमूं वेदमाते | श्रीशारदे ब्रह्मसुते |
अंतरी वसे कृपावंते | स्फूर्तिरूपें ||२||
वंदून सद्गुरुचरण | करून रघुनाथस्मरण |
त्यागार्थ मूर्खलक्षण | बोलिजेल ||३||
येक मूर्ख येक पढतमूर्ख | उभय लक्षणीं कौतुक |
श्रोतीं सादर विवेक | केला पाहिजे ||४||
पढतमूर्खाचें लक्षण | पुढिले समासीं निरूपण |
सावध होऊनि विचक्षण | परिसोत पुढें ||५||
आतां प्रस्तुत विचार | लक्षणें सांगतां अपार |
परि कांहीं येक तत्पर | होऊन ऐका ||६||
जे प्रपंचिक जन | जयांस नाहीं आत्मज्ञान |
जे केवळ अज्ञान | त्यांचीं लक्षणें ||७||
जन्मला जयांचे उदरीं | तयासि जो विरोध करी |
सखी मानिली अंतुरी | तो येक मूर्ख ||८||
सांडून सर्वही गोत | स्त्रीआधेन जीवित |
सांगे अंतरींची मात | तो येक मूर्ख ||९||
परस्त्रीसीं प्रेमा धरी | श्वशुरगृही वास करी |
कुळेंविण कन्या वरी | तो येक मूर्ख ||१०||
समर्थावरी अहंता | अंतरीं मानी समता |
सामर्थ्येंविण करी सत्ता | तो येक मूर्ख ||११||
आपली आपण करी स्तुती | स्वदेशीं भोगी विपत्ति |
सांगे वडिलांची कीर्ती | तो येक मूर्ख ||१२||
अकारण हास्य करी | विवेक सांगतां न धरी |
जो बहुतांचा वैरी | तो येक मूर्ख ||१३||
आपुलीं धरूनियां दुरी | पराव्यासीं करी मीत्री |
परन्यून बोले रात्रीं | तो येक मूर्ख ||१४||
बहुत जागते जन | तयांमध्यें करी शयन |
परस्थळीं बहु भोजन-| करी, तो येक मूर्ख ||१५||
मान अथवा अपमान | स्वयें करी परिच्छिन्न |
सप्त वेसनीं जयाचें मन | तो येक मूर्ख ||१६||
धरून परावी आस | प्रेत्न सांडी सावकास |
निसुगाईचा संतोष-| मानी, तो येक मूर्ख ||१७||
घरीं विवेक उमजे | आणि सभेमध्यें लाजे |
शब्द बोलतां निर्बुजे | तो येक मूर्ख ||१८||
आपणाहून जो श्रेष्ठ | तयासीं अत्यंत निकट |
सिकवेणेचा मानी वीट | तो येक मूर्ख ||१९||
नायेके त्यांसी सिकवी | वडिलांसी जाणीव दावी |
जो आरजास गोवी | तो येक मूर्ख ||२०||
येकायेकीं येकसरा | जाला विषईं निलाजिरा |
मर्यादा सांडून सैरा-| वर्ते, तो येक मूर्ख ||२१||
औषध न घे असोन वेथा | पथ्य न करी सर्वथा |
न मिळे आलिया पदार्था | तो येक मूर्ख ||२२||
संगेंविण विदेश करी | वोळखीविण संग धरी |
उडी घाली माहापुरीं | तो येक मूर्ख ||२३||
आपणास जेथें मान | तेथें अखंड करी गमन |
रक्षूं नेणे मानाभिमान | तो येक मूर्ख ||२४||
सेवक जाला लक्ष्मीवंत | तयाचा होय अंकित |
सर्वकाळ दुश्चित्त | तो येक मूर्ख ||२५||
विचार न करितां कारण | दंड करी अपराधेंविण |
स्वल्पासाठीं जो कृपण | तो येक मूर्ख ||२६||
देवलंड पितृलंड | शक्तिवीण करी तोड |
ज्याचे मुखीं भंडौभंड | तो येक मूर्ख ||२७||
घरीच्यावरी खाय दाढा | बाहेरी दीन बापुडा |
ऐसा जो कां वेड मूढा | तो येक मूर्ख ||२८||
नीच यातीसीं सांगात | परांगनेसीं येकांत |
मार्गें जाय खात खात | तो येक मूर्ख ||२९||
स्वयें नेणे परोपकार | उपकाराचा अनोपकार |
करी थोडें बोले फार | तो येक मूर्ख ||३०||
तपीळ खादाड आळसी | कुश्चीळ कुटीळ मानसीं |
धारीष्ट नाहीं जयापासीं | तो येक मूर्ख ||३१||
विद्या वैभव ना धन | पुरुषार्थ सामर्थ्य ना मान |
कोरडाच वाहे अभिमान | तो येक मूर्ख ||३२||
लंडी लटिका लाबाड | कुकर्मी कुटीळ निचाड |
निद्रा जयाची वाड | तो येक मूर्ख ||३३||
उंचीं जाऊन वस्त्र नेसे | चौबारां बाहेरी बैसे |
सर्वकाळ नग्न दिसे | तो येक मूर्ख ||३४||
दंत चक्षु आणी घ्राण | पाणी वसन आणी चरण |
सर्वकाळ जयाचे मळिण | तो येक मूर्ख ||३५||
वैधृति आणी वितिपात | नाना कुमुहूर्तें जात |
अपशकुनें करी घात | तो येक मूर्ख ||३६||
क्रोधें अपमानें कुबुद्धि | आपणास आपण वधी |
जयास नाहीं दृढ बुद्धि | तो येक मूर्ख ||३७||
जिवलगांस परम खेदी | सुखाचा शब्द तोहि नेदी |
नीच जनास वंदी | तो येक मूर्ख ||३८||
आपणास राखे परोपरी | शरणागतांस अव्हेरी |
लक्ष्मीचा भरवसा धरी | तो येक मूर्ख ||३९||
पुत्र कळत्र आणी दारा | इतुकाचि मानुनियां थारा |
विसरोन गेला ईश्वरा | तो येक मूर्ख ||४०||
जैसें जैसें करावें | तैसें तैसें पावावें |
हे जयास नेणवे | तो येक मूर्ख ||४१||
पुरुषाचेनि अष्टगुणें | स्त्रियांस ईश्वरी देणें |
ऐशा केल्या बहुत जेणें | तो येक मूर्ख ||४२||
दुर्जनाचेनि बोलें | मर्यादा सांडून चाले |
दिवसा झांकिले डोळे | तो येक मूर्ख ||४३||
देवद्रोही गुरुद्रोही | मातृद्रोही पितृद्रोही |
ब्रह्मद्रोही स्वामीद्रोही | तो येक मूर्ख ||४४||
परपीडेचें मानी सुख | परसंतोषाचें मानी दुःख |
गेले वस्तूचा करी शोक | तो येक मूर्ख ||४५||
आदरेंविण बोलणें | न पुसतां साक्ष देणें |
निंद्य वस्तु आंगिकारणें | तो येक मूर्ख ||४६||
तुक तोडून बोले | मार्ग सांडून चाले |
कुकर्मी मित्र केले | तो येक मूर्ख ||४७||
पत्य राखों नेणें कदा | विनोद करी सर्वदा |
हासतां खिजे पेटे द्वंदा | तो येक मूर्ख ||४८||
होड घाली अवघड | काजेंविण करी बडबड |
बोलोंचि नेणे मुखजड | तो येक मूर्ख ||४९||
वस्त्र शास्त्र दोनी नसे | उंचे स्थळीं जाऊन बैसे |
जो गोत्रजांस विश्वासे | तो येक मूर्ख ||५०||
तश्करासी वोळखी सांगे | देखिली वस्तु तेचि मागे |
आपलें आन्हीत करी रागें | तो येक मूर्ख ||५१||
हीन जनासीं बरोबरी | बोल बोले सरोत्तरीं |
वामहस्तें प्राशन करी | तो येक मूर्ख ||५२||
समर्थासीं मत्सर धरी | अलभ्य वस्तूचा हेवा करी |
घरीचा घरीं करी चोरी | तो येक मूर्ख ||५३||
सांडूनियां जगदीशा | मनुष्याचा मानी भर्वसा |
सार्थकेंविण वेंची वयसा | तो येक मूर्ख ||५४||
संसारदुःखाचेनि गुणें | देवास गाळी देणें |
मैत्राचें बोले उणें | तो येक मूर्ख ||५५||
अल्प अन्याय क्ष्मा न करी | सर्वकाळ धारकीं धरी |
जो विस्वासघात करी | तो येक मूर्ख ||५६||
समर्थाचे मनींचे तुटे | जयाचेनि सभा विटे |
क्षणा बरा क्षणा पालटे | तो येक मूर्ख ||५७||
बहुतां दिवसांचे सेवक | त्यागून ठेवी आणिक |
ज्याची सभा निर्नायेक | तो येक मूर्ख ||५८||
अनीतीनें द्रव्य जोडी | धर्म नीति न्याय सोडी |
संगतीचें मनुष्य तोडी | तो येक मूर्ख ||५९||
घरीं असोन सुंदरी | जो सदांचा परद्वारी |
बहुतांचे उच्छिष्ट अंगीकारी | तो येक मूर्ख ||६०||
आपुलें अर्थ दुसऱ्यापासीं | आणी दुसऱ्याचें अभिळासी |
पर्वत करी हीनासी | तो येक मूर्ख ||६१||
अतिताचा अंत पाहे | कुग्रामामधें राहे |
सर्वकाळ चिंता वाहे | तो येक मूर्ख ||६२||
दोघे बोलत असती जेथें | तिसरा जाऊन बैसे तेथें |
डोई खाजवी दोहीं हातें | तो येक मूर्ख ||६३||
उदकामधें सांडी गुरळी | पायें पायें कांडोळी |
सेवा करी हीन कुळीं | तो येक मूर्ख ||६४||
स्त्री बाळका सलगी देणें | पिशाच्या सन्निध बैसणें |
मर्यादेविण पाळी सुणें | तो येक मूर्ख ||६५||
परस्त्रीसीं कळह करी | मुकी वस्तु निघातें मारी |
मूर्खाची संगती धरी | तो येक मूर्ख ||६६||
कळह पाहात उभा राहे | तोडविना कौतुक पाहे |
खरें अस्ता खोटें साहे | तो येक मूर्ख ||६७||
लक्ष्मी आलियावरी | जो मागील वोळखी न धरी |
देवीं ब्राह्मणीं सत्ता करी | तो येक मूर्ख ||६८||
आपलें काज होये तंवरी | बहुसाल नम्रता धरी |
पुढीलांचें कार्य न करी | तो येक मूर्ख ||६९||
अक्षरें गाळून वाची | कां तें घाली पदरिचीं |
नीघा न करी पुस्तकाची | तो येक मूर्ख ||७०||
आपण वाचीना कधीं | कोणास वाचावया नेदी |
बांधोन ठेवी बंदीं | तो येक मूर्ख ||७१||
ऐसीं हें मूर्खलक्षणें | श्रवणें चातुर्य बाणे |
चीत्त देउनियां शहाणे | ऐकती सदा ||७२||
लक्षणें अपार असती | परी कांहीं येक येथामती |
त्यागार्थ बोलिलें श्रोतीं | क्ष्मा केलें पाहिजे ||७३||
उत्तम लक्षणें घ्यावीं | मूर्खलक्षणें त्यागावीं |
पुढिले समासी आघवीं | निरोपिलीं ||७४||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे मूर्खलक्षणनाम
समास पहिला ||१||२. १
समास दुसरा : उत्तम लक्षण
||श्रीराम ||
श्रोतां व्हावें सावधान | आतां सांगतों उत्तम गुण |
जेणें करितां बाणे खुण | सर्वज्ञपणाची ||१||
वाट पुसल्याविण जाऊं नये | फळ वोळखिल्याविण खाऊं नये |
पडिली वस्तु घेऊं नये | येकायेकीं ||२||
अति वाद करूं नये | पोटीं कपट धरूं नये |
शोधल्याविण करूं नये | कुळहीन कांता ||३||
विचारेंविण बोलों नये | विवंचनेविण चालों नये |
मर्यादेविण हालों नये | कांहीं येक ||४||
प्रीतीविण रुसों नये | चोरास वोळखी पुसों नये |
रात्री पंथ क्रमूं नये | येकायेकीं ||५||
जनीं आर्जव तोडूं नये | पापद्रव्य जोडूं नये |
पुण्यमार्ग सोडूं नये | कदाकाळीं ||६||
निंदा द्वेष करूं नये | असत्संग धरूं नये |
द्रव्यदारा हरूं नये | बळात्कारें ||७||
वक्तयास खोदूं नये | ऐक्यतेसी फोडूं नये |
विद्याभ्यास सोडूं नये | कांहीं केल्या ||८||
तोंडाळासि भांडों नये | वाचाळासी तंडों नये |
संतसंग खंडूं नये | अंतर्यामीं ||९||
अति क्रोध करूं नये | जिवलगांस खेदूं नये |
मनीं वीट मानूं नये | सिकवणेचा ||१०||
क्षणाक्षणां रुसों नये | लटिका पुरुषार्थ बोलों नये |
केल्याविण सांगों नये | आपला पराक्रमु ||११||
बोलिला बोल विसरों नये | प्रसंगी सामर्थ्य चुकों नये |
केल्याविण निखंदूं नये | पुढिलांसि कदा ||१२||
आळसें सुख मानूं नये | चाहाडी मनास आणूं नये |
शोधिल्याविण करूं नये | कार्य कांहीं ||१३||
सुखा आंग देऊं नये | प्रेत्न पुरुषें सांडूं नये |
कष्ट करितां त्रासों नये | निरंतर ||१४||
सभेमध्यें लाजों नये | बाष्कळपणें बोलों नये |
पैज होड घालूं नये | काहीं केल्या ||१५||
बहुत चिंता करूं नये | निसुगपणें राहों नये |
परस्त्रीतें पाहों नये | पापबुद्धी ||१६||
कोणाचा उपकार घेऊं नये | घेतला तरी राखों नये |
परपीडा करूं नये | विस्वासघात ||१७||
शोच्येंविण असों नये | मळिण वस्त्र नेसों नये |
जाणारास पुसों नये | कोठें जातोस म्हणौनी ||१८||
व्यापकपण सांडूं नये | पराधेन होऊं नये |
आपलें वोझें घालूं नये | कोणीयेकासी ||१९||
पत्रेंविण पर्वत करूं नये | हीनाचें रुण घेऊं नये |
गोहीविण जाऊं नये | राजद्वारा ||२०||
लटिकी जाजू घेऊं नये | सभेस लटिकें करूं नये |
आदर नस्तां बोलों नये | स्वभाविक ||२१||
आदखणेपण करूं नये | अन्यायेंविण गांजूं नये |
अवनीतीनें वर्तों नये | आंगबळें ||२२||
बहुत अन्न खाऊं नये | बहुत निद्रा करूं नये |
बहुत दिवस राहूं नये | पिसुणाचेथें ||२३||
आपल्याची गोही देऊं नये | आपली कीर्ती वर्णूं नये |
आपलें आपण हांसों नये | गोष्टी सांगोनी ||२४||
धूम्रपान घेऊं नये | उन्मत्त द्रव्य सेवूं नये |
बहुचकासीं करूं नये | मैत्री कदा ||२५||
कामेंविण राहों नये | नीच उत्तर साहों नये |
आसुदें अन्न सेऊं नये | वडिलांचेंहि ||२६||
तोंडीं सीवी असों नये | दुसऱ्यास देखोन हांसों नये |
उणें अंगीं संचारों नये | कुळवंताचे ||२७||
देखिली वस्तु चोरूं नये | बहुत कृपण होऊं नये |
जिवलगांसी करूं नये | कळह कदा ||२८||
येकाचा घात करूं नये | लटिकी गोही देऊं नये |
अप्रमाण वर्तों नये | कदाकाळीं ||२९||
चाहाडी चोरी धरूं नये | परद्वार करूं नये |
मागें उणें बोलों नये | कोणीयेकाचें ||३०||
समईं यावा चुकों नये | सत्त्वगुण सांडूं नये |
वैरियांस दंडूं नये | शरण आलियां ||३१||
अल्पधनें माजों नये | हरिभक्तीस लाजों नये |
मर्यादेविण चालों नये | पवित्र जनीं ||३२||
मूर्खासीं संमंध पडों नये | अंधारीं हात घालूं नये |
दुश्चितपणें विसरों नये | वस्तु आपुली ||३३||
स्नानसंध्या सांडूं नये | कुळाचार खंडूं नये |
अनाचार मांडूं नये | चुकुरपणें ||३४||
हरिकथा सांडूं नये | निरूपण तोडूं नये |
परमार्थास मोडूं नये | प्रपंचबळें ||३५||
देवाचा नवस बुडऊं नये | आपला धर्म उडऊं नये |
भलते भरीं भरों नये | विचारेंविण ||३६||
निष्ठुरपण धरूं नये | जीवहत्या करूं नये |
पाऊस देखोन जाऊं नये | अथवा अवकाळीं ||३७||
सभा देखोन गळों नये | समईं उत्तर टळों नये |
धिःकारितां चळों नये | धारिष्ट आपुलें ||३८||
गुरुविरहित असों नये | नीच यातीचा गुरु करूं नये |
जिणें शाश्वत मानूं नये | वैभवेंसीं ||३९||
सत्यमार्ग सांडूं नये | असत्य पंथें जाऊं नये |
कदा अभिमान घेऊं नये | असत्याचा ||४०||
अपकीर्ति ते सांडावी | सद्कीर्ति वाढवावी |
विवेकें दृढ धरावी | वाट सत्याची ||४१||
नेघतां हे उत्तम गुण | तें मनुष्य अवलक्षण |
ऐक तयांचे लक्षण | पुढिले समासीं ||४२||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उत्तामलक्षणनाम
समास दुसरा ||२||२. २
समास तिसरा : कुविद्या लक्षण
||श्रीराम ||
ऐका कुविद्येचीं लक्षणें | अति हीनें कुलक्षणें |
त्यागार्थ बोलिलीं ते श्रवणें | त्याग घडे ||१||
ऐका कुविद्येचा प्राणी | जन्मा येऊन केली हानी |
सांगिजेल येहीं लक्षणीं | वोळखावा ||२||
कुविद्येचा प्राणी असे | तो कठिण निरूपणें त्रासे |
अवगुणाची समृद्धि असे | म्हणौनियां ||३||
श्लोक ||दंभो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च |
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ||
काम क्रोध मद मत्सर | लोभ दंभ तिरस्कार |
गर्व ताठा अहंकार | द्वेष विषाद विकल्पी ||४||
आशा ममता तृष्णा कल्पना | चिंता अहंता कामना भावना |
असूया अविद्या ईषणा वासना | अतृप्ती लोलंगता ||५||
इछ्या वांछ्या चिकिछ्या निंदा | आनित्य ग्रामणी मस्ती सदा |
जाणीव अवज्ञा विपत्ती आपदा | दुर्वृत्ती दुर्वासना ||६||
स्पर्धा खटपट आणि चटचट | तर्हे झटपट आणी वटवट |
सदा खटपट आणी लटपट | परम वेथा कुविद्या ||७||
कुरूप आणी कुलक्षण | अशक्त आणी दुर्जन |
दरिद्री आणी कृपण | आतिशयेंसीं ||८||
आळसी आणी खादाड | दुर्बळ आणी लाताड |
तुटक आणी लाबाड | आतिशयेंसीं ||९||
मूर्ख आणी तपीळ | वेडें आणी वाचाळ |
लटिकें आणी तोंडाळ | आतिशयेंसीं ||१०||
नेणे आणी नायके | न ये आणी न सीके |
न करी आणी न देखे | अभ्यास दृष्टी ||११||
अज्ञान आणी अविस्वासी | छळवादी आणी दोषी |
अभक्त आणी भक्तांसी | देखों सकेना ||१२||
पापी आणी निंदक | कष्टी आणी घातक |
दुःखी आणी हिंसक | आतिशयेंसीं ||१३||
हीन आणी कृत्रिमी | रोगी आणी कुकर्मी |
आचंगुल आणी अधर्मी | वासना रमे ||१४||
हीन देह आणी ताठा | अप्रमाण आणी फांटा |
बाष्कळ आणी करंटा | विवेक सांगे ||१५||
लंडी आणी उन्मत्त | निकामी आणी डुल्लत |
भ्याड आणी बोलत | पराक्रमु ||१६||
कनिष्ठ आणी गर्विष्ठ | नुपरतें आणी नष्ट |
द्वेषी आणी भ्रष्ट | आतिशयेंसीं ||१७||
अभिमानी आणी निसंगळ | वोडगस्त आणी खळ |
दंभिक आणी अनर्गळ | आतिशयेंसीं ||१८||
वोखटे आणी विकारी | खोटे आणी अनोपकारी |
अवलक्षण आणी धिःकारी | प्राणिमात्रांसी ||१९||
अल्पमती आणी वादक | दीनरूप आणि भेदक |
सूक्ष्म आणी त्रासक | कुशब्दें करूनि ||२०||
कठिणवचनी कर्कशवचनी | कापट्यवचनी संदेहवचनी |
दुःखवचनी तीव्रवचनी | क्रूर निष्ठुर दुरात्मा ||२१||
न्यूनवचनी पैशून्यवचनी | अशुभवचनी अनित्यवचनी |
द्वेषवचनी अनृत्यवचनी | बाष्कळवचनी धिःकारु ||२२||
कपटी कुटीळ गाठ्याळ | कुर्टें कुचर नट्याळ |
कोपी कुधन टवाळ | आतिशयेंसीं ||२३||
तपीळ तामस अविचार | पापी अनर्थी अपस्मार |
भूत समंधी संचार | आंगीं वसे ||२४||
आत्महत्यारा स्त्रीहत्यारा | गोहत्यारा ब्रह्महत्यारा |
मातृहत्यारा पितृहत्यारा | माहापापी पतित ||२५||
उणें कुपात्र कुतर्की | मित्रद्रोही विस्वासघातकी |
कृतघ्न तल्पकी नारकी | अतित्याई जल्पक ||२६||
किंत भांडण झगडा कळहो | अधर्म अनराहाटी शोकसंग्रहो |
चाहाड वेसनी विग्रहो | निग्रहकर्ता ||२७||
द्वाड आपेसी वोंगळ | चाळक चुंबक लच्याळ |
स्वार्थी अभिळासी वोढाळ | आदत्त झोड आदखणा ||२८||
शठ शुंभ कातरु | लंड तर्मुंड सिंतरु |
बंड पाषांड तश्करु | अपहारकर्ता ||२९||
धीट सैराट मोकाट | चाट चावट वाजट |
थोट उद्धट लंपट | बटवाल कुबुद्धी ||३०||
मारेकरी वरपेकरी | दरवडेकरी खाणोरी |
मैंद भोंदु परद्वारी | भुररेकरी चेटकी ||३१||
निशंक निलाजिरा कळभंट | टौणपा लौंद धट उद्धट |
ठस ठोंबस खट नट | जगभांड विकारी ||३२||
अधीर आळिका अनाचारी | अंध पंगु खोकलेंकरी |
थोंटा बधिर दमेकरी | तऱ्ही ताठा न संडी ||३३||
विद्याहीन वैभवहीन | कुळहीन लक्ष्मीहीन |
शक्तिहीन सामर्थ्यहीन | अदृष्टहीन भिकारी ||३४||
बळहीन कळाहीन | मुद्राहीन दीक्षाहीन |
लक्षणहीन लावण्यहीन | आंगहीन विपारा ||३५||
युक्तिहीन बुद्धिहीन | आचारहीन विचारहीन |
क्रियाहीन सत्वहीन | विवेकहीन संशई ||३६||
भक्तिहीन भावहीन | ज्ञानहीन वैराग्यहीन |
शांतिहीन क्ष्माहीन | सर्वहीन क्षुल्लकु ||३७||
समयो नेणे प्रसंग नेणे | प्रेत्न नेणे अभ्यास नेणे |
आर्जव नेणे मैत्री नेणे | कांहींच नेणे अभागी ||३८||
असो ऐसे नाना विकार | कुलक्षणाचें कोठार |
ऐसा कुविद्येचा नर | श्रोतीं वोळखावा ||३९||
ऐसीं कुविद्येचीं लक्षणें | ऐकोनि त्यागची करणें |
अभिमानें तऱ्हें भरणें | हें विहित नव्हें ||४०||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कुविद्यालक्षणनाम
समास तिसरा ||३||२. ३
समास चवथा : भक्ति निरूपण
||श्रीराम ||
नाना सुकृताचें फळ | तो हा नरदेह केवळ |
त्याहिमधें भाग्य सफळ | तरीच सन्मार्ग लागे ||१||
नरदेहीं विशेष ब्राह्मण | त्याहीवरी संध्यास्नान |
सद्वासना भगवद्भजन | घडे पूर्वपुण्यें ||२||
भगवद्भक्ति हे उत्तम | त्याहिवरी सत्समागम |
काळ सार्थक हाचि परम | लाभ, जाणावा ||३||
प्रेमप्रीतीचा सद्भाव | आणी भक्तांचा समुदाव |
हरिकथा मोहोत्साव | तेणें प्रेमा दुणावे ||४||
नरदेहीं आलियां येक | कांही करावें सार्थक |
जेणें पाविजे परलोक | परम दुल्लभ जो ||५||
विधियुक्त ब्रह्मकर्म | अथवा दया दान धर्म |
अथवा करणें सुगम | भजन भगवंताचें ||६||
अनुतापें करावा त्याग | अथवा करणें भक्तियोग |
नाहीं तरी धरणें संग | साधुजनाचा ||७||
नाना शास्त्रें धांडोळावीं | अथवा तीर्थे तरी करावीं |
अथवा पुरश्चरणें बरवीं | पापक्षयाकारणें ||८||
अथवा कीजे परोपकार | अथवा ज्ञानाचा विचार |
निरूपणीं सारासार | विवेक करणें ||९||
पाळावी वेदांची आज्ञा | कर्मकांड उपासना |
जेणें होइजे ज्ञाना-| आधिकारपात्र ||१०||
काया वाचा आणी मनें | पत्रें पुष्पें फळें जीवनें |
कांहीं तरी येका भजनें | सार्थक करावें ||११||
जन्मा आलियाचें फळ | कांहीं करावें सफळ |
ऐसें न करितां निर्फळ | भूमिभार होये ||१२||
नरदेहाचे उचित | कांहीं करावें आत्महित |
येथानुशक्त्या चित्तवित्त | सर्वोत्तमीं लावावें ||१३||
हें कांहींच न धरी जो मनीं | तो मृत्यप्राय वर्ते जनीं |
जन्मा येऊन तेणें जननी | वायांच कष्टविली ||१४||
नाहीं संध्या नाहीं स्नान | नाहीं भजन देवतार्चन |
नाहीं मंत्र जप ध्यान | मानसपूजा ||१५||
नाहीं भक्ति नाहीं प्रेम | नाहीं निष्ठा नाहीं नेम |
नाहीं देव नाहीं धर्म | अतीत अभ्यागत ||१६||
नाहीं सद्बुद्धि नाहीं गुण | नाहीं कथा नाहीं श्रवण |
नाहीं अध्यात्मनिरूपण | ऐकिलें कदां ||१७||
नाहीं भल्यांची संगती | नाहीं शुद्ध चित्तवृत्ती |
नाहीं कैवल्याची प्राप्ती | मिथ्यामदें ||१८||
नाहीं नीति नाहीं न्याये | नाहीं पुण्याचा उपाये |
नाहीं परत्रीची सोये | युक्तायुक्त क्रिया ||१९||
नाहीं विद्या नाहीं वैभव | नाहीं चातुर्याचा भाव |
नाहीं कळा नाहीं लाघव | रम्यसरस्वतीचें ||२०||
शांती नाहीं क्ष्मा नाहीं | दीक्षा नाहीं मैत्री नाहीं |
शुभाशुभ कांहींच नाहीं | साधनादिक ||२१||
सुचि नाहीं स्वधर्म नाहीं | आचार नाहीं विचार नाहीं |
आरत्र नाहीं परत्र नाहीं | मुक्त क्रिया मनाची ||२२||
कर्म नाहीं उपासना नाहीं | ज्ञान नाहीं वैराग्य नाहीं |
योग नाहीं धारिष्ट नाहीं | कांहीच नाहीं पाहातां ||२३||
उपरती नाहीं त्याग नाहीं | समता नाहीं लक्षण नाहीं |
आदर नाहीं प्रीति नाहीं | परमेश्वराची ||२४||
परगुणाचा संतोष नाहीं | परोपकारें सुख नाहीं |
हरिभक्तीचा लेश नाहीं | अंतर्यामीं ||२५||
ऐसे प्रकारीचे पाहातां जन | ते जीतचि प्रेतासमान |
त्यांसीं न करावें भाषण | पवित्र जनीं ||२६||
पुण्यसामग्री पुरती | तयासीच घडें भगवद्भक्ती |
जें जें जैसें करिती | ते पावती तैसेंचि ||२७||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे भक्तिनिरूपणणनाम
समास चवथा ||४||२. ४
समास पांचवा : रजोगुण लक्षण
||श्रीराम ||
मुळीं देह त्रिगुणाचा | सत्त्वरजतमाचा |
त्यामध्यें सत्त्वाचा | उत्तम गुण ||१||
सत्वगुणें भगवद्भक्ती | रजोगुणें पुनरावृत्ती |
तमोगुणें अधोगती | पावति प्राणी ||२||
श्लोक ||ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः |
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ||
त्यांतहि शुद्ध आणी सबळ | तेहि बोलिजेति सकळ |
शुद्ध तेंचि जें निर्मळ | सबळ बाधक जाणावें ||३||
शुद्धसबळाचें लक्षण | सावध परिसा विचक्षण |
शुद्ध तो परमार्थी जाण | सबळ तो संसारिक ||४||
तयां संसारिकांची स्थिती | देहीं त्रिगुण वर्तती |
येक येतां दोनी जाती | निघोनियां ||५||
रज तम आणी सत्व | येणेंचि चाले जीवित्व |
रजोगुणाचें कर्तृत्व | दाखऊं आता ||६||
रजोगुण येतां शरिरीं | वर्तणुक कैसी करी |
सावध होऊनी चतुरीं | परिसावें ||७||
माझें घर माझा संसार | देव कैंचा आणिला थोर |
ऐसा करी जो निर्धार | तो रजोगुण ||८||
माता पिता आणी कांता | पुत्र सुना आणी दुहिता |
इतुकियांची वाहे चिंता | तो रजोगुण ||९||
बरें खावें बरें जेवावें | बरें ल्यावें बरें नेसावें |
दुसऱ्याचें अभिळाषावें | तो रजोगुण ||१०||
कैंचा धर्म कैंचें दान | कैंचा जप कैंचें ध्यान |
विचारीना पापपुण्य | तो रजोगुण ||११||
नेणे तीर्थ नेणे व्रत | नेणे अतीत अभ्यागत |
अनाचारीं मनोगत | तो रजोगुण ||१२||
धनधान्याचे संचित | मन होये द्रव्यासक्त |
अत्यंत कृपण जीवित्व | तो रजोगुण ||१३||
मी तरुण मी सुंदर | मी बलाढ्य मी चतुर |
मी सकळांमध्ये थोर-| म्हणे, तो रजोगुण ||१४||
माझा देश माझा गांव | माझा वाडा माझा ठाव |
ऐसी मनीं धरी हांव | तो रजोगुण ||१५||
दुसऱ्याचें सर्व जावें | माझेंचि बरें असावें |
ऐसें आठवे स्वभावें | तो रजोगुण ||१६||
कपट आणी मत्सर | उठे देहीं तिरस्कार |
अथवा कामाचा विकार | तो रजोगुण ||१७||
बाळकावरी ममता | प्रीतीनें आवडे कांता |
लोभ वाटे समस्तां | तो रजोगुण ||१८||
जिवलगांची खंती | जेणें काळें वाटे चित्तीं |
तेणें काळें सीघ्रगती | रजोगुण आला ||१९||
संसाराचे बहुत कष्ट | कैसा होईल सेवट |
मनास आठवे संकट | तो रजोगुण ||२०||
कां मागें जें जें भोगिलें | तें तें मनीं आठवलें |
दुःख अत्यंत वाटलें | तो रजोगुण ||२१||
वैभव देखोनि दृष्टी | आवडी उपजली पोटीं |
आशागुणें हिंपुटी-| करी, तो रजोगुण ||२२||
जें जें दृष्टी पडिलें | तें तें मनें मागितलें |
लभ्य नस्तां दुःख जालें | तो रजोगुण ||२३||
विनोदार्थीं भरे मन | शृंघारिक करी गायेन |
राग रंग तान मान | तो रजोगुण ||२४||
टवाळी ढवाळी निंदा | सांगणें घडे वेवादा |
हास्य विनोद करी सर्वदा | तो रजोगुण ||२५||
आळस उठे प्रबळ | कर्मणुकेचा नाना खेळ |
कां उपभोगाचे गोंधळ | तो रजोगुण ||२६||
कळावंत बहुरूपी | नटावलोकी साक्षेपी |
नाना खेळी दान अर्पी | तो रजोगुण ||२७||
उन्मत्त द्रव्यापरी अति प्रीती | ग्रामज्य आठवे चित्तीं |
आवडे नीचाची संगती | तो रजोगुण ||२८||
तश्करविद्या जीवीं उठे | परन्यून बोलावें वाटे |
नित्यनेमास मन विटे | तो रजोगुण ||२९||
देवकारणीं लाजाळु | उदरालागीं कष्टाळु |
प्रपंची जो स्नेहाळु | तो रजोगुण ||३०||
गोडग्रासीं आळकेपण | अत्यादरें पिंडपोषण |
रजोगुणें उपोषण | केलें न वचे ||३१||
शृंगारिक तें आवडे | भक्ती वैराग्य नावडे |
कळालाघवीं पवाडे | तो रजोगुण ||३२||
नेणोनियां परमात्मा | सकळ पदार्थी प्रेमा |
बळात्कारें घाली जन्मा | तो रजोगुण ||३३||
असो ऐसा रजोगुण | लोभें दावी जन्ममरण |
प्रपंची तो सबळ जाण | दारुण दुःख भोगवी ||३४||
आतां रजोगुण हा सुटेना | संसारिक हें तुटेना |
प्रपंचीं गुंतली वासना | यास उपाय कोण ||३५||
उपाये येक भगवद्भक्ती | जरी ठाकेना विरक्ती |
तरी येथानुशक्ती | भजन करावें ||३६||
काया वाचा आणी मनें | पत्रें पुष्पें फळें जीवनें |
ईश्वरीं अर्पूनियां मनें | सार्थक करावें ||३७||
येथानुशक्ती दानपुण्य | परी भगवंतीं अनन्य |
सुखदुःखें परी चिंतन | देवाचेंचि करावें ||३८||
आदिअंती येक देव | मध्येंचि लाविली माव |
म्हणोनियां पूर्ण भाव | भगवंतीं असावा ||३९||
ऐसा सबळ रजोगुण | संक्षेपें केलें कथन |
आतां शुद्ध तो तूं जाण | परमार्थिक ||४०||
त्याचे वोळखीचें चिन्ह | सत्वगुणीं असे जाण |
तो रजोगुण परिपूर्ण | भजनमूळ ||४१||
ऐसा रजोगुण बोलिला | श्रोतीं मनें अनुमानिला |
आतां पुढें परिसिला | पाहिजे तमोगुण ||४२||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे रजोगुणलक्षणनाम
समास पांचवा ||५||२. ५
समास सहावा : तमोगुण लक्षण
||श्रीराम ||
मागां बोलिला रजोगुण | क्रियेसहित लक्षण |
आतां ऐका तमोगुण | तोहि सांगिजेल ||१||
संसारीं दुःखसंमंध | प्राप्त होतां उठे खेद |
कां अद्भुत आला क्रोध | तो तमोगुण ||२||
शेरीरीं क्रोध भरतां | नोळखे माता पिता |
बंधु बहिण कांता | ताडी, तो तमोगुण ||३||
दुसऱ्याचा प्राण घ्यावा | आपला आपण स्वयें द्यावा |
विसरवी जीवभावा | तो तमोगुण ||४||
भरलें क्रोधाचें काविरें | पिश्याच्यापरी वावरे |
नाना उपायें नावरे | तो तमोगुण ||५||
आपला आपण शस्त्रपात | पराचा करी घात |
ऐसा समय वर्तत | तो तमोगुण ||६||
डोळा युध्यचि पाहावें | रण पडिलें तेथें जावें |
ऐसें घेतलें जीवें | तो तमोगुण ||७||
अखंड भ्रांती पडे | केला निश्चय विघडे |
अत्यंत निद्रा आवडे | तो तमोगुण ||८||
क्षुधा जयाची वाड | नेणे कडु अथवा गोड |
अत्यंत जो कां मूढ | तो तमोगुण ||९||
प्रीतिपात्र गेलें मरणें | तयालागीं जीव देणें |
स्वयें आत्महत्या करणें | तो तमोगुण ||१०||
किडा मुंगी आणी स्वापद | यांचा करूं आवडे वध |
अत्यंत जो कृपामंद | तो तमोगुण ||११||
स्त्रीहत्या बाळहत्या | द्रव्यालागीं ब्रह्महत्या |
करूं आवडे गोहत्या | तो तमोगुण ||१२||
विसळाचेनि नेटें | वीष घ्यावेंसें वाटे |
परवध मनीं उठे | तो तमोगुण ||१३||
अंतरीं धरूनि कपट | पराचें करी तळपट |
सदा मस्त सदा उद्धट | तो तमोगुण ||१४||
कळहो व्हावा ऐसें वाटे | झोंबी घ्यावी ऐसें उठे | varकळह
अन्तरी द्वेष प्रगटे | तो तमोगुण ||१५||
युध्य देखावें ऐकावें | स्वयें युध्यचि करावें |
मारावें कीं मरावें | तो तमोगुण ||१६||
मत्सरें भक्ति मोडावी | देवाळयें विघडावीं |
फळतीं झाडें तोडावीं | तो तमोगुण ||१७||
सत्कर्में ते नावडती | नाना दोष ते आवडती |
पापभय नाहीं चित्ती | तो तमोगुण ||१८||
ब्रह्मवृत्तीचा उछेद | जीवमात्रास देणें खेद |
करूं आवडे अप्रमाद | तो तमोगुण ||१९||
आग्नप्रळये शस्त्रप्रळये | भूतप्रळये वीषप्रळये |
मत्सरें करीं जीवक्षये | तो तमोगुण ||२०||
परपीडेचा संतोष | निष्ठुरपणाचा हव्यास |
संसाराचा नये त्रास | तो तमोगुण ||२१||
भांडण लाऊन द्यावें | स्वयें कौतुक पाहावें |
कुबुद्धि घेतली जीवें | तो तमोगुण ||२२||
प्राप्त जालियां संपत्ती | जीवांस करी यातायाती |
कळवळा नये चित्तीं | तो तमोगुण ||२३||
नावडे भक्ति नावडे भाव | नावडे तीर्थ नावडे देव |
वेदशास्त्र नलगे सर्व | तो तमोगुण ||२४||
स्नानसंध्या नेम नसे | स्वधर्मीं भ्रष्टला दिसे |
अकर्तव्य करीतसे | तो तमोगुण ||२५||
जेष्ठ बंधु बाप माये | त्यांचीं वचनें न साहे |
सीघ्रकोपी निघोन जाये | तो तमोगुण ||२६||
उगेंचि खावें उगेंचि असावें | स्तब्ध होऊन बैसावें |
कांहींच स्मरेना स्वभावें | तो तमोगुण ||२७||
चेटकविद्येचा अभ्यास | शस्त्रविद्येचा हव्यास |
मल्लविद्या व्हावी ज्यास | तो तमोगुण ||२८||
केले गळाचे नवस | राडिबेडीचे सायास |
काष्ठयंत्र छेदी जिव्हेस | तो तमोगुण ||२९||
मस्तकीं भदें जाळावें | पोतें आंग हुरपळावें |
स्वयें शस्त्र टोचून घ्यावें | तो तमोगुण ||३०||
देवास सिर वाहावें | कां तें आंग समर्पावें |
पडणीवरून घालून घ्यावे | तो तमोगुण ||३१||
निग्रह करून धरणें | कां तें टांगून घेणें |
देवद्वारीं जीव देणें | तो तमोगुण ||३२||
निराहार उपोषण | पंचाग्नी धूम्रपान |
आपणास घ्यावें पुरून | तो तमोगुण ||३३||
सकाम जें का अनुष्ठान | कां तें वायोनिरोधन |
अथवा राहावें पडोन | तो तमोगुण ||३४||
नखें केश वाढवावे | हस्तचि वर्ते करावे |
अथवा वाग्सुंन्य व्हावें | तो तमोगुण ||३५||
नाना निग्रहें पिडावें | देहदुःखें चर्फडावें |
क्रोधें देवांस फोडावें | तो तमोगुण ||३६||
देवाची जो निंदा करी | तो आशाबद्धि अघोरी |
जो संतसंग न धरी | तो तमोगुण ||३७||
ऐसा हा तमोगुण | सांगतां जो असाधारण |
परी त्यागार्थ निरूपण | कांहीं येक ||३८||
ऐसें वर्ते तो तमोगुण | परी हा पतनास कारण |
मोक्षप्राप्तीचें लक्षण | नव्हे येणें ||३९||
केल्या कर्माचें फळ | प्राप्त होईल सकळ |
जन्म दुःखाचें मूळ | तुटेना कीं ||४०||
व्हावया जन्माचें खंडण | पाहिजे तो सत्त्वगुण | var सत्वगुण
तेंचि असे निरूपण | पुढिले समासीं ||४१||var पुढिलिये
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे तमोगुणलक्षणनाम
समास सहावा ||६||२. ६
समास सातवा : सत्त्वगुण लक्षण
||श्रीराम ||
मागां बोलिला तमोगुण | जो दुःखदायक दारुण |
आतां ऐका सत्त्वगुण | परम दुल्लभ ||१||
जो भजनाचा आधार | जो योगियांची थार |
जो निरसी संसार | दुःखमूळ जो ||२||
जेणें होये उत्तम गती | मार्ग फुटे भगवंतीं |
जेणें पाविजे मुक्ती | सायोज्यता ते ||३||
जो भक्तांचा कोंवसा | जो भवार्णवींचा भर्वसा |
मोक्षलक्ष्मीची दशा | तो सत्त्वगुण ||४||
जो परमार्थाचें मंडण | जो महंतांचें भूषण |
रजतमाचें निर्शन | तो सत्त्वगुण ||५||
जो परमसुखकारी | जो आनंदाची लहरी |
देऊनियां, निवारी-| जन्ममृत्य ||६||
जो अज्ञानाचा सेवट | जो पुण्याचें मूळ पीठ |
जयाचेनि सांपडे वाट | परलोकाची ||७||
ऐसा हा सत्त्वगुण | देहीं उमटतां आपण |
तये क्रियेचें लक्षण | ऐसें असे ||८||
ईश्वरीं प्रेमा अधिक | प्रपंच संपादणे लोकिक |
सदा सन्निध विवेक | तो सत्त्वगुण ||९||
संसारदुःख विसरवी | भक्तिमार्ग विमळ दावी |
भजनक्रिया उपजवी | तो सत्त्वगुण ||१०||
परमार्थाची आवडी | उठे भावार्थाची गोडी |
परोपकारीं तांतडी | तो सत्त्वगुण ||११||
स्नानसंध्या पुण्यसीळ | अभ्यांतरींचा निर्मळ |
शरीर वस्त्रें सोज्वळ | तो सत्त्वगुण ||१२||
येजन आणी याजन | आधेन आणी अध्यापन |
स्वयें करी दानपुण्य | तो सत्त्वगुण ||१३||
निरूपणाची आवडी | जया हरिकथेची गोडी |
क्रिया पालटे रोकडी | तो सत्त्वगुण ||१४||
अश्वदानें गजदानें | गोदानें भूमिदानें |
नाना रत्नांचीं दानें-| करी, तो सत्त्वगुण ||१५||
धनदान वस्त्रदान | अन्नदान उदकदान |
करी ब्राह्मणसंतर्पण | तो सत्त्वगुण ||१६||
कार्तिकस्नानें माघस्नानें | व्रतें उद्यापनें दानें |
निःकाम तीर्थें उपोषणे | तो सत्त्वगुण ||१७||
सहस्रभोजनें लक्षभोजनें | विविध प्रकारींचीं दानें |
निःकाम करी सत्वगुणें | कामना रजोगुण ||१८||
तीर्थीं अर्पी जो अग्रारें | बांधे वापी सरोवरें |
बांधे देवाळयें सिखरें | तो सत्त्वगुण ||१९||
देवद्वारीं पडशाळा | पाईरीया दीपमाळा |
वृंदावनें पार पिंपळा-| बांधे, तो सत्त्वगुण ||२०||
लावीं वनें उपवनें | पुष्पवाटिका जीवनें |
निववी तापस्यांचीं मनें | तो सत्त्वगुण ||२१||
संध्यामठ आणि भुयेरीं | पाईरीया नदीतीरीं |
भांडारगृहें देवद्वारीं | बांधें, तो सत्त्वगुण ||२२||
नाना देवांचीं जे स्थानें | तेथें नंदादीप घालणें |
वाहे आळंकार भूषणें | तो सत्त्वगुण ||२३||
जेंगट मृदांग टाळ | दमामे नगारे काहळ |
नाना वाद्यांचे कल्लोळ | सुस्वरादिक ||२४||
नाना सामग्री सुंदर | देवाळईं घाली नर |
हरिभजनीं जो तत्पर | तो सत्त्वगुण ||२५||
छेत्रें आणी सुखासनें | दिंड्या पताका निशाणें |
वाहे चामरें सूर्यापानें | तो सत्त्वगुण ||२६||
वृंदावनें तुळसीवने | रंगमाळा संमार्जनें |
ऐसी प्रीति घेतली मनें | तो सत्त्वगुण ||२७||
सुंदरें नाना उपकर्णें | मंडप चांदवे आसनें |
देवाळईं समर्पणें | तो सत्त्वगुण ||२८||
देवाकारणें खाद्य | नाना प्रकारीं नैवेद्य |
अपूर्व फळें अर्पी सद्य | तो सत्त्वगुण ||२९||
ऐसी भक्तीची आवडी | नीच दास्यत्वाची गोडी |
स्वयें देवद्वार झाडी | तो सत्त्वगुण ||३०||
तिथी पर्व मोहोत्साव | तेथें ज्याचा अंतर्भाव |
काया वाचा मनें सर्व-| अर्पी, तो सत्त्वगुण ||३१||
हरिकथेसी तत्पर | गंधें माळा आणी धुशर |
घेऊन उभीं निरंतर | तो सत्त्वगुण ||३२||
नर अथवा नारी | येथानुशक्ति सामग्री |
घेऊन उभीं देवद्वारीं | तो सत्त्वगुण ||३३||
महत्कृत्य सांडून मागें | देवास ये लागवेगें |
भक्ति निकट आंतरंगें | तो सत्त्वगुण ||३४||
थोरपण सांडून दुरी | नीच कृत्य आंगीकारी |
तिष्ठत उभा देवद्वारीं | तो सत्त्वगुण ||३५||
देवालागीं उपोषण | वर्जी तांबोल भोजन |
नित्य नेम जप ध्यान-| करी, तो सत्त्वगुण ||३६||
शब्द कठीण न बोले | अतिनेमेसी चाले |
योगी जेणें तोषविले | तो सत्त्वगुण ||३७||
सांडूनिया अभिमान | निःकाम करी कीर्तन |
श्वेद रोमांच स्फुराण | तो सत्त्वगुण ||३८||
अंतरीं देवाचें ध्यान | तेणें निडारले नयन |
पडे देहाचें विस्मरण | तो सत्त्वगुण ||३९||
हरिकथेची अति प्रीति | सर्वथा नये विकृती |
आदिक प्रेमा आदिअंतीं | तो सत्त्वगुण ||४०||
मुखीं नाम हातीं टाळी | नाचत बोले ब्रीदावळी |
घेऊन लावी पायधुळी | तो सत्त्वगुण ||४१||
देहाभिमान गळे | विषईं वैराग्य प्रबळे |
मिथ्या माया ऐसें कळे | तो सत्त्वगुण ||४२||
कांहीं करावा उपाये | संसारीं गुंतोन काये |
उकलवी ऐसें हृदये | तो सत्त्वगुण ||४३||
संसारासी त्रासे मन | कांहीं करावें भजन |
ऐसें मनीं उठे ज्ञान | तो सत्त्वगुण ||४४||
असतां आपुले आश्रमीं | अत्यादरें नित्यनेमी |
सदा प्रीती लागे रामीं | तो सत्त्वगुण ||४५||
सकळांचा आला वीट | परमार्थीं जो निकट |
आघातीं उपजे धारिष्ट | तो सत्त्वगुण ||४६||
सर्वकाळ उदासीन | नाना भोगीं विटे मन |
आठवे भगवद्भजन | तो सत्त्वगुण ||४७||
पदार्थीं न बैसे चित्त | मनीं आठवे भगवंत |
ऐसा दृढ भावार्थ | तो सत्त्वगुण ||४८||
लोक बोलती विकारी | तरी आदिक प्रेमा धरी |
निश्चय बाणे अंतरीं | तो सत्त्वगुण ||४९||
अंतरीं स्फूर्ती स्फुरे | सस्वरूपीं तर्क भरे |
नष्ट संदेह निवारे | तो सत्त्वगुण ||५०||
शरीर लावावें कारणीं | साक्षेप उठे अंतःकर्णी |
सत्वगुणाची करणी | ऐसी असे ||५१||
शांति क्ष्मा आणि दया | निश्चय उपजे जया |
सत्वगुण जाणावा तया | अंतरीं आला ||५२||
आले अतीत अभ्यागत | जाऊं नेदी जो भुकिस्त |
येथानुशक्ती दान देत | तो सत्त्वगुण ||५३||
तडितापडी दैन्यवाणें | आलें आश्रमाचेनि गुणें |
तयालागीं स्थळ देणें | तो सत्त्वगुण ||५४||
आश्रमीं अन्नाची आपदा | परी विमुख नव्हे कदा |
शक्तिनुसार दे सर्वदा | तो सत्त्वगुण ||५५||
जेणें जिंकिली रसना | तृप्त जयाची वासना |
जयास नाहीं कामना | तो सत्त्वगुण ||५६||
होणार तैसें होत जात | प्रपंचीं जाला आघात |
डळमळिना ज्याचें चित्त | तो सत्त्वगुण ||५७||
येका भगवंताकारणें | सर्व सुख सोडिलें जेणें |
केलें देहाचें सांडणें | तो सत्त्वगुण ||५८||
विषईं धांवे वासना | परी तो कदा डळमळिना |
ज्याचें धारिष्ट चळेना | तो सत्त्वगुण ||५९||
देह आपदेनें पीडला | क्षुधे तृषेनें वोसावला |
तरी निश्चयो राहिला | तो सत्त्वगुण ||६०||
श्रवण आणी मनन | निजध्यासें समाधान |
शुद्ध जालें आत्मज्ञान | तो सत्त्वगुण ||६१||
जयास अहंकार नसे | नैराशता विलसे |
जयापासीं कृपा वसे | तो सत्त्वगुण ||६२||
सकळांसीं नम्र बोले | मर्यादा धरून चाले |
सर्व जन तोषविले | तो सत्त्वगुण ||६३||
सकळ जनासीं आर्जव | नाहीं विरोधास ठाव |
परोपकारीं वेची जीव | तो सत्त्वगुण ||६४||
आपकार्याहून जीवीं | परकार्यसिद्धी करावी |
मरोन कीर्ती उरवावी | तो सत्त्वगुण ||६५||
पराव्याचे दोषगुण | दृष्टीस देखे आपण |
समुद्राऐसी साठवण | तो सत्त्वगुण ||६६||
नीच उत्तर साहाणें | प्रत्योत्तर न देणें |
आला क्रोध सावरणें | तो सत्त्वगुण ||६७||
अन्यायेंवीण गांजिती | नानापरी पीडा करिती |
तितुकेंहि साठवी चित्तीं | तो सत्त्वगुण ||६८||
शरीरें घीस साहाणें | दुर्जनासीं मिळोन जाणें |
निंदकास उपकार करणें | हा सत्त्वगुण ||६९||
मन भलतीकडे धावें | तें विवेकें आवरावें |
इंद्रियें दमन करावें | तो सत्त्वगुण ||७०||
सत्क्रिया आचरावी | असत्क्रिया त्यागावी |
वाट भक्तीची धरावी | तो सत्त्वगुण ||७१||
जया आवडे प्रातःस्नान | आवडे पुराणश्रवण |
नाना मंत्रीं देवतार्चन-| करी, तो सत्त्वगुण ||७२||
पर्वकाळीं अतिसादर | वसंतपूजेस तत्पर |
जयंत्यांची प्रीती थोर | तो सत्त्वगुण ||७३||
विदेसिं मेलें मरणें | तयास संस्कार देणें |
अथवा सादर होणें | तो सत्त्वगुण ||७४||
कोणी येकास मारी | तयास जाऊन वारी |
जीव बंधनमुक्त करी | तो सत्त्वगुण ||७५||
लिंगें लाखोलीं अभिशेष | नामस्मरणीं विश्वास |
देवदर्शनीं अवकाश | तो सत्त्वगुण ||७६||
संत देखोनि धावें | परम सुख हेलावे |
नमस्कारी सर्वभावें | तो सत्त्वगुण ||७७||
संतकृपा होय जयास | तेणें उद्धरिला वंश |
तो ईश्वराचा अंश | सत्वगुणें ||७८||
सन्मार्ग दाखवी जना | जो लावी हरिभजना |
ज्ञान सिकवी अज्ञाना | तो सत्त्वगुण ||७९||
आवडे पुण्य संस्कार | प्रदक्षणा नमस्कार |
जया राहे पाठांतर | तो सत्त्वगुण ||८०||
भक्तीचा हव्यास भारी | ग्रंथसामग्री जो करी |
धातुमूर्ति नानापरी | पूजी, तो सत्त्वगुण ||८१||
झळफळित उपकर्णें | माळा गवाळी आसनें |
पवित्रे सोज्वळें वसनें | तो सत्त्वगुण ||८२||
परपीडेचें वाहे दुःख | परसंतोषाचें सुख |
वैराग्य देखोन हरिख-| मानी, तो सत्त्वगुण ||८३||
परभूषणें भूषण | परदूषणें दूषण |
परदुःखें सिणे जाण | तो सत्त्वगुण ||८४||
आतां असों हें बहुत | देवीं धर्मीं ज्याचें चित्त |
भजे कामनारहित | तो सत्त्वगुण ||८५||
ऐसा हा सत्त्वगुण सात्विक | संसारसागरीं तारक |
येणें उपजे विवेक | ज्ञानमार्गाचा ||८६||
सत्वगुणें भगवद्भक्ती | सत्वगुणें ज्ञानप्राप्ती |
सत्वगुणें सायोज्यमुक्ती | पाविजेते ||८७||
ऐसी सत्वगुणाची स्थिती | स्वल्प बोलिलें येथामती |
सावध होऊन श्रोतीं | पुढें अवधान द्यावें ||८८||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सत्त्वगुणनाम
समास सातवा ||७||२. ७
समास आठवा : सद्विद्या निरूपण
||श्रीराम ||
ऐका सद्विद्येचीं लक्षणें | परम शुद्ध सुलक्षणें |
विचार घेतां बळेंचि बाणे | सद्विद्या आंगीं ||१||
सद्विद्येचा जो पुरुष | तो उत्तमलक्षणी विशेष |
त्याचे गुण ऐकतां संतोष | परम वाटे ||२||
भाविक सात्विक प्रेमळ | शांति क्ष्मा दयासीळ |
लीन तत्पर केवळ | अमृतवचनी ||३||
परम सुंदर आणी चतुर | परम सबळ आणी धीर |
परम संपन्न आणी उदार | आतिशयेंसीं ||४||
परम ज्ञाता आणी भक्त | माहा पंडीत आणी विरक्त |
माहा तपस्वी आणी शांत | आतिशयेंसीं ||५||
वक्ता आणी नैराशता | सर्वज्ञ आणी सादरता |
श्रेष्ठ आणी नम्रता | सर्वत्रांसी ||६||
राजा आणी धार्मिक | शूर आणी विवेक |
तारुण्य आणी नेमक | आतिशयेंसीं ||७||
वृधाचारी कुळाचारी | युक्ताहारी निर्विकारी |
धन्वंतरी परोपकारी | पद्महस्ती ||८||
कार्यकर्ता निराभिमानी | गायक आणी वैष्णव जनी |
वैभव आणी भगवद्भजनी | अत्यादरें ||९||
तत्वज्ञ आणी उदासीन | बहुश्रुत आणी सज्जन |
मंत्री आणी सगुण | नीतिवंत ||१०||
साधु पवित्र पुण्यसीळ | अंतरशुद्ध धर्मात्मा कृपाळ |
कर्मनिष्ठ स्वधर्में निर्मळ | निर्लोभ अनुतापी ||११||
गोडी आवडी परमार्थप्रीती | सन्मार्ग सत्क्रिया धारणा धृती |
श्रुति स्मृती लीळा युक्ति | स्तुती मती परीक्षा ||१२||
दक्ष धूर्त योग्य तार्किक | सत्यसाहित्य नेमक भेदक |
कुशळ चपळ चमत्कारिक | नाना प्रकारें ||१३||
आदर सन्मान तार्तम्य जाणे | प्रयोगसमयो प्रसंग जाणे |
कार्याकारण चिन्हें जाणे | विचक्षण बोलिका ||१४||
सावध साक्षेपी साधक | आगम निगम शोधक |
ज्ञानविज्ञान बोधक | निश्चयात्मक ||१५||
पुरश्चरणी तीर्थवासी | दृढव्रती कायाक्लेसी |
उपासक, निग्रहासी-| करूं जाणे ||१६||
सत्यवचनी शुभवचनी | कोमळवचनी येकवचनी |
निश्चयवचनी सौख्यवचनी | सर्वकाळ ||१७||
वासनातृप्त सखोल योगी | भव्य सुप्रसन्न वीतरागी |
सौम्य सात्विक शुद्धमार्गी | निःकपट निर्वेसनी ||१८||
सुगड संगीत गुणग्राही | अनापेक्षी लोकसंग्रही |
आर्जव सख्य सर्वहि | प्राणीमात्रासी ||१९||
द्रव्यसुची दारासुची | न्यायसुची अंतरसुची |
प्रवृत्तिसुची निवृत्तिसुची | सर्वसुची निःसंगपणें ||२०||
मित्रपणें परहितकारी | वाग्माधुर्य परशोकहारी |
सामर्थ्यपणें वेत्रधारी | पुरूषार्थें जगमित्र ||२१||
संशयछेदक विशाळ वक्ता | सकळ क्लृप्त असोनी श्रोता |
कथानिरूपणीं शब्दार्था | जाऊंच नेदी ||२२||
वेवादरहित संवादी | संगरहित निरोपाधी |
दुराशारहित अक्रोधी | निर्दोष निर्मत्सरी ||२३||
विमळज्ञानी निश्चयात्मक | समाधानी आणी भजक |
सिद्ध असोनी साधक | साधन रक्षी ||२४||
सुखरूप संतोषरूप | आनंदरूप हास्यरूप |
ऐक्यरूप आत्मरूप | सर्वत्रांसी ||२५||
भाग्यवंत जयवंत | रूपवंत गुणवंत |
आचारवंत क्रियावंत | विचारवंत स्थिती ||२६||
येशवंत किर्तिवंत | शक्तिवंत सामर्थ्यवंत |
वीर्यवंत वरदवंत | सत्यवंत सुकृती ||२७||
विद्यावंत कळावंत | लक्ष्मीवंत लक्ष्णवंत |
कुळवंत सुचिष्मंत | बळवंत दयाळु ||२८||
युक्तिवंत गुणवंत वरिष्ठ | बुद्धिवंत बहुधारिष्ट |
दीक्षावंत सदासंतुष्ट | निस्पृह वीतरागी ||२९||
असो ऐसे उत्तम गुण | हें सद्विद्यचें लक्षण |
अभ्यासाया निरूपण | अल्पमात्र बोलिलें ||३०||
रूपलावण्य अभ्यासितां न ये | सहजगुणास न चले उपाये |
कांहीं तरी धरावी सोये | अगांतुक गुणाची ||३१||
ऐसी सद्विद्या बरवी | सर्वत्रांपासी असावी |
परी विरक्तपुरुषें अभ्यासवी | अगत्यरूप ||३२||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सद्विद्यानिरूपणनाम
समास आठवा ||८||२. ८
समास नववा : विरक्त लक्षण
||श्रीराम ||
ऐका विरक्तांची लक्षणें | विरक्तें असावें कोण्या गुणें |
जेणें आंगीं सामर्थ्य बाणें | योगियाचें ||१||
जेणें सत्कीर्ति वाढे | जेणें सार्थकता घडे |
जेणेंकरितां महिमा चढे | विरक्तांसी ||२||
जेणें परमार्थ फावे | जेणें आनंद हेलावे |
जेणें विरक्ति दुणावे | विवेकेंसहित ||३||
जेणें सुख उचंबळे | जेणें सद्विद्या वोळे |
जेणें भाग्यश्री प्रबळे | मोक्षेंसहित ||४||
मनोरथ पूर्ण होती | सकळ कामना पुरती |
मुखीं राहे सरस्वती | मधुर बोलावया ||५||
हे लक्षणें श्रवण कीजे | आणी सदृढ जीवीं धरिजे |
तरी मग विख्यात होईजे | भूमंडळीं ||६||
विरक्तें विवेकें असावें | विरक्तें अध्यात्म वाढवावें |
विरक्तें धारिष्ट धरावें | दमनविषईं ||७||
विरक्तें राखावें साधन | विरक्तें लावावें भजन |
विरक्तें विशेष ब्रह्मज्ञान | प्रगटवावें ||८||
विरक्तें भक्ती वाढवावी | विरक्ते शांती दाखवावी |
विरक्तें येत्नें करावी | विरक्ती आपुली ||९||
विरक्तें सद्क्रिया प्रतिष्ठावी | विरक्तें निवृत्ति विस्तारावी |
विरक्तें नैराशता धरावी | सदृढ जिवेंसीं ||१०||
विरक्तें धर्मस्थापना करावी | विरक्तें नीति आवलंबावी |
विरक्तें क्ष्मा सांभाळावी | अत्यादरेंसी ||११||
विरक्तें परमार्थ उजळावा | विरक्तें विचार शोधावा |
विरक्तें सन्निध ठेवावा | सन्मार्ग सत्त्वगुण ||१२||
विरक्तें भाविकें सांभाळावीं | विरक्तें प्रेमळें निववावीं |
विरक्तें साबडीं नुपेक्षावीं | शरणागतें ||१३||
विरक्तें असावें परम दक्ष | विरक्तें असावें अंतरसाक्ष |
विरक्तें वोढावा कैपक्ष | परमार्थाचा ||१४||
विरक्तें अभ्यास करावा | विरक्तें साक्षेप धरावा |
विरक्तें वग्त्रृत्वें उभारावा | मोडला परमार्थ ||१५||var वग
विरक्तें विमळज्ञान बोलावें | विरक्तें वैराग्य स्तवीत जावें |
विरक्तें निश्चयाचें करावें | समाधान ||१६||
पर्वें करावीं अचाटें | चालवावी भक्तांची थाटे |
नाना वैभवें कचाटें | उपासनामार्ग ||१७||
हरिकीर्तनें करावीं | निरूपणें माजवावीं |
भक्तिमार्गे लाजवावीं | निंदक दुर्जनें ||१८||
बहुतांस करावे परोपकार | भलेपणाचा जीर्णोद्धार |
पुण्यमार्गाचा विस्तार | बळेंचि करावा ||१९||
स्नान संध्या जप ध्यान | तीर्थयात्रा भगवद्भजन |
नित्यनेम पवित्रपण | अंतरशुद्ध असावें ||२०||
दृढ निश्चयो धरावा | संसार सुखाचा करावा |
विश्वजन उद्धरावा | संसर्गमात्रें ||२१||
विरक्तें असावें धीर | विरक्तें असावें उदार |
विरक्तें असावें तत्पर | निरूपणविषईं ||२२||
विरक्तें सावध असावें | विरक्तें शुद्ध मार्गें जावें |
विरक्तें झिजोन उरवावें | सद्कीर्तीसी ||२३||
विरक्तें विरक्त धुंडावे | विरक्तें साधु वोळखावे |
विरक्तें मित्र करावे | संत योगी सज्जन ||२४||
विरक्तें करावीं पुरश्चरणें | विरक्तें फिरावीं तीर्थाटणें |
विरक्तें करावीं नानास्थानें | परम रमणीय ||२५||
विरक्तें उपाधी करावी | आणि उदासवृत्ति न संडावी |
दुराशा जडो नेदावी | कोणयेकविषईं ||२६||
विरक्तें असावें अंतरनिष्ठ | विरक्तें नसावें क्रियाभ्रष्ट |
विरक्तें न व्हावें कनिष्ठ | पराधेनपणें ||२७||
विरक्तें समय जाणावा | विरक्तें प्रसंग वोळखावा |
विरक्त चतुर असावा | सर्वप्रकारें ||२८||
विरक्तें येकदेसी नसावें | विरक्तें सर्व अभ्यासावें |
विरक्तें अवघें जाणावें | ज्याचें त्यापरी ||२९||
हरिकथा निरूपण | सगुणभजन ब्रह्मज्ञान |
पिंडज्ञान तत्वज्ञान | सर्व जाणावें ||३०||
कर्ममार्ग उपासनामार्ग | ज्ञानमार्ग सिद्धांतमार्ग |
प्रवृत्तिमार्ग निवृत्तिमार्ग | सकळ जाणावें ||३१||
प्रेमळ स्थिती उदास स्थिती | योगस्थिती ध्यानस्थिती |
विदेह स्थिती सहज स्थिती | सकळ जाणावें ||३२||
ध्वनी लक्ष मुद्रा आसनें | मंत्र यंत्र विधी विधानें |
नाना मतांचें देखणें | पाहोन सांडावें ||३३||
विरक्तें असावें जगमित्र | विरक्तें असावें स्वतंत्र |
विरक्तें असावें विचित्र | बहुगुणी ||३४||
विरक्तें असावें विरक्त | विरक्तें असावें हरिभक्त |
विरक्तें असावें नित्यमुक्त | अलिप्तपणें ||३५||
विरक्तें शास्त्रें धांडोळावीं | विरक्तें मतें विभांडावीं |
विरक्तें मुमुक्षें लावावीं | शुद्धमार्गें ||३६||
विरक्तें शुद्धमार्ग सांगावा | विरक्तें संशय छेदावा |
विरक्तें आपला म्हणावा | विश्वजन ||३७||
विरक्तें निंदक वंदावें | विरक्तें साधक बोधावे |
विरक्तें बद्ध चेववावे-| मुमुक्षनिरूपणें ||३८||
विरक्तें उत्तम गुण घ्यावे | विरक्तें अवगुण त्यागावे |
नाना अपाय भंगावे | विवेकबळें ||३९||
ऐसीं हे उत्तम लक्षणें | ऐकावीं येकाग्र मनें |
याचा अव्हेर न करणें | विरक्त पुरुषें ||४०||
इतुकें बोलिलें स्वभावें | त्यांत मानेल तितुकें घ्यावें |
श्रोतीं उदास न करावें | बहु बोलिलें म्हणौनी ||४१||
परंतु लक्षणें ने घेतां | अवलक्षणें बाष्कळता |
तेणें त्यास पढतमूर्खता | येवों पाहे ||४२||
त्या पढतमूर्खाचें लक्षण | पुढिले समासीं निरूपण |
बोलिलें असे सावधान-| होऊन आइका ||४३||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे विरक्तलक्षणनाम
समास नववा ||९||२. ९
समास दहावा : पढतमुर्ख लक्षण
||श्रीराम ||
मागां सांगितलीं लक्षणें | मूर्खाआंगी चातुर्य बाणे |
आतां ऐका शाहाणे-| असोनि, मूर्ख ||१||
तया नांव पढतमूर्ख | श्रोतीं न मनावें दुःख |
अवगुण त्यागितां, सुख-| प्राप्त होये ||२||
बहुश्रुत आणि वित्पन्न | प्रांजळ बोले ब्रह्मज्ञान |
दुराशा आणि अभिमान | धरी, तो येक पढतमूर्ख ||३||
मुक्तक्रिया प्रतिपादी | सगुणभक्ति उछेदी |
स्वधर्म आणि साधन निंदी | तो येक पढतमूर्ख ||४||
आपलेन ज्ञातेपणें | सकळांस शब्द ठेवणें |
प्राणीमात्राचें पाहे उणें | तो येक पढतमूर्ख ||५||
शिष्यास अवज्ञा घडे | कां तो संकटीं पडे |
जयाचेनि शब्दें मन मोडे | तो येक पढतमूर्ख ||६||
रजोगुणी तमोगुणी | कपटी कुटिळ अंतःकर्णी |
वैभव देखोन वाखाणी | तो येक पढतमूर्ख ||७||
समूळ ग्रंथ पाहिल्याविण | उगाच ठेवी जो दूषण |
गुण सांगतां अवगुण-| पाहे तो येक पढतमूर्ख ||८||
लक्षणें ऐकोन मानी वीट | मत्सरें करी खटपट |
नीतिन्याय उद्धट | तो येक पढतमूर्ख ||९||
जाणपणें भरीं भरे | आला क्रोध नावरे |
क्रिया शब्दास अंतरे | तो येक पढतमूर्ख ||१०||
वक्ता अधिकारेंवीण | वग्त्रृत्वाचा करी सीण | var वग
वचन जयाचें कठीण | तो येक पढतमूर्ख ||११||
श्रोता बहुश्रुतपणें | वक्तयास आणी उणें |
वाचाळपणाचेनि गुणें | तो येक पढतमूर्ख ||१२||
दोष ठेवी पुढिलांसी | तेंचि स्वयें आपणापासीं |
ऐसें कळेना जयासी | तो येक पढतमूर्ख ||१३||
अभ्यासाचेनि गुणें | सकळ विद्या जाणे |
जनास निवऊं नेणें | तो येक पढतमूर्ख ||१४||
हस्त बांधीजे ऊर्णतंतें | लोभें मृत्य भ्रमरातें |
ऐसा जो प्रपंची गुंते | तो येक पढतमूर्ख ||१५||
स्त्रियांचा संग धरी | स्त्रियांसी निरूपण करी |
निंद्य वस्तु आंगिकारी | तो येक पढतमूर्ख ||१६||
जेणें उणीव ये आंगासी | तेंचि दृढ धरी मानसीं |
देहबुद्धि जयापासीं | तो येक पढतमूर्ख ||१७||
सांडूनियां श्रीपती | जो करी नरस्तुती |
कां दृष्टी पडिल्यांची कीर्ती-| वर्णी, तो येक
पढतमूर्ख ||१८||
वर्णी स्त्रियांचे आवेव | नाना नाटकें हावभाव |
देवा विसरे जो मानव | तो येक पढतमूर्ख ||१९||
भरोन वैभवाचे भरीं | जीवमात्रास तुच्छ करी | var तुछ्य
पाषांडमत थावरी | तो येक पढतमूर्ख ||२०||
वित्पन्न आणी वीतरागी | ब्रह्मज्ञानी माहायोगी |
भविष्य सांगों लागे जगीं | तो येक पढतमूर्ख ||२१||
श्रवण होतां अभ्यांतरीं | गुणदोषाची चाळणा करी |
परभूषणें मत्सरी | तो येक पढतमूर्ख ||२२||
नाहीं भक्तीचें साधन | नाहीं वैराग्य ना भजन |
क्रियेविण ब्रह्मज्ञान-| बोले, तो येक पढतमूर्ख ||२३||
न मनी तीर्थ न मनी क्षेत्र | न मनी वेद न मनी शास्त्र |
पवित्रकुळीं जो अपवित्र | तो येक पढतमूर्ख ||२४||
आदर देखोनि मन धरी | कीर्तीविण स्तुती करी |
सवेंचि निंदी अनादरी | तो येक पढतमूर्ख ||२५||
मागें येक पुढें येक | ऐसा जयाचा दंडक |
बोले येक करी येक | तो येक पढतमूर्ख ||२६||
प्रपंचविशीं सादर | परमार्थीं ज्याचा अनादर |
जाणपणें घे अधार | तो येक पढतमूर्ख ||२७||
येथार्थ सांडून वचन | जो रक्षून बोले मन |
ज्याचें जिणें पराधेन | तो येक पढतमूर्ख ||२८||
सोंग संपाधी वरीवरी | करूं नये तेंचि करी |
मार्ग चुकोन भरे भरीं | तो येक पढतमूर्ख ||२९||
रात्रंदिवस करी श्रवण | न संडी आपले अवगुण |
स्वहित आपलें आपण | नेणे तो येक पढतमूर्ख ||३०||
निरूपणीं भले भले | श्रोते येऊन बैसले |
क्षुद्रें लक्षुनी बोले | तो येक पढतमूर्ख ||३१||
शिष्य जाला अनधिकारी | आपली अवज्ञा करी |
पुन्हां त्याची आशा धरी | तो येक पढतमूर्ख ||३२||
होत असतां श्रवण | देहास आलें उणेपण |
क्रोधें करी चिणचिण | तो येक पढतमूर्ख ||३३||
भरोन वैभवाचे भरीं | सद्गुरूची उपेक्षा करी |
गुरुपरंपरा चोरी | तो येक पढतमूर्ख ||३४||
ज्ञान बोलोन करी स्वार्थ | कृपणा ऐसा सांची अर्थ |
अर्थासाठीं लावी परमार्थ | तो येक पढतमूर्ख ||३५||
वर्तल्यावीण सिकवी | ब्रह्मज्ञान लावणी लावी |
पराधेन गोसावी | तो येक पढतमूर्ख ||३६||
भक्तिमार्ग अवघा मोडे | आपणामध्यें उपंढर पडे |
ऐसिये कर्मीं पवाडे | तो येक पढतमूर्ख ||३७||
प्रपंच गेला हातीचा | लेश नाहीं परमार्थाचा |
द्वेषी देवां ब्राह्मणाचा | तो येक पढतमूर्ख ||३८||
त्यागावया अवगुण | बोलिलें पढतमूर्खाचें लक्षण |
विचक्षणें नीउन पूर्ण | क्ष्मा केलें पाहिजे ||३९||
परम मूर्खामाजी मूर्ख | जो संसारीं मानी सुख |
या संसारदुःखा ऐसें दुःख | आणीक नाहीं ||४०||
तेंचि पुढें निरूपण | जन्मदुःखाचें लक्षण |
गर्भवास हा दारुण | पुढें निरोपिला ||४१||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पढतमूर्खलक्षणनाम
समास दहावा ||१०||२. १०
|| दशक दुसरा समाप्त ||
NA
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Reproofread by P. D. Kulkarni
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% Text title : Dasabodh dAsabodha dashaka 2
% Author : Swami Samartha Ramadas
% Language : Marathi, Sanskrit
% Subject : philosophy/hinduism/religion
% Description/comments : Collectively transliterated and proofread
% Transliterated by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in Sunder
% Hattangadi sunderh at hotmail.com, NA
% Proofread by : Vishwas Bhide santsahitya at yahoo.co.in, Sunder
% Hattangadi sunderh at hotmail.com, NA
% Reproofread by P. D. Kulkarni
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% Latest update : August 6, 2014
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